सुनो माँ
– यश शर्मा
माँ से किए कई वादे भी तो हैं
उस से जुड़ी कई यादें भी तो हैं,
यूँ तो खो जाऊँ इस दुनिया की भीड़ में मैं
मुझे बचा के रखने वाली उसकी फरियादें भी तो हैं।
कोई परेशानी मेरे निकट हो
या कोई बात जो विकट हो,
मैं माँ को ही खोजता, बेहाल आतुर-सा
माँ गले लगा लेती मुझे देख अपना लाल व्याकुल सा।
मैं हो जाऊँ कभी उम्र में बड़ा या हो
जाऊँ कभी अबोध बालक
मेरे हर तर्क को समझती है और देखती
है मेरे हर नाटक,
तुझसे बिछड़कर माँ, अब रहूँ भी तो कहां रहूँ मैं
तू ही तो ईश्वर है मेरी, अब माँ कहूं भी तो कहूं किसे मैं।
तेरे निष्पाप अधरों से मेरा नाम लेना हो
या अपने चुंबन से कभी मुझे इनाम देना
हो,
माँ तेरे आँचल को पकड़ कर, मैं एक सम्राट बन जाता हूँ
सिमट जाता हूँ तेरी गोद में, और चैन की नींद सो जाता हूँ।
माँ तू समय-समय पर मुझे आवाज देती रहा कर
मैं अक्सर दुनिया की राहों में खो जाता हूँ,
देखता हूँ तेरी भोली सूरत की तरफ मैं
और फिर से नया हो जाता हूँ।
बहुत खूबसूरत रचना??