सेवा संगम: 820 प्रबंधकों ने संभाला पूरे सेवा संगम का प्रबंधन

सेवा संगम: 820 प्रबंधकों ने संभाला पूरे सेवा संगम का प्रबंधन

सेवा संगम: 820 प्रबंधकों ने संभाला पूरे सेवा संगम का प्रबंधनसेवा संगम: 820 प्रबंधकों ने संभाला पूरे सेवा संगम का प्रबंधन

जयपुर, 9 अप्रैल। एक छोटा सा आयोजन भी हो तो पूरा परिवार विभिन्न व्यवस्थाओं में व्यस्त हो जाता है, ऐसे में लगभग तीन हजार अतिथियों के आगमन से लेकर ठहरने, भोजन व लौटने तक की व्यवस्थाओं में कितनी शक्ति जुटी होगी, अनुमान लगाना सहज नहीं है। बात हो रही है जयपुर के जामडोली स्थित केशव विद्यापीठ में सम्पन्न हुए सेवा भारती के राष्ट्रीय सेवा संगम की, जिसमें पूरे देश से 485 महिलाओं समेत 3000 अतिथि सम्मिलित हुए थे। इनकी व्यवस्थाओं पर दृष्टि डालें तो विभिन्न प्रकार की 27 व्यवस्थाओं के लिए 60 महिला कार्यकर्ता प्रबंधकों सहित कुल 820 कार्यकर्ता प्रबंधन में जुटे थे।

आवास व्यवस्था पर एक दृष्टि 

समूचे परिसर को छह नगरों में बांटा गया था, जिनके नाम महान विभूतियों- एकनाथ रानाडे, बाला साहब देशपाण्डे, सूर्यनारायण राव, नानाजी देशमुख, डॉ. नित्यानंद और भगिनी निवेदिता के नाम पर रखे गए थे। हर नगर में सुरक्षा, स्वच्छता व पेयजल की व्यवस्थाओं के लिए प्रबंधकों की अलग-अलग टोलियां थीं। हर नगर को अलग-अलग रंग भी प्रदान किया गया था। एकनाथ रानाडे नगर को पीला रंग, बाला साहब देशपाण्डे नगर को भूरा, भगिनी निवेदिता नगर को गुलाबी, सूर्य नारायण राव नगर को लाल, नानाजी देशमुख नगर को हरा व डॉ. नित्यानंद नगर को बैंगनी रंग प्रतीक के रूप में दिया गया था। इन्हीं रंगों के आधार पर प्रबंध व्यवस्था में जुड़े कार्यकर्ताओं को परिचय पत्र भी दिए गए, ताकि रंग से भी पता चल सके कि वे किस नगर की प्रबंध व्यवस्था से जुड़े हैं।

भोजन व्यवस्था 

भीड़ व कतार की स्थिति से बचाव के लिए हर नगर में ठहराए गए अतिथियों के भोजन की व्यवस्था उसी नगर के परिसर में रखी गई। छह जगह भोजन पाण्डाल थे। भोजन दो जगह बनाने की व्यवस्था रखी गई। चार स्थानों पर रोटी बनाने की स्वचलित मशीन लगाई गई, ताकि गर्मागर्म रोटियां उपलब्ध होती रहें।

उतना ही लें थाली में.. 

‘उतना ही लें थाली में, व्यर्थ न जाए नाली में’ सेवा संगम में इसका स्वतः स्फूर्त पालन हुआ। देश भर से आए अतिथियों को राजस्थान की मिठाई खीर मोहन का स्वाद भी चखाया गया, साथ ही मोटे अनाज की रोटी भी भोजन में सम्मिलित की गई।

पूरा परिसर था पर्यावरण मित्र 

परिसर में जहॉं एक ओर स्वच्छता का पूरा ध्यान रखा गया, वहीं दूसरी ओर उसे पर्यावरण मित्र बनाने के भी पूरे प्रयास किए गए। यहां पर पॉलिथीन का उपयोग नहीं के बराबर था। पेयजल के लिए स्टील की गिलासें व ताम्बे के लोटों का उपयोग किया गया तो चाय, कॉफी, छाछ आदि के लिए कागज की गिलास काम में लिए गए। कागज का भी उपयोग कम हो, इसके लिए पेपर नैपकिन भी नहीं रखे गए, क्योंकि पेपर नैपकिन के निर्माण के लिए हरे पेड़ों की कटाई होती है। स्वच्छता के लिए भी पूरा दल अलग से लगाया गया था। परिसर में प्रदर्शनी से सभागार और पुनः निर्धारित आवास तक आने जाने के लिए यातायात की भी व्यवस्था थी। इसके लिए ई रिक्शा (जिन्हें टुकटुक नाम दिया गया), घोड़ागाड़ी, ऊंटगाड़ी व बैलगाड़ियां थीं। इनके चालकों को भी संगम की पहचान के लिए साफा बंधवाया गया था।

पानी जाए हरियाली में, व्यर्थ न जाए नाली में 

हाथ धोने व नहाने के बाद बहते पानी का उपयोग पौधों को सींचने में किया गया। जहां से पानी की निकासी अधिक मात्रा में है, उस पानी को सोकपिट के माध्यम से जमीन में उतारा गया। नहाने-धोने के लिए वोकल फॉर लोकल की भावना से हस्तनिर्मित साबुन का उपयोग किया गया।

Print Friendly, PDF & Email
Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *