भारतीय वैज्ञानिकों ने सैटेलाइट का प्रयोग आक्रमण नहीं, शिक्षा के लिए किया- भैय्याजी जोशी
भारतीय वैज्ञानिकों ने सैटेलाइट का प्रयोग आक्रमण नहीं, शिक्षा के लिए किया– भैय्याजी जोशी
देहरादून। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरकार्यवाह और अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य सुरेश भैय्याजी जोशी ने कहा कि भारत एवं विश्व के उत्थान के लिए मार्ग प्रशस्त करने का कार्य प्रारंभ हो गया है। अब प्रकृति में चल रही हलचल को प्राथमिकता के आधार पर सोचने, समझने की आवश्यकता है। हम विकास की कल्पनाओं को लेकर कौन सी बातों पर समझौता कर रहे हैं। इस पर गंभीरता से आगे बढ़ना होगा।
उन्होंने रविवार की शाम उत्तरांचल विश्वविद्यालय प्रेमनगर में विज्ञान भारती, उत्तराखंड और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (भारत सरकार) के जीवन के लिए ‘आकाश तत्व पर पंच भूत‘ विषयक संगोष्ठी के समापन सत्र में ये विचार व्यक्त किए। इस प्रदर्शनी एवं संगोष्ठी में सम्पूर्ण भारत वर्ष से विश्वविद्यालयों, कॉलेजों एवं संस्थानों से लगभग 1500 से अधिक विद्यार्थियों सहित अन्य ने प्रतिभाग किया।
उन्होंने कहा कि बादल फटने की घटना हो, भूकम्प हो, बीमारियां हों या जंगलों में आग लगना हो, जैसे कई शोध के विषय हैं। इनके कारणों में जब तक नहीं जाएंगे तब तक निवारण नहीं हो सकता। कुछ चीजें हमारे हाथ में नहीं हैं, लेकिन हो सकती हैं। प्रकृति में चल रही हलचल को गहनता के साथ गंभीर होकर समझना होगा। हम प्रकृति को अपने अधिकार में लाना चाहते हैं? क्या हम किसी विषय के बारे में अतिक्रमण कर रहे हैं? क्या हमारी कल्पनाओं एवं चिन्तन में कोई गलती हो रही है? जब आवश्यकताएं बढ़ जाती हैं तो हम कई चीजों को भूल जाते हैं। हम यहां पर आकाश तत्व पर चर्चा करने के लिये आए हैं। कुछ लोग आकाश के मालिक बनना चाहते हैं। विकास की कल्पनाओं को लेकर हम कौन सी बातों पर समझौता कर रहे हैं? इस पर गंभीरता से विचार करना होगा।
भैय्याजी जोशी ने कहा कि भिन्न–भिन्न प्रकार के शोध के लिये सैटेलाइट छोड़े जा रहे हैं। आकाश में छोड़ा गया कचरा भविष्य में क्या आपदा लाने वाला है, यह सोचा जाना चाहिए। भारतीय वैज्ञानिकों ने सैटेलाइट का प्रयोग आक्रमण के लिए नहीं बल्कि शिक्षा देने के लिए किया है। रोहिणी एवं आर्यभट्ट की स्मृति में सैटेलाइट छोड़े गए हैं जो मानवता है, संस्कृति है उस पर वैज्ञानिकों को काम करना होगा। नीति बनाने वाली सरकार को भी इसमें प्रोत्साहन देना होगा। जब तक हर एक व्यक्ति इस पर नहीं सोचेगा, तब तक विकास सम्भव नहीं है। भारत एवं विश्व के उत्थान के लिए मार्ग प्रशस्त करने का कार्य प्रारम्भ हो चुका है।
इससे पहले कार्यक्रम के उद्घाटन भाषण में मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने कहा कि पुरातन विज्ञान एक तरह से सनातन विज्ञान है। पुरातन यानी पुराना और नूतन यानी नवीन। इसी तरह सनातन का अर्थ है, जो पहले भी था, वर्तमान में भी है और भविष्य में भी रहेगा।
केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री डा. जितेंद्र सिंह ने कहा कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में इस तरह का विज्ञान चिंतन पहली बार हो रहा है, जिसमें प्राचीन ज्ञान को आधुनिक शोध से जोड़कर मंथन किया जा रहा है।
चेयरमैन डा. एस सोमनाथ ने स्कूल व कॉलेजों से आये युवा विद्यार्थियों के साथ संवाद किया। इस अवसर पर उन्होंने स्पेस बैलून भी छोड़ा जो कि एटमॉस्फेरिक डाटा क्लेक्शन की जानकारी भी देता है। साथ ही उन्होंने स्पेस बस का निरीक्षण भी किया व विद्यार्थियों को विज्ञान के प्रति जागरूक किया।
इसरो के सलाहकार शांतनु वाडेकर ने कार्यक्रम को आयोजित करने का उद्देश्य व इसके बारे में विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने कहा कि पंचमहाभूत (आकाश, जल, अग्नि, वायु, पृथ्वी) हमारे जीवन के लिए आवश्यक तत्व हैं। इन सभी तत्वों पर राष्ट्रीय स्तर की गोष्ठी सम्पूर्ण भारत वर्ष में अलग–अलग स्थानों पर आयोजित की जा रही है।
भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रो. अजय कुमार सूद ने संगोष्ठी को सफल बनाने के लिये सभी की ओर से किए गए सहयोग के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया। इस सत्र में प्रो. राजेश एस. गोखले, सचिव, जैव प्रोद्योगिकी विभाग, भारत सरकार, विज्ञान भारती के सुमित मिश्रा, डॉ. एम. रविचन्द्रन, सचिव, पृथ्वी विज्ञान विभाग एवं डॉ. शांतनु भटवाडेकर, निदेशक इसरो उपस्थित रहे।