स्वतंत्र भारत में स्वतंत्रता के लिए प्रथम बलिदान
23 जून – डॉ. श्यामाप्रसाद मुख़र्जी बलिदान दिवस
नरेंद्र सहगल
पंडित जवाहरलाल नेहरू के विशेष मित्र मुस्लिम कॉन्फ्रेंस के संस्थापक शेख मुहम्मद अब्दुल्ला ने जम्मू कश्मीर का मुख्यमंत्री बनते ही अपनी हिंदू विरोधी मानसिकता का प्रदर्शन करना प्रारंभ कर दिया। कश्मीर के अल्पसंख्यक हिंदुओं और जम्मू सम्भाग के हिंदुओं पर तरह-तरह के गैरकानूनी जुर्म ढाए जाने लगे। मुस्लिम कॉन्फ्रेंस के लाल झण्डे को रियासत का झण्डा बना दिया गया। हिंदुओं को उनके धार्मिक एवं मौलिक अधिकारों से भी वंचित किया जाने लगा।
शेख अब्दुल्ला के द्वारा की जाने वाली एकतरफा तानाशाही के विरुद्ध जम्मू के लोगों ने एक प्रचण्ड जनान्दोलन करने का फैसला किया। संघ के प्रांत संघचालक पंडित प्रेमनाथ डोगरा के नेतृत्व में प्रजा परिषद नामक एक संगठन बनाया। इस संगठन में शेख के तानाशाही शासन एवं उसकी हिन्दू विरोधी राजनीतिक कार्य-प्रणाली को समाप्त करने के उद्देश्य से धरने, प्रदर्शनों, सत्याग्रहों एवं मुस्लिम कॉन्फ्रेंस के झण्डे (रियासती झण्डे) को उतारकर तिरंगा लहराने जैसे कार्यक्रमों की झड़ी लगा दी। यह आंदोलन जम्मू-कश्मीर सहित पूरे देश में फैल गया।
संघ ने अपनी पूरी शक्ति इस आंदोलन को सफल बनाने में झोंक दी। उस समय संघ के 27 प्रचारकों को भी इस आंदोलन की बागडोर संभालने के आदेश दे दिए गए। सरकारी भवनों पर तिरंगा लहराते हुए 17 स्वयंसेवक पुलिस की गोलियों से वीरगति को प्राप्त हुए, हजारों कार्यकर्ताओं को जेलों में बंद कर दिया गया। बलिदान देने, जख्मी होने और अमानवीय यातनाएं सहते हुए भी आम जनता की भागीदारी बढ़ती गई। इतने पर भी भारत के प्रधानमंत्री पंडित नेहरू का दिल नहीं पसीजा।
इन परिस्थितियों में जनसंघ के अध्यक्ष डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने प्रजापरिषद के आंदोलन का समर्थन कर दिया। एक देश में दो प्रधान, दो निशान, और दो विधान नहीं चलेंगे के उद्घोष के साथ बिना परमिट लिए जम्मू कश्मीर में प्रवेश किया। कश्मीर पुलिस ने शेख के आदेशानुसार डॉक्टर साहब को गिरफ्तार करके श्रीनगर की तन्हाई जेल में डाल दिया। वहां रहस्यमयी परिस्थितियों में डॉक्टर मुखर्जी की मृत्यु हो गई।
सारे देश में हाहाकार मच गया नेहरू जी भी घबरा गए। उन्होंने प्रजापरिषद की अधिकांश मांगें मान लीं। परमिट सिस्टम समाप्त हो गया। सदर-ए-रियासत और वजीरे आला के स्थान पर राज्यपाल और मुख्यमंत्री नाम स्वीकार कर लिए गए। शेख अब्दुल्ला को गिरफ्तार करके जेल में भेज दिया गया। परंतु नेहरू जी ने अनुच्छेद 370 को नहीं हटाया। अब केंद्र में स्थापित भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने डॉक्टर श्यामप्रसाद के सपनों को पूरा कर दिया है। इसे संघ के स्वयंसेवकों द्वारा दिए गए बलिदानों का फल कहने में कोई भी अतिश्योक्ति नहीं होगी।
संघ के स्वयंसेवकों ने गत 72 वर्षों में जम्मू कश्मीर की स्वतंत्रता, सुरक्षा और सम्मान के लिए निरंतर संघर्ष किया है। पाकिस्तान द्वारा किए गए आक्रमणों के समय स्वयंसेवकों ने समाज का मनोबल बढ़ाने के साथ प्रत्यक्ष सीमा पर जाकर सैनिकों की हर प्रकार से सहायता भी की है। आतंकवादियों का सामना करने के लिए स्थापित की गई सुरक्षा समितियों में संघ का महत्वपूर्ण योगदान रहा। 1989 में कश्मीर घाटी से निकाल दिए गए कश्मीरी हिंदुओं के देखभाल की जिम्मेदारी निभाई है।
एक और महत्वपूर्ण कार्य को सम्पन्न करके संघ ने वर्तमान में हुए ऐतिहासिक परिवर्तन में अपनी पार्श्व भूमिका निभाई है। आठ वर्ष पूर्व स्वयंसेवकों द्वारा गठित जम्मू कश्मीर स्टडी सर्कल ने कश्मीर समस्या की जड़ों का गहराई से अध्ययन करके अनेक ऐतिहासिक तथ्य सरकार और जनता के समक्ष प्रस्तुत किए हैं। निश्चित रूप से इस शोध कार्य का परिणाम सामने आया है। इसमें कोई भी संशय नहीं हो सकता कि वर्तमान सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति, ठोस निर्णय करने की परिपक्व क्षमता से संयमित दूरदर्शिता और सूझबूझ के परिणाम स्वरूप एक ही झटके में इतना बड़ा परिवर्तन संभव हो सका। सरदार पटेल, डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी, श्री गुरुजी, डॉ.आंबेडकर धारा 370 के विरोधी थे, वे इसे संविधान में शामिल करने के खिलाफ थे। उनका स्वप्न अब साकार हुआ है जिसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने ही पूरा किया है।