स्वभाषा, स्वदेश व स्वधर्म के लिए कार्य करना होगा
स्वभाषा, स्वदेश व स्वधर्म के लिए कार्य करना होगा
सीकर में शुरू हुए शेखावाटी साहित्य संगम के उद्घाटन सत्र में संगम की इस वर्ष की थीम ‘स्व आधारित भारत का नवोत्थान’ को अरविंद महला ने स्पष्ट करते हुए कहा कि हर राष्ट्र का एक चरित्र होता है। उन्होंने शिक्षा में स्व को स्पष्ट करते हुए कहा “भारत में सशुल्क शिक्षा का ढांचा नहीं था। अंग्रेजों ने अपने शोध में पाया कि भारत की संस्कृति में सामाजिक विभेद है ही नहीं। यहां कोई वंचित वर्ग नहीं है। उन्होंने अपनी विभेद की नीति के चलते विराष्ट्रीयकरण, विसामाजीकरण व विहिन्दूकरण करने के लिए शिक्षा पद्धति को पूर्ण रूप से बदल दिया, जो भारतीय संस्कृति के विपरीत था। साँस्कृतिक भारत में विभेद के लिए जातिगत जनगणना आयोजित की गई। अरविंद महला ने बताया कि हमारा योग, विज्ञान, अध्ययन आज पूरे विश्व को प्रेरणा दे रहा है। भारत को परम वैभव पर पहुंचाने के लिए स्वभाषा, स्वधर्म, स्वदेश पर कार्य करना होगा।
सीनियर जर्नलिस्ट अर्चना शर्मा ने कहा कि विदेशों में भारत की छवि बदल रही है। देश आज हर क्षेत्र में प्रगति कर रहा है। भारत अपने स्व को पुनः प्राप्त करे, इसके लिए आवश्यक है कि भारत का मीडिया स्व ‘तंत्र ‘ की स्थापना में सहयोग के लिए नए तरीकों से सोचे।
साहित्य व फिल्म क्षेत्र में स्व आधारित नवोत्थान की बात करते हुए लेखिका अंशु हर्ष ने कहा कि भारत में कई फ़िल्में बनी हैं, जो स्व का बोध कराती हैं। तेरी मिट्टी में मिल जावां, जीरो दिया मेरे भारत ने जैसे गीत भी स्व का बोध कराते हैं। साहित्य प्रभु का एक अनुपम उपहार है। जब एक कला दूसरी कला से मिलती है तो वह विस्तार पाती है। इसी विस्तार से हमें स्व को प्राप्त करना है।
समाजसेवी प्रो. महावीर कुमावत ने कहा कि भारत हमेशा से उद्योग प्रधान देश रहा है, जिसके कृषि प्रधान होने का नैरेटिव गढ़ा गया। हमारी शिक्षा, संस्कृति आदि पर प्रहार के कारण स्व का जो लोप हुआ है, उसे पुनः प्राप्त करना है।