सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर का जाना जैसे राष्ट्रीय चेतना के स्वर का अस्त होना….

स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर का जाना जैसे राष्ट्रीय चेतना के स्वर का अस्त होना….

प्रशांत पोळ

स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर का जाना जैसे राष्ट्रीय चेतना के स्वर का अस्त होना….

एक सुरीला सफर आज थम गया। जिन स्वरों के साथ हम बचपन से प्रौढ़ावस्था तक पहुंचे, जिन सुरों ने हमेशा हमारा साथ दिया, वह स्वर आज निःशब्द हो गया। सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर हमारे बीच नहीं रहीं।

लता जी प्रखर राष्ट्रीय सोच और विचारधारा की समर्थक रही हैं। उनका स्वर राष्ट्र का स्वर था, राष्ट्र की चेतना का स्वर था, राष्ट्र की आत्मानुभूति का स्वर था।

छत्रपति शिवाजी उनके आराध्य थे। शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक को तीन सौ वर्ष पूर्ण होने पर शिवशाहिर स्व. बाबासाहेब पुरंदरे जी के साथ उन्होंने ‘राजा शिवछत्रपति’ नाम से अत्यंत सुंदर एलपी रिकॉर्ड तैयार की थी। उस रिकॉर्ड के गीत आज भी छत्रपति शिवाजी पर गाये गए गीतों में सर्वश्रेष्ठ हैं।

वीर सावरकर उनके प्रेरणास्रोत थे। कोरोना से कुछ पहले, वर्ष 2019 में, जब सावरकर जी को लेकर काँग्रेस ने विवाद खड़ा किया था, तब बड़े क्षोभ और व्यथित अंतःकरण के साथ, 19 सितंबर 2019 को लता जी ने ट्वीट किया था, “वीर सावरकर जी और हमारे परिवार के बहुत घनिष्ठ संबंध थे, इसलिए उन्होंने मेरे पिताजी की नाटक कंपनी के लिए नाटक ‘सन्यस्त खड्ग’ लिखा था। इस नाटक का पहला प्रयोग 18 सितंबर 1931 को हुआ था। इस नाटक में से एक गीत बहुत लोकप्रिय हुआ। ‘शत जन्म शोधताना…’ यह गीत लता जी ने इस ट्वीट के साथ जोड़ा था। _(‘शत जन्म शोधताना…’ यह गीत सावरकर जी की उत्तुंग और जबरदस्त प्रतिभा का प्रत्यक्ष प्रमाण है। प्रख्यात लेखक पु. ल. देशपांडे जी ने कहा था, “इस एक गीत के लिए सावरकर जी को ज्ञानपीठ जैसा सर्वोच्च सम्मान मिलना चाहिए।”)

हिन्दुत्व के पुरोधा सावरकर जी को उनकी जयंती 28 मई और पुण्यतिथि 26 फरवरी पर लता मंगेशकर प्रतिवर्ष सार्वजनिक तौर पर श्रद्धांजलि देती थीं। अंग्रेजों के विरोध में, भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान का हमेशा गौरवपूर्ण उल्लेख करती थीं। सावरकर जी के बारे में उनका एक ट्वीट – “नमस्कार। भारतमाता के सच्चे सपूत, स्वतंत्रता सेनानी, मेरे पिता समान वीर सावरकर जी की आज जयंती है। मैं उनको कोटि – कोटि प्रणाम करती हूँ।”

अपनी युवावस्था में लता मंगेशकर, सावरकर जी के विचारों से बहुत ज्यादा प्रभावित थीं। वे सावरकर जी से इस बारे में विचार – विमर्श करती थीं। समाज के लिए कुछ करने की उन में जबरदस्त ललक थी। एक समय ऐसा भी आया, जब लता जी समाज कार्य करने के लिए गायन छोड़ने जा रही थीं। उस समय सावरकर जी ने उन को समझाया। उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर की याद दिलाई और उन्हें बताया कि संगीत और गायन के प्रति समर्पित होकर भी वो समाज की सेवा कर सकती हैं। इसके बाद सावरकर जी की सलाह मानते हुए वे पूरी तरह से संगीत की दुनिया में डूब गईं और हमारे संगीत विश्व में एक नया ध्रुव तारा चमक उठा। _(संदर्भ – ‘लता : सुर गाथा’. लेखक – यतीन्द्र मिश्रा)_

लता जी का पूरा परिवार कट्टर देशभक्त और राष्ट्रीय विचारों से ओतप्रोत है। वीर सावरकर जी की लिखी कविताओं का चयन करने के कारण तत्कालीन काँग्रेस सरकार ने, लता मंगेशकर जी के भाई, हृदयनाथ मंगेशकर को ‘ऑल इंडिया रेडियो’ से निकाल दिया था। 1954 की यह घटना है, जब हृदयनाथ जी मात्र 17 वर्ष के थे।

वर्ष 2009 में, सावरकर जी द्वारा ब्रायटन के समुद्र किनारे पर लिखी अमर कविता ‘ने मजसी ने परत मातृभूमीला, सागरा प्राण तळमळला…’ के सौ वर्ष पूर्ण होने के कार्यक्रम प्रारंभ हुए थे। इस दौरान लता जी ने बताया की इस कविता ने देशभक्ति की भावना जगाई और न केवल मराठी, बल्कि सभी भारतीयों के लिए यह प्रेरणादायी बनी थी। उस समय आँसू बहाते लता जी ने अफसोस जताया था कि ‘वीर सावरकर जी को स्वतंत्र भारत में वह सम्मान नहीं मिला, जिसके वे हकदार थे’।

चित्रमहर्षि और फ़िल्मकार भालजी पेंढारकर यह हिन्दुत्व के प्रखर समर्थक थे। 1948 में गांधी हत्या के बाद, महाराष्ट्र में ब्राह्मणों के घरों को बड़ी संख्या में जलाया गया था। उस में भालजी पेंढारकर जी का ‘जयप्रभा स्टुडियो’ जलाकर राख़ कर दिया गया था। भालजी ने हिम्मत के साथ उसे फिर खड़ा किया। इस में उन को साठ हजार रुपयों का कर्जा हुआ। यह कर्ज समाप्त करने के लिए लता जी ने उन्हे आर्थिक रूप से सहायता की थी।

लताजी ने जीवन पर्यंत राष्ट्रीय विचारों का साथ दिया और देश तोड़ने वाली शक्तियों का विरोध किया। बॉलीवुड जैसे विषाक्त वातावरण में भी लता जी शुचिता और पावित्र्य की प्रतिमूर्ति थीं। शतकों – शतकों में निर्माण होने वाले इस ईश्वरीय रचना के अवसान पर उन्हें विनम्र श्रद्धासुमन..!

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