हमें स्वाधीनता से स्वतंत्रता की ओर जाना है – निम्बाराम
राजस्थान विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय शिक्षक संघ (राष्ट्रीय) का दो दिवसीय प्रान्तीय सम्मेलन सीकर के राजविलास गार्डन में सम्पन्न हुआ। समापन सत्र के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र प्रचारक निम्बाराम थे, जबकि अध्यक्षता अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के राष्ट्रीय संगठन मंत्री महेन्द्र कपूर ने की। अपने उद्बोधन में निम्बाराम ने कहा कि सच्चा शिक्षक वही है, जो नित्य नूतन व चिर पुरातन के राष्ट्रीय दर्शन को समझते हुए देश के युवाओं का मार्गदर्शन करे। उन्होंने कहा कि हमें स्वाधीनता से स्वतंत्रता की ओर जाना है। 1947 में हमें जो स्वाधीनता मिली, उसमें समाज के सभी वर्गों का योगदान था। उस समय जिन हुतात्माओं ने राष्ट्र के लिए अपने आप को होम दिया, उनके मन में एक स्वतन्त्र और समरस भारत की कल्पना थी। हमें इस कल्पना को साकार करना होगा और इसके लिए पाठ्यक्रमों की पुनर्रचना करनी होगी, क्योंकि पाठ्यक्रमों में धरातल पर कठोर संघर्ष करने वाले वीर-वीरांगनाओं को यथोचित स्थान नहीं मिला है। उन्होंने कहा कि अकादमिक दृष्टि से भारत के स्वत्व का विमर्श होना आवश्यक है और रुक्टा राष्ट्रीय जैसे ऊर्जावान संगठन यह कार्य कुशलतापूर्वक कर सकते हैं।
अध्यक्षता करते हुए महेन्द्र कपूर ने कहा कि अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ भारत के वास्तविक सांस्कृतिक स्वरूप का उद्घाटन करने व स्वतंत्रता संघर्ष के मूल चिन्तन को लोक तक पहुँचाने के लिए कार्यक्रमों की एक शृंखला के साथ आगे बढ़ रहा है और राष्ट्रीय धारा के शिक्षक इस कार्य में समर्पण-भाव से लगे हुए हैं। सत्र का संचालन डॉ. शिवशरण कौशिक ने किया।
इससे पूर्व ‘स्वतन्त्रता-आन्दोलन में शिक्षा व शिक्षक की भूमिका’ विषय पर एक संगोष्ठी आयोजित हुई, जिसके मुख्य वक्ता राजस्थान विश्वविद्यालय में कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो. नन्दकिशोर पांडे थे। प्रो. पांडे ने कहा कि भारत का स्वतन्त्रता-संघर्ष पूर्णतया गुरु-परम्परा पर आधारित है, क्योंकि प्रारम्भ से ही हमारे गुरु इस बात के लिए सचेत रहे हैं कि नई पीढ़ी को स्वराज व स्वशासन का अर्थ अच्छी तरह समझ में आ जाए, ताकि वह सुराज व सुशासन के लक्ष्य को प्राप्त करती रहे।
गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व क्षेत्र कार्यवाह और क्षेत्रीय कार्यकारिणी सदस्य हनुमानसिंह राठौड़ ने कहा कि इतिहास इस बात का साक्षी है कि राष्ट्र के निर्माण में शिक्षकों ने हमें सनातन नेतृत्त्व प्रदान किया है, जिसके कारण हम न केवल स्वशासित हुए, बल्कि सुशासन की ओर भी बढ़ रहे हैं। अब आवश्यकता इस बात की है कि कि स्वतन्त्रता की मूल भारतीय अवधारणा को समझते हुए हम आगे बढ़ते रहें। गोष्ठी में डॉ. सुरेन्द्र सोनी, डॉ. मनोज बहरवाल, डॉ. गीताराम शर्मा, डॉ. हरिसिंह राजपुरोहित, डॉ. राजेश जोशी, डॉ. सरोज कुमार, डॉ. कर्मवीर चौधरी और डॉ. वीना सैनी ने अपने शोधपत्रों का वाचन किया। संचालन डॉ. ओमप्रकाश पारीक ने किया।