स्वाभिमान : जनजातीय परिवारों ने मुफ्त में राशन लेने से मना किया

स्वाभिमान ही इंसान की आत्मा को जीवित रखता है। यह बात सिरोही जिले के जनजाति समाज के परिवारों ने साबित की है। कोरोना संकट में राजस्थान के सिरोही जिले के जनजातीय समाज के लोगों ने सरकार और समाजसेवियों के स्तर पर दिया जा रहा राशन यह कहकर लेने से मना कर दिया कि उन्हें यह मुफ्त में नहीं चाहिए, क्योंकि वे इसके बदले काम चाहते हैं। ठेठ दूर वनांचल में रहकर अनेक अभावों में जीवन व्यतीत करने वाले इस समाज के लोगों के अंदर स्वाभिमान की लौ आज भी प्रज्जवलित है। इसका ठोस कारण यह है कि उन्होंने अपने आदर्श नहीं बदले हैं। सिरोही के ये जनजातीय समाज के लोग महाराणा प्रताप को आज भी अपना प्रेरणा स्रोत बताते हैं। स्वाभिमान का पाठ इन्होंने प्रताप से ही सीखा है।

 

वहीं एक अन्य घटना महाराष्ट्र के पालघर क्षेत्र की है, जहां दो हिन्दू संतों की कथित जनजातीय लोगों ने पीट पीटकर निर्मम हत्या कर दी थी। साधुओं के हत्यारों को अर्बन नक्सली और मीडिया की एक जमात भोले- भाले आदिवासी बता रही है। लेकिन यह अर्द्ध सत्य है। पालघर इलाके में बड़े पैमाने पर मतांतरण हुआ है। इस समाज के लोगों को पहले ईसाई बनाया गया। उनके मन में हिन्दू समाज और संस्कृति के प्रति विष घोला गया। उनके प्रेरणा स्रोत रहे महापुरूषों को विस्मृत कराया गया यानि अब वे जनजातीय नहीं बल्कि मतांतरित ईसाई हैं। मतांतरण के बाद उन्होंने अपनी सहिष्णुता भी छोड़ दी।

यह भी सत्य है कि सालों से जनजातीय समाज के लोगों के साथ छलावा होता आया है। पहले काम के नाम पर उन्हें अपने घर, जंगल व गांव से अलग किया गया है। नदियों, नहरों, बांधों और फैक्ट्रियों के नाम पर विस्थापन का दर्द भी सबसे ज्यादा वनवासी समाज को ही भोगना पड़ा है। इन लोगों की सरलता का फायदा कुछ देश विरोधी ताकतें उठा रही हैं। उन्हें मतांतरित करने के बाद देश के मान बिंदुओं पर प्रहार करने के लिए उन्हें उकसाया जा रहा है। पालघर की घटना इसका ज्वलंत उदाहरण है।

आज जरूरत है महाराणा प्रताप, बिरसा मुंडा, तात्यां भील, गुंडाधुर और गोविंद गुरू जैसे आदर्शों को आदिवासी समाज में स्थापित करने की, जो उनको न्याय दिलाएं और उनके स्वाभिमान को जाग्रत रखें। जनजातीय समाज के लोग बहुत मेहनती हैं। वे चाहते हैं कि मेहनत की खाएं ना कि मुफ्त की। लॉक डाउन के पूर्व उनके पास जो काम थे, वे अब नहीं हैं। आगे काम मिलने को लेकर यह समुदाय चिंतित है। इन लोगों के मुफ्त में सामान ना लेने की जिद ने लोगों को चकित और समाज को गौरवान्वित भी किया है। लॉकडाउन के बीच हमने कई सक्षम लोगों को घर में मुफ्त के राशन को एकत्रित करते हुए देखा है। लेकिन जनजातीय समुदाय का राशन किट ठुकराना और सामान के बदले काम मांगना, मुफ्त की रोटी खाने वालों के मुंह पर करारा तमाचा है।

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