स्वामी विवेकानन्द को राजस्थान से मिली थी नई पहचान

स्वामी विवेकानन्द को राजस्थान से मिली थी नई पहचान

उमेश कुमार चौरसिया

स्वामी विवेकानन्द को राजस्थान से मिली थी नई पहचानस्वामी विवेकानन्द को राजस्थान से मिली थी नई पहचान

स्वामी विवेकानन्द का राजस्थान से विशेष संबंध रहा, इसमें खेतड़ी नरेश अजीतसिंह से उनकी आत्मीयता सर्वविदित है। स्वामीजी यहाँ आए तो विविदिशानन्द के रूप में थे, पर यह खेतड़ी ही था, जिसने उन्हें विश्वविख्यात विवेकानन्द का नाम दिया। यहीं से स्वामीजी के अमरीका स्थित शिकागो की विश्व धर्म संसद में जाने की अधिकांश व्यवस्था भी हुई। यह भी राजस्थान की सभ्यता और संस्कृति का ही प्रभाव था कि विवेकानन्द ने अपनी पारम्परिक बंगाली व परिव्राजक सन्यासी की वेशभूषा के स्थान पर राजस्थानी साफा (टरबन) और चोगा-कमरखी का आकर्षक वेश धारण किया, जो स्वामी विवेकानन्द की स्थायी पहचान बना। वे राजस्थानी परम्परानुसार भूमि पर बैठकर पट्टे पर ही भोजन किया करते थे। यह भी राजस्थान का ही सौभाग्य रहा कि रामकृष्ण मिशन जैसी जनकल्याणकारी संस्था की शुरुआत का प्रथम प्रयास भी यहीं से हुआ। विवेकानन्द स्वयं कहते थे कि ‘यदि खेतड़ी के राजा न मिले होते तो शायद मैं वह सब नहीं कर पाता जो कर पाया हूँ।’ इसीलिए उन्होंने अपने सहयोगी अखण्डानन्द आदि से भी राजस्थान से जुड़े रहने का आग्रह किया था।

विवेकानन्द अपने परिव्राजक काल के दौरान प्रथमतः फरवरी 1891 में, दूसरी बार अप्रैल 1893 में और तीसरी बार नवम्बर 1897 में राजस्थान आए। प्रथम यात्रा के समय गेरुआ वस्त्र धारण किये, हाथों में दण्ड-कमण्डल और कंधे पर कम्बल डाले 28 वर्षीय युवा सन्यासी फरवरी 1891 में अलवर आए। यहाँ महाराज मंगलसिंह को मूर्ति पूजा का महत्व बताया। अलवर से स्वामीजी जयपुर होते हुए अप्रैल 1891 में किशनगढ़ से अजमेर आए, दरगाह व तीर्थराज पुष्कर आदि भ्रमण करते हुए पुष्कर से पैदल ही प्रस्थान कर 14 अप्रैल 1891 में आबू पर्वत पहुँचे। वहाँ एक छोटी सी निर्जन गुफा में ध्यान-धारणा करने लगे। यहीं स्वामीजी की भेंट खेतड़ी के महाराजा अजीतसिंह से हुई और फिर तो वे दोनों अभिन्न मित्र ही बन गए। 8 अगस्त, 1891 को खेतड़ी महल के उद्यान में नर्तकी के मुख से मीरा का मीठा भजन सुनकर भावविभोर स्वामीजी द्वारा माँ कहकर प्रणाम करने की अद्भुत भावधारा का गवाह भी राजस्थान बना। खेतड़ी प्रवास के समय ही सीकर स्थित जीणमाता के दर्शन करके 28 अक्टूबर को अजमेर के लिए प्रस्थान किया। अजमेर में स्वामी विवेकानन्द हरविलास शारदा जी से मिले। श्यामजी कृष्ण वर्मा के साथ भी रहे। बाद में वे गुजरात चले गए।

राजस्थान में विवेकानन्द की दूसरी यात्रा भी अत्यंत महत्वपूर्ण रही। दिसम्बर 1892 तक वे भ्रमण के दौरान शिकागो में होने वाली विश्व धर्म संसद में जाने के विषय में भी सोचते रहे। 25, 26 व 27 दिसम्बर 1892को स्वामीजी ने कन्याकुमारी समुद्र स्थित श्रीपाद् शिला पर तीन दिन लगातार ध्यान कर भारत के उत्थान पर चिन्तन किया। फरवरी 1893 में खेतड़ी नरेश को पुत्र-प्राप्ति हुई, तब स्वामीजी मद्रास में थे। जन्मोत्सव के लिए मुंशी जगमोहन लाल 21 अप्रैल को उन्हें लेकर खेतड़ी आ गए। यहीं अजीतसिंह ने स्वामी विवेकानन्द को पानी के जहाज से अमरीका में शिकागो धर्मसंसद में भेजने की सम्पूर्ण व्यवस्थाएं कीं। नया राजस्थानी साफा और चोगा-कमरखी मंगवाया और आग्रहपूर्वक स्वामीजी को दिया। 10 मई को मुंशी जगमोहन लाल के साथ ही विवेकानन्द शिकागो यात्रा के लिए रवाना हुए। राजस्थान का यही साफा और चोगा पहनकर स्वामी विवेकानन्द ने विश्वभर में सनातन धर्म का परचम फहराया और फिर यही उनकी स्थाई पहचान बन गया।

अमरीका से लौटने के उपरान्त अपनी तृतीय यात्रा में स्वामी विवेकानन्द नवम्बर 1897 के अंत में सर्वप्रथम अलवर आए, पाँच-छः दिन रहकर वे जयपुर होते हुए खेतड़ी पहुँचे। यहाँ स्वामीजी का भव्य स्वागत-सत्कार हुआ और 11 दिसम्बर 1897 को एक बड़ी सभा का आयोजन भी हुआ। 21 दिसम्बर, 1897 को उन्होंने खेतड़ी से जयपुर के लिए प्रस्थान किया। बीच में झुंझुनूं के बबाई और सीकर के थोई में भी विश्राम किया। अजीतसिंह जयपुर तक उन्हें विदा करने आए थे। यहाँ दस दिन खेतड़ी हाउस में ठहरने के बाद स्वामीजी एक जनवरी, 1898 को किशनगढ़ आए। यहाँ से वे जोधपुर चले गए। 1899 में राजस्थान में 19वीं सदी का भीषणतम अकाल ‘छप्पनीया अकाल’ पड़ा। उसी समय किशनगढ़ में स्वामीजी द्वारा स्थापित रामकृष्ण मिशन ने अकाल सहायता के रूप में सेवा कार्य प्रारम्भ किया। मिशन का राजस्थान में कार्य यहीं से शुरू हुआ था। राजस्थान में रहने वाले आमजन को स्वामी विवेकानन्द के इसी गौरवपूर्ण इतिहास से परिचित कराते हुए सेवा और समर्पण का संदेश पहुँचाने के ध्येय को लेकर ही 19 नवम्बर 2022 से 7 जनवरी 2023 तक 50 दिवसीय विवेकानन्द संदेश यात्रा का आयोजन किया जा रहा है, जो राजस्थान के सभी 33 जिलों में जाएगी।

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1 thought on “स्वामी विवेकानन्द को राजस्थान से मिली थी नई पहचान

  1. स्वामी विवेकानंद के सन्देश देश के प्रत्येक युवा तक पहुंचे और वे प्रेरित हों, इसके लिए यह यात्रा महत्वपूर्ण है

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