स्वार्थ कभी भी सेवा की प्रेरणा नहीं हो सकता- डॉ. मोहन भागवत

स्वार्थ कभी भी सेवा की प्रेरणा नहीं हो सकता- डॉ. मोहन भागवत

स्वार्थ कभी भी सेवा की प्रेरणा नहीं हो सकता- डॉ. मोहन भागवतस्वार्थ कभी भी सेवा की प्रेरणा नहीं हो सकता- डॉ. मोहन भागवत

पुणे (विसंकें)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि स्वार्थ कभी भी सेवा की प्रेरणा नहीं हो सकता। सेवा का धर्म गहन है, लेकिन यह मानवता का सहज धर्म है। सरसंघचालक ने शनिवार को जनकल्याण समिति के स्वर्ण उत्सव वर्ष समापन के उपलक्ष्य में सेवा भवन नामक सेवा परियोजना के उद्घाटन के अवसर पर अपने सम्बोधन में ये उद्गार व्यक्त किए।

इस अवसर पर रा. स्व. संघ के पश्चिम महाराष्ट्र प्रांत संघचालक सुरेश उर्फ नाना जाधव, ‘जनकल्याण समिति’ के प्रांत अध्यक्ष डॉ. रवींद्र सातालकर, ‘जनकल्याण सेवा फाउंडेशन’ के निदेशक महेश लेले और ‘डॉक्टर हेडगेवार स्मारक सेवा निधि’ के कोषाध्यक्ष माधव (अभय) माटे मंच पर उपस्थित थे। सरसंघचालक ने जनकल्याण समिति की 50 वर्ष की यात्रा की समीक्षा करने वाली पुस्तक ‘अहर्निशं सेवामहे’ का विमोचन भी किया। साथ ही हरिओम काका मालशे को उनके सामाजिक कार्यों के लिए सम्मानित किया।

सरसंघचालक ने कहा, “यह जनकल्याण समिति के सेवा कार्य के 50 वर्ष पूरे होने का उत्सव है। संकट के समय किसी न किसी को खड़ा होना पड़ता है और जब समाज संकट में होता है तो समाज में कुछ न कुछ करने वाले लोग भी होते हैं। पूरे देश में सेवा कार्य चल  रहे हैं और जनकल्याण समिति का कार्य उनमें से एक है।”

समरसता सेवा का सिद्धांत है और सद्भावना सेवा का व्यवहार। लेकिन सेवा का फल सेवा ही होता है। सेवा करते हुए यह अहंकार नहीं होना चाहिए कि हमने यह किया। समाज दिल खोलकर देता है। लेकिन समाज को पता चलना चाहिए कि ये लोग विश्वसनीय हैं। सेवा शब्द भारतीय है, जबकि सर्विस शब्द का तात्पर्य मुआवजे की अपेक्षा से है।

उन्होंने कहा कि, “सेवा मजबूरी नहीं है और न ही इसे भय से किया जा सकता है। सेवा हमारी वृत्ति है। मनुष्य का अर्थ ही संवेदना होता है। यह अस्तित्व की एकता का रहस्य है. यह एक आध्यात्मिक लेकिन वास्तविक सत्य है। करुणा का गुण चेतना से आता है जो सबमें विद्यमान होता है।”

अपनी प्रस्तावना में डॉ. रवींद्र सातलकर ने कहा, “जनकल्याण समिति पिछले 50 वर्षों से काम कर रही है। वर्तमान में, विदर्भ को छोड़कर शेष महाराष्ट्र में समिति 1880 परियोजनाएं चला रही है।”

तुकाराम नाईक ने मुख्य अतिथियों का परिचय कराया। जनकल्याण समिति के प्रांत सहमंत्री विनायक डम्बीर ने पुस्तक के बारे में जानकारी दी।

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