सेवा संगमः एक छोटा सा हुनर भी दिला सकता है बड़ी पहचान

सेवा संगमः एक छोटा सा हुनर भी दिला सकता है बड़ी पहचान

सेवा संगमः एक छोटा सा हुनर भी दिला सकता है बड़ी पहचानसेवा संगमः एक छोटा सा हुनर भी दिला सकता है बड़ी पहचान

जयपुर, 8 अप्रैल। जिस तरह छोटे-छोटे प्रयास एक बड़ी सफलता का मार्ग बनते हैं, ठीक उसी तरह एक छोटा सा हुनर आपको बड़ी पहचान दिला सकता है और आपके जीवन को ऊंचाइयों तक पहुंचाने के साथ नई पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक बन सकता है।

ऐसे कुछ उदाहरणों की कहानियां यहां जयपुर में चल रहे सेवा भारती के राष्ट्रीय सेवा संगम में युवाओं के लिए प्रेरणा का केंद्र बनी हुई हैं। राष्ट्रीय सेवा संगम परिसर में स्वावलंबी भारत अभियान के कार्यों और उपलब्धियों को लेकर लगाई गई प्रदर्शनी यही संदेश दे रही है कि सही समय पर सही मार्गदर्शन सफलता का मंत्र बनता है। ‘कला कौशल सीखो एक बार – नहीं होंगे कभी बेरोजगार’ के स्लोगन के साथ युवा उद्यमियों- रितेश अग्रवाल, दीपक गर्ग, श्रद्धा शर्मा, दिव्यांक तुरखिया, अर्चना मीना, रोहित शर्मा, स्मिता घेसास, वीरेन्द्र नागपाल आदि की सफलता की कहानी यहां प्रदर्शित की गई है, जो आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।

स्वावलंबी भारत अभियान की इस प्रदर्शनी की प्रभारी दिल्ली में स्वदेशी जागरण मंच के प्रकल्पों से जुड़ी वैशाली ने बताया कि स्वावलंबी भारत अभियान के अंतर्गत देशभर में 400 से भी अधिक जिला रोजगार केंद्र स्थापित किए गए हैं। इन केंद्रों पर युवाओं को प्रशिक्षण एवं किशोरों को कॅरियर मार्गदर्शन उपलब्ध हो, ऐसा प्रयास किया जा रहा है। जिन युवाओं को प्रशिक्षण के बाद स्वरोजगार शुरू करने के लिए धन की आवश्यकता होती है तो संगठन उन्हें सहयोग उपलब्ध कराता है।

वैशाली ने बताया कि दिल्ली सहित देश के कई केंद्रों पर विशेष रूप से एसी-फ्रिज-कूलर-वॉशिंग मशीन आदि इलेक्ट्रॉनिक उपकरण ठीक करने के प्रशिक्षण पर ज्यादा फोकस किया जा रहा है। इन प्रशिक्षणों के लिए कई जगह संबंधित विषयों में सरकारी और निजी महाविद्यालयों का भी सहयोग लिया जाता है। दिल्ली में आज यदि आपको एसी ठीक कराना है तो एक महीने तक तकनीशियन के आने की प्रतीक्षा करनी पड़ती है। ऐसे में अनुमान लगाया जा सकता है कि इस क्षेत्र में स्वरोजगार के कितने अवसर हैं। आत्मनिर्भर होने का लक्ष्य रखने वाले युवा चाहें तो स्वदेशी जागरण मंच, सेवा भारती और अन्य संगठनों से मार्गदर्शन प्राप्त करके स्वरोजगार के लिए स्वयं को तैयार कर सकते हैं। इसी तरह इलेक्ट्रिशियन और प्लम्बर भी आसानी से उपलब्ध नहीं होते हैं। इस क्षेत्र में भी महज कुछ समय का प्रायोगिक प्रशिक्षण युवाओं को स्वावलंबी बनने का अवसर प्रदान करता है।

उन्होंने कहा कि सरकार को भी शिक्षा के क्षेत्र में स्वावलंबन की सोच उच्च प्राथमिक स्तर से ही तैयार करने की दिशा में कार्य करना चाहिए ताकि आठवीं-दसवीं तक आते-आते बच्चा अपनी रुचि अनुसार अपने कार्यक्षेत्र का चुनाव करने में सक्षम हो सके। उम्र के इसी पड़ाव पर आत्मनिर्भरता का पाठ उसे पढ़ाया जाएगा तो कम आयु में सफलता के अच्छे आयाम प्राप्त करने की संभावना मजबूत हो सकेगी। उन्होंने अभिभावकों से भी अपील की कि वे बच्चों की औपचारिक शिक्षा के साथ व्यावहारिक शिक्षा पर भी ध्यान दें। इससे बच्चे के अकादमिक, व्यावसायिक, रचनात्मक आदि गुणों के बारे में अभिभावकों को जानकारी प्राप्त हो सकेगी।

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