हम एक हैं, इसलिए हमें एक रहना है – डॉ. मोहन भागवत

हम एक हैं, इसलिए हमें एक रहना है – डॉ. मोहन भागवत

हम एक हैं, इसलिए हमें एक रहना है – डॉ. मोहन भागवतप्रबुद्धजन गोष्ठी को सम्बोधित करते सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत

चंडीगढ़। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि जिन-जिन लोगों ने प्रामाणिकता, निःस्वार्थ बुद्धि से भारत के लिए काम किया है, वे जन्मे भले किसी एक प्रान्त में हों, एक भाषा को बोलने वाले रहे हों, लेकिन उनके विचारों के प्रभाव स्थान देश में सर्वत्र पाए जाते हैं। बौद्ध, जैन, सिक्खों के स्थान सर्वत्र भारत में हैं। हम मूल एक देश हैं, सनातन काल से एक राष्ट्र हैं। हमको इसलिए एक नहीं होना है कि हम अलग हैं, हम एक हैं, इसलिए हमें एक रहना है। सरसंघचालक 06 अक्तूबर सायं चंडीगढ़ में प्रबुद्ध नागरिक संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। उनके साथ प्रान्त संघचालक सरदार इकबाल सिंह व उत्तर क्षेत्र के संघचालक प्रो. सीताराम व्यास भी उपस्थित थे।

उन्होंने कहा कि स्वयंसेवकों ने समाज जीवन में बहुत काम किया है। विभिन्न संस्थाएं, संगठन खड़े किए हैं। वे स्वतंत्र, स्वायत्त संगठन हैं। समाज में किए गए उनके कार्य का श्रेय उन्हें ही मिलना चाहिए। उन पर नियंत्रण रखना या करना संघ की कार्यपद्धति में नहीं है।

सरसंघचालक ने कहा कि प्रामाणिकता से, निःस्वार्थ बुद्धि से देश के लिए काम करते रहें, ऐसे व्यक्ति निर्माण का काम संघ का है। संघ को समझने के लिए संघ के अंदर आकर देखना, संघ को समझने का सबसे उत्तम मार्ग है। जैसे चीनी की मिठास क्या होती है, उसे खाकर ही समझा जा सकता है। संघ को अंदर आकर देखिए। कार्यक्रमों में रहने के लिए आइये। स्थानीय लोगों (कार्यकर्ताओं) से सीधी बात करना, सम्बन्ध रखना, सब सहयोग मिलेगा।

डॉ. हेडगेवार जी समाज में सुधार के लिए बुनियादी सुधार की आवश्यकता का अनुभव करते थे। उनका चिंतन था कि बार-बार मुट्ठीभर लोग हजारों मील बाहर से आते हैं, संख्या व ताकत में कम होते हुए भी हमको जीत लेते हैं। इसका कारण है कि ये हमारा देश है, इस भावना को हम भूल गए हैं।

देश का विचार लेकर चलने वाले, सम्पूर्ण समाज को अपना मानकर, स्वयं किसी जाति पंथ सम्प्रदाय का हो, लेकिन सम्पूर्ण भारत मेरा है ऐसा मानकर चलने वाले और समाज का जिन पर विश्वास है, ऐसे जीने वाले लोग हों और जब पूरा समाज ऐसे चलता है तब भाग्य में, व्यवस्था में परिवर्तन आता है। व्यवस्था बना दी और लोग वैसे नहीं रहे तो व्यवस्था भी चौपट हो जाएगी।

हिन्दू शब्द को लेकर संघ की परिभाषा व्यापक है, उसमें पूजा आदि नहीं आती, जो भारत माता का पुत्र है, वह हिन्दू है। अपने देश की संस्कृति की विशेषता है कि वह सबको स्वीकार करती है, न कि टॉलरेट करती है। सबमें एकता है वो जानती है। इस संस्कृति को चलते रहने व सुरक्षित रखने के लिए त्यागी, परिश्रमी, बलिदानी महापुरुषों की श्रृंखला थी, इतिहास में उन लोगों के लिए हमारे मन में गौरव भाव है।

स्वयंसेवकों को क्या करना है यह नहीं बताया है, लेकिन लक्ष्य बताया है। हमें कुछ पाना नहीं है। अपनी चमड़ी-दमड़ी खर्च करके काम करते हैं, कम पड़े तो समाज से मांग लेते हैं।
प्रश्नोत्तर के दौरान सरसंघचालक डॉ. भागवत ने कहा कि किस की पूजा करो, यह संघ नहीं बताता। संघ किसी दल के साथ जाने को नहीं कहता। दलों ने हमारे लिए रास्ते बंद किए हैं। हमारी सबसे समान दूरी है, समान प्यार है। हमें परहेज नहीं। इसीलिए प्रणव दा को बुलाया।

उन्होंने बताया कि स्वयंसेवक ग्राम विकास को लेकर कार्य कर रहे हैं। ग्राम विकास की दृष्टि से 500 गांवों में अच्छा काम चल रहा है। 150 गांव दिखाने लायक भी बने हैं।

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