हलाल प्रमाणीकृत उत्पादों के पीछे की मजहबी मानसिकता को समझना होगा
27 मई 2020
– डॉ. शुचि चौहान
आज देश में हलाल प्रमाणपत्र जारी करने वाली अनेक संस्थाएं सक्रिय हैं। जिनमें हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, हलाल सर्टिफिकेशन सर्विस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, जमीअत उलमा –ए-महाराष्ट्र और जमीअत उलमा-ए –हिन्द हलाल ट्रस्ट प्रमुख हैं। ये संस्थाएं उन्हीं उत्पादों को यह प्रमाणपत्र जारी करती हैं जो इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार हलाल हैं।
इस्लाम में चीजों को हलाल और हराम के माध्यम से समझा जाता है। जो चीज शरिया नियमों के अनुसार हो उसे हलाल कहते हैं वरना वह हराम है। उत्पादों की बात करें तो हलाल केवल मांस ही नहीं होता; आटा, दाल, चावल, बिस्किट, नमकीन, पिज्जा, बर्गर, कॉस्मेटिक्स कुछ भी हो सकता है। यहॉं तक की संस्थानों जैसे अस्पताल, रेस्टोरेंट, होटल, फैक्ट्रियों और वेबसाइट्स तक को हलाल प्रमाणपत्र दिया जा रहा है।
हलाल प्रमाणपत्र देने वाली ये संस्थाएं दावा यह करती हैं कि हलाल प्रमाणपत्र शुद्धता के मानदण्डों पर दिया जाता है। हलाल इंडिया का कहना है – हलाल प्रमाणीकरण का अर्थ है, उत्पाद बनाने में क्लीन सप्लाई चेन और कम्प्लायंस का पूरा ध्यान रखा गया है, जिसमें सोर्सिंग से लेकर ट्रेड तक शामिल है, यानि कि कंपनियां हैंडलिंग, पैकेजिंग, लेबलिंग, वितरण और भंडारण में ‘कुछ’ स्टैंडर्ड्स का सख्ती से पालन करती हैं ताकि इन उत्पादों को हलाल प्रमाणित किया जा सके। यहॉं इस ‘कुछ’ में ही बहुत कुछ छिपा है। यदि हलाल इंडिया द्वारा पशुओं के स्लॉटरिंग की गाइडलाइन पढ़ें तो उसमें साफ लिखा है पशु या पोल्ट्री कटने लायक है या नहीं इसकी जांच करने से लेकर उसकी गर्दन काटने, ठीक से कटी या नहीं इसकी मॉनीटरिंग करने और लेबलिंग तक का काम कोई मुसलमान ही करेगा। इसके बाद वितरण और भंडारण का काम भी कोई मुस्लिम ही करेगा।
अन्य उत्पादों में भी पूरी तरह शरिया नियमों का पालन किया जाता है और उन्हें ही हलाल प्रमाणित किया जाता है जिनमें सुअर, कुत्ता, सॉंप, बंदर आदि के मांस, चर्बी या खाल आदि का प्रयोग न किया गया हो या शराब, बीवैक्स, गोमूत्र आदि का उपयोग न किया गया हो क्योंकि इस्लाम में ये हराम हैं। इनके उत्पादन में भी कच्चा माल तैयार करने से लेकर विपणन तक की पूरी चेन में मुसलमानों की बहुलता और कहीं कहीं तो बाध्यता है। साफ साफ शब्दों में कहें तो हलाल प्रमाणीकरण सिर्फ मुस्लिमों को रोजगार देने का एक संगठित षड्यंत्र है, इस चैनल में गैर मुस्लिमों के लिए कोई जगह नहीं।
मीडिया रिपोर्ट्स से पता चलता है कि आज दुनिया भर में हलाल उत्पादों का बाजार लगभग ढाई ट्रिलियन डॉलर का है। इस समानांतर अर्थव्यवस्था ने बाजार को प्रभावित किया है। मुस्लिम देश इस प्रमाणीकरण को मान्यता देते हैं। यदि भारत से कोई अपने उत्पाद को किसी इस्लामिक देश में निर्यात करना चाहता है तो उसे अपने उत्पाद को हलाल प्रमाणित करवाना होगा।
हलाल उत्पादों के प्रमाणीकरण की संकल्पना 2011 में मलेशिया में रखी गई थी। ये मुस्लिमों को रोजगार देने और समानांतर इस्लामिक अर्थव्यवस्था खड़ी करने के प्रयास थे। दुनिया भर के इस्लामिक बैंक भी इसी अर्थव्यवस्था का हिस्सा हैं। हलाल उत्पादों से पैसा कमाना और इस्लामिक बैंकों में जमा कराना फिर इस्लामिक बैंकों द्वारा मुस्लिम व्यापारी को पैसा उपलब्ध कराने का पूरा चक्र है। भारत में भी मुस्लिम संगठन मुसलमानों को हलाल उत्पाद खरीदने के लिए प्रेरित करते हैं, नहीं खरीदने पर अल्लाह और ईमान का डर दिखाते हैं। मजहबी विचार हावी होने के कारण मुसलमान सहज ही हलाल प्रमाणीकृत उत्पादों की ओर उन्मुख हो जाता है। लेकिन अधिकांश गैर मुस्लिम केवल उत्पाद से मतलब रखते हैं वे न तो यह जानने में रुचि रखते हैं कि हलाल प्रमाणीकरण क्या है और न ही उन्हें इससे कोई फर्क पड़ता है। इससे इस्लामिक अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है। उसे संगठित मुस्लिम उपभोक्ता के साथ ही गैर मुस्लिम उपभोक्ता भी सहज ही मिल जाते हैं। यही कारण हैं आज 15 प्रतिशत जनसंख्या के पीछे 85 प्रतिशत जनसंख्या पर हलाल उत्पाद थोपे जाने लगे हैं। इन उत्पादों की सप्लाई चेन के नियमों पर गौर करें तो इन संस्थाओं के उन दावों की भी पोल खुलती नजर आती है, जिनमें ये कहती हैं कि हलाल प्रमाणपत्र उत्पाद की गुणवत्ता के आधार पर दिया जाता है। इनके नियमों के अनुसार यदि ट्रांसपोर्टेशन के दौरान हलाल उत्पाद गैर हलाल उत्पाद से छू भर जाए तो भी वह हराम हो जाता है।
मजहबी संकीर्णता व दोहरे मापदण्डों की अनेक घटनाएं अक्सर सामने आती रहती हैं। पिछले दिनों गुजरात में मुस्लिम महिलाओं को हिंदुओं की दुकान से खरीददारी करने पर मुस्लिम कट्टरपंथियों ने बहुत बवाल काटा, लेकिन दूसरी ओर चेन्नई में जैन का विरोध किया जब उन्होंने अपने ढाबे में सिर्फ जैन कर्मचारियों द्वारा ही भोजन बनाए जाने की बात कही। आज आवश्यकता है इस मानसिकता को समझने की व आसपास हो रही गैर सनातनी गतिविधियों पर मुखर होने की।
इस्लामिक देशों में निर्यात के लिए हलाल प्रमाणीकरण आवश्यक हो सकता है लेकिन देश में इन उत्पादों का विरोध होना चाहिए।
ये संस्थाएं प्रमाणीकरण के नाम पर कम्पनियों से मोटा पैसा वसूलती हैं और जकात के नाम पर इसका एक निश्चित प्रतिशत दूसरे इस्लामिक संगठनों को देती हैं, जो इस्लाम के प्रचार प्रसार की आड़ में मतांतरण व अन्य जिहादी गतिविधियों पर खर्च होता है। यानि गैर मुसलमान पर दोहरी मार पड़ती है पहला तो संगठित हलाल अर्थव्यवस्था से बाहर होने के कारण छोटे असंगठित कामगारों का रोजगार छिनता है, दूसरा गैर मुस्लिम व्यापारी भी मुस्लिमों को एक बाजार के रूप में देखते हुए हलाल प्रमाणपत्र लेने के लिए आकर्षित होते हैं जिसके लिए मुस्लिम संस्थाओं को मोटी रकम चुकाते हैं। जिससे प्रत्यक्ष रूप से इस्लामिक अर्थव्यवस्था तो अप्रत्यक्ष रूप से इनकी जिहादी गतिविधियों को मजबूत बनाने में सहायक होते हैं। यह वैसा ही है जैसे मुगलकाल में यदि कोई हिंदू मुसलमान बनना अस्वीकार कर देता था तो उसे जजिया कर देना पड़ता था। आज यदि आपको अपने उत्पाद मुसलमानों को बेचने हैं तो हलाल प्रमाणपत्र पाने के लिए आपको मुस्लिम संस्थाओं को मोटी रकम चुकानी होगी।
हलाल प्रमाणीकृत संस्थाएं गैर मुस्लिम ग्राहकों का मोह भी छोड़ नहीं पातीं। ऐसे में वे अपने हलाल स्टेटस को प्रचारित नहीं करतीं लेकिन उनकी वेबसाइट पर जाने या पूछताछ करने पर सारी असलियत सामने आ जाती है। आज गैर मुस्लिमों को अपना भला बुरा स्वयं समझ कर मुखर बनना होगा। क्योंकि भारत के गैर मुसलमान मात्र उपभोक्ता नहीं हैं उनके अपने विश्वास व आस्थाएं हैं, उन्हें भ्रम में रखकर उनकी भावनाओं से खिलवाड़ बंद होना चाहिए।
दूसरी ओर जब शुद्धता के मानदंडों को परखने व प्रमाणित करने के लिए देश में अन्न सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) और अन्न एवं औषधि प्रशासन (FDA) जैसी सरकारी संस्थाएं हैं तो सरकार को हलाल प्रमाणपत्र देने वाली निजी धार्मिक संस्थाओं को अवैध घोषित कर देना चाहिए। देश में हलाल प्रमाणीकरण को प्रतिबंधित कर, इस्लामिक देशों में निर्यात के लिए आवश्यक प्रमाणपत्र स्वयं जारी करने चाहिए और या फिर हिंदू संगठनों की मांग पर उन्हें भी अपने उत्पादों के लिए धार्मिक या सनातन प्रमाणपत्र जारी करने की अनुमति दे देनी चाहिए।