हल्दीघाटी में हुई थी प्रताप की ऐतिहासिक विजय

18 जून – हल्दीघाटी का महासमर स्मृति दिवस विशेष

माणक चन्द

पिछले कई वर्षों से हल्दीघाटी का युद्ध समाचार पत्रों में चर्चा का विषय बना हुआ है। हल्दीघाटी के युद्ध में विजय महाराणा प्रताप की हुई थी। इसके बाद हरियाणा सरकार ने भी यही दोहराया कि जीते महाराणा ही थे। इस पर लेफ्ट लिबरल का परेशान होना स्वाभाविक ही था। इरफान हबीब और रोमिला थापर जैसे धुर वामपंथी भी मैदान में उतर आए।

इस बार पुनः सत्र 2020 के पाठ्यक्रम में परिवर्तन करके हल्दीघाटी युद्ध का विवरण छोटा किया गया है। प्रताप की छतरी का विवरण व नीला घोड़ा रा असवार गीत भी हटाया गया है।

वस्तुतः जिनकी आंखों पर परंतत्रता के चश्मे चढ़े हैं वे ही महाराणा प्रताप की विजय पर संदेह व्यक्त करते हैं। विभिन्न स्थानों पर प्राप्त प्राचीन शिलालेख और देशज इतिहासकारों के वर्णन असंदिग्ध रूप से मुगल बादशाह अकबर की पराजय की बात करते हैं। मेवाड़ की जनता तो यह मानती ही है।

मेवाड़ ने भारत की स्वतंत्रता की मशाल थाम रखी थी। अकबर ने अब मेवाड़ पर नियंत्रण का प्रयास शुरू किया। हल्दीघाटी का महासमर 18 जून 1576 में महाराणा और अकबर के लंबे संघर्ष की पहली मुठभेड़ थी।

अकबर की दुर्गति
हल्दीघाटी के युद्ध में पराजित होने के बाद अकबर ने मेवाड़ पर छह आक्रमण और किए। कभी मुगलों के हाथ में कुछ क्षेत्र आता, तो प्रताप फिर उसे जीत लेते। प्रश्न उठता है कि यदि हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर जीता तो बार-बार उसे मेवाड़ पर आक्रमण क्यों करने पड़े। जीतने वाले को फिर से आक्रमण करने की आवश्यकता नहीं होती। हारने वाला जरूर बार-बार प्रयास करता है।

मानसिंह की ड्योढ़ी बंद क्यों हुई?
हल्दीघाटी युद्ध में बाईस हजार मेवाड़ी वीरों ने अस्सी हजार मुगलों का मुकाबला किया था। हल्दीघाटी के एक ओर लोसिंग में महाराणा के भारतीय वीर थे तो दूसरी ओर मोलेला में मानसिंह और आसफ खाँ की छावनी थी। मुगल सेना के दिखाई पड़ते ही मेवाड़ी सेना के हकीम खां सूर ने आठ सौ पठान घुड़सवारों के साथ मुगलों पर हल्ला बोल दिया। इसी के साथ दाईं ओर से रामशाह तंवर ने मुगलों के बाएं हिस्से को धर दबाया। खमनोर में दोनों सेनाओं में भीषण युद्ध होने लगा। कुछ समय बाद प्रताप भी वहां पहुंच गए। चेतक ने सामने के दोनों पैर मानसिंह के हाथी के माथे पर जमा दिए और प्रताप ने निशाना साध कर अपना भाला चलाया। मानसिंह ने हाथी के हौदे के पीछे छिपकर जान बचाई। लेकिन महावत वहीं ढेर हो गया। बिना महावत के हाथी भागने लगा तो मुगल सेना में भगदड़ मच गई। विजयश्री नजदीक दिखाई पड़ने लगी। तभी जंगलों में छिपा मिहतर खान अपनी सेना के साथ सहायता के लिए आ पहुंचा। वह यह भी शोर मचा रहा था कि बादशाह अकबर खुद युद्ध भूमि में आ गए हैं।भागती सेना के कदम रुक गए। वे लौट पड़े और पलटकर महाराणा पर आक्रमण कर दिया।

‘वीर विनोद’ में कविराज श्यामलदास ने लिखा है कि सब सरदारों के साथ विचार विमर्श कर प्रताप ने मुगलों से पहाड़ों में युद्ध करने की रणनीति बनाई थी। उसके अनुसार सैनिकों को संकेत किया गया और मेवाड़ी जवान चतुराई से पीछे हटने लगे। मुगलों से घिरे प्रताप को झाला मान ने बाहर निकाला। झाला मान ने प्रताप के राजसी चिन्ह धारण कर लिए। मुगलों ने उन्हें प्रताप समझ लिया। काफी देर तक युद्ध करने के बाद झाला मान साथियों सहित वीरगति को प्राप्त हुए। इसी बीच प्रताप कोल्यारी पहुंच गए और मेवाड़ी सेना के जीवित बचे आठ हजार योद्धा पहाड़ियों में मोर्चा लगा कर बैठ गए।

युद्ध में जीतने वाली सेना हमेशा हारने वालों का पीछा करती है, लेकिन मानसिंह की हिम्मत नहीं हुई कि वह प्रताप का पीछा करे। दो दिन के बाद उसने पहाड़ों में घुसने की हिम्मत जुटाई और खाली पड़े गोगुंदा पर अधिकार कर लिया। इसके बाद भी प्रताप का डर मुगलों को सताता रहा और उन्होंने गोगुंदा के चारों ओर गहरी खाई खुदवा कर ऊंची बाड़ भी बनवा दी। प्रताप ने वहां पहुंचने के सभी रास्तों को रोक दिया। गोगुंदा आने के सभी मार्गों पर प्रताप के वीर सैनिकों ने मोर्चा संभाल लिया। अब मुगलों को खाने पीने की कठिनाई आने लगी। सैनिक भूखों मरने लगे। मानसिंह महाराणा प्रताप को बंदी बनाने का सपना देख रहा था और उधर रात में मेवाड़ी वीर उसकी छावनी पर छापे मारने लगे। हैरान परेशान मानसिंह तीन महीने बाद आगरा लौट गया। अकबर मानसिंह और आसफ खाँ से इतना नाराज हुआ कि उसने दोनों के दरबार में आने पर रोक लगा दी।

प्रश्न उठता है कि यदि युद्ध में मुगल जीत गए थे तो अकबर ने मानसिंह के दरबार में आने पर रोक क्यों लगा दी थी।  विजेता का तो स्वागत सत्कार किया जाता है।

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1 thought on “हल्दीघाटी में हुई थी प्रताप की ऐतिहासिक विजय

  1. यदि वर्तमान राजस्थान सरकार ने इस युद्ध की महत्ता को कम करने के लिए ऐसा कुत्सित प्रयास किया है तो इसका कड़ा विरोध होना चाहिए

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