हांगकांग समस्या और चीन की लोकतंत्र के प्रति अनास्था
प्रीति शर्मा
कुछ महीनों से चीन में हांगकांग संबंधी आधारभूत कानून के अनुच्छेद 23 में संशोधन द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के विरुद्ध प्रदर्शन हो रहे हैं जिसके पीछे मूल कारण हांगकांग की स्वतंत्रता पर कठोर प्रहार कर चीन उसे अपने पूर्ण नियंत्रण में लाने के लिए संशोधन करना चाहता है।
चीन जहां एक ओर भारत के साथ सीमा विवाद में मुखर होकर अपनी शक्ति का मिथ्या प्रदर्शन करता है वहीं उसकी आंतरिक राजनीति में हांगकांग को लेकर उथल-पुथल निरंतर बनी हुई है जो चीन की वास्तविक शक्ति को संपूर्ण विश्व के सामने धूमिल करती है।
हांगकांग की समस्या चीन के लिए नई नहीं है। 1997 में हांगकांग को ब्रिटिश उप निवेशकों ने चीन को सौंपा था वह तब से विशेष प्रशासनिक क्षेत्र बना। हांगकांग का प्रशासन 1984 के चीन ब्रिटेन संयुक्त घोषणा पत्र से उत्पन्न एक ‘आधारभूत कानून’ नामक ‘छोटे संविधान’ द्वारा चलाया जा रहा था जो ‘एक देश दो व्यवस्था’ के सिद्धांत का समर्थन करता है। इस घोषणा पत्र के अनुसार चीन वर्ष 2047 तक हांगकांग की स्वतंत्र नीतियों, शासन व्यवस्था, स्वतंत्र न्यायपालिका तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सम्मान करने हेतु वचनबद्ध है। किंतु चीन की दमनकारी नीतियों के अनुरूप समय-समय पर हांगकांग की स्वतंत्रता का ह्रास करने के लिए इसके द्वारा लाए गए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून, प्रत्यर्पण कानून आदि के विरोध में हांगकांग में विरोध प्रदर्शन होते रहे हैं।
हांगकांग में लोकतंत्र के समर्थन में प्रदर्शन वर्ष 2003 से लगभग निरंतर ही होते रहे हैं। वर्ष 2014 में चीन द्वारा लोकतंत्र विरोधी कानून के विरुद्ध लगभग एक लाख से अधिक प्रदर्शनकारियों ने अंब्रेला आंदोलन चलाया। तत्पश्चात वर्ष 2019 में प्रत्यर्पण कानून के विरोध में हांगकांग की जनता द्वारा सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन किया गया जिसकी लपटें चीन की राजनीति में यदा-कदा भीषण रूप ले लेती हैं। 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में ताइवान के मतदाताओं द्वारा डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव दल के सत्ता में आने के बाद चीन के विरुद्ध स्पष्ट विरोध प्रदर्शन हो ही जाता है।
वर्तमान में कुछ महीनों से चीन में हांगकांग संबंधी आधारभूत कानून के अनुच्छेद 23 में संशोधन द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के विरुद्ध प्रदर्शन हो रहे हैं जिसके पीछे मूल कारण हांगकांग की स्वतंत्रता पर कठोर प्रहार कर चीन उसे अपने पूर्ण नियंत्रण में लाने के लिए संशोधन करना चाहता है। इस कानून के आने पर चीन के विरुद्ध गतिविधियों अर्थात राजद्रोही गतिविधियों, आतंकवाद तथा विदेशी हस्तक्षेप पर पूर्ण रोक लगा दी जाएगी जिसके पीछे चीन की मंशा हांगकांग की स्वतंत्रता को कम कर उस पर पूर्ण आधिकारिक नियंत्रण स्थापित करना है।
उक्त तथ्यों से स्पष्ट है चीन आंतरिक रूप से लोकतंत्र के समर्थन में होने वाले प्रदर्शनों व गतिविधियों से जूझ रहा है, जो विश्व में लोकतंत्र में बढ़ती आस्था का संकेत है तथा चीन को यह समझ जाना चाहिए कि पड़ोसी लोकतंत्र समर्थक देशों के प्रति सौहार्दपूर्ण व्यवहार की विदेश नीति का प्रभाव निश्चय ही उसकी आंतरिक व्यवस्था पर पड़ेगा और जनमानस का विश्वास सरकार के प्रति बढ़ सकेगा।
दुनिया में सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के प्रति घेराव की कुचेष्टा को त्याग कर भारत के प्रति शांतिपूर्ण एवं सौहार्दपूर्ण भावना रखकर तथा लोकतंत्र के प्रति सम्मानजनक दृष्टि रखकर चीन अपनी आंतरिक समस्याओं से मुक्ति पा सकता है क्योंकि साम्यवाद का डंका बजाने वाले चीन की आंतरिक भूमि पर साम्यवाद के प्रति जनमानस की आस्था धीरे धीरे विलुप्त होती जा रही है।
भारत का सौहार्दपूर्ण लोकतंत्र संपूर्ण विश्व में सबसे विलक्षण है जिसमें शत्रु के लिए भी सहयोग और सम्मान का भाव निहित है। जन संप्रभुता के भाव से ओतप्रोत प्राचीन भारतीय संस्कृति सदैव ही साम्राज्यवाद की विरोधी और वसुधैव कुटुंबकम की समर्थक रही है। अत: चीन को पड़ोसी राष्ट्रों से द्वेष छोड़कर सर्वप्रथम लोकतंत्र के चिर अनुभवी भारत की जनतांत्रिक नीतियों को सम्मान देते हुए अपनी आंतरिक समस्या का निवारण करना चाहिए क्योंकि भविष्य में विश्व लोकतंत्र के प्रसार का साक्षी बनेगा।