आंदोलनकारी ‘किसानों’ पर खेतों में काम कर रहे किसानों का गुस्सा फूटा
गणतंत्र दिवस पर किसान आंदोलन के नाम पर जो गुंडागर्दी हुई, उसके बाद राजस्थान में खेतों में काम कर रहे किसानों का गुस्सा फूट पड़ा। दिल्ली-जयपुर हाईवे पर दो स्थानों पर आंदोलनकारियों का पड़ाव है। हिंसा के बाद 42 गांवों ने प्रदर्शनकारियों को 24 घंटों में हाईवे खाली करने के लिए कहा है। साथ ही न हटने पर कड़ा फैसला लेने की चेतावनी भी दी है। इस हेतु महापंचायत भी बुलाई गई। ग्रामीणों का कहना है कि इस आंदोलन में क्षेत्र का कोई भी किसान शामिल नहीं है, इसलिए आंदोलनकारियों को यह स्थान खाली कर देना चाहिए। दूसरी ओर हाईवे पर पड़ाव होने के कारण हाईवे का ट्रैफिक अब गांवों से होकर गुजरने लगा है, जिससे गांव वालों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
गोविंदगढ़ के किसान मुकेश कहते हैं – ये कैसे किसान हैं जो सीजन में खेतों के बजाय यहां बैठे हैं। आज खेतों में गेहूं की फसल खड़ी है। समय पर खाद, पानी देना है, जानवरों से खेतों की रक्षा करनी है। छोटी जोत के किसान हों या बड़ी, सभी आजकल खेतों में व्यस्त हैं। किसानों के लिए गेहूं एक बड़ी फसल होती है। ऐसे में किसी के पास समय नहीं है कि वह 250 किमी ट्रैक्टर लेकर जाए और किसी प्रोपेगेंडा का हिस्सा बने। वे आगे कहते हैं जिस आंदोलन में खालिस्तान समर्थन के नारे लग रहे हों, खालिस्तान के झंडे लहराए जा रहे हों और तिरंगे का अपमान हो रहा हो उस आंदोलन का एजेंडा आसानी से समझा जा सकता है। कोई अपना नाम राजा रख लेने से राजा तो नहीं बन जाता?
टोंक के मानसिंह कहते हैं – मेरे पास 20 बीघा सिंचित जमीन है। मैंने 15 बीघा में गेहूं लगाया है। इस खेत में उपजे गेहूं से ही पूरे साल मेरे घर में रोटियां सिकेंगी। इसको छोड़कर हम धरना प्रदर्शनों में नहीं जा सकते। हमारा परिवार अच्छा खाता पीता परिवार है। लेकिन हम 250 किमी ट्रैक्टर ले जाने की कीमत समझते हैं। पसीने की कमाई खाने वाला मजदूर हो या किसान कभी देशद्रोही हरकतें नहीं करता।
यही हाल पड़ाव वाले दूसरे स्थानों का है। हरियाणा के सोनीपत में नेशनल हाईवे-44 पर गुरुवार दोपहर गांव रसोई के पास आंदोलनरत किसानों और आसपास के गांवों के किसानों के बीच टकराव की स्थिति बन गई।
अटेरना और मनौली सहित आसपास के गांवों से दर्जनों किसान रसोई से आगे रोमन कोर्ट के पास से गांवों में जाने के लिए रास्ता खोलने की मांग कर रहे थे। काफी देर हंगामा होने और आंदोलन में शामिल सैकड़ों किसानों के जुटने के बाद आसपास के गांवों से आए किसान लौट गए। अब उन्होंने प्रशासन से मामले में कार्रवाई करते हुए रास्ता देने की मांग की है। यहां से अटेरना, मनौली, बढ़खालसा सहित कई अन्य गांवों को रास्ता जाता है। ग्रामीणों ने किसानों से रास्ता खाली करने को कहा ताकि उन्हें हाईवे से होते हुए अपने गांवों में जाने में आसानी हो सके। इसी बात पर दोनों पक्षों में तनातनी हो गई। आसपास के गांवों के किसानों का आरोप था कि हाईवे बंद होने के कारण वह अपनी सब्जी लेकर बाहर नहीं निकल पा रहे हैं जिससे उनका नुकसान हो रहा है।