हिंद महासागर में भारत

– प्रीति शर्मा

भारत हिंद महासागर में एक महाशक्ति के रूप में अपनी छवि सार्थक करता रहा है। वह चाहे सार्क देशों की सहायता करना हो या पूर्व की ओर देखो नीति, वर्तमान की एक्ट ईस्ट पॉलिसी हो या फिर पश्चिम की ओर देखो नीति, इन सभी नीतियों में भारत की इच्छा पूर्व और पश्चिम के पड़ोसी देशों के साथ सामरिक आर्थिक संबंध मजबूत बनाने के साथ-साथ हिंद महासागर को चीन की महत्वाकांक्षी नीतियों तथा अमेरिका की क्षेत्र पर प्रभाव स्थापित करने की नीयत से हिंद महासागर को सुरक्षित एवं शांतिपूर्ण बनाए रखना थी।

हिंद महासागर एक बहुत ही संवेदनशील क्षेत्र रहा है जो समुद्री व्यापार हेतु पूरब और पश्चिम के बीच एक सरल मार्ग उपलब्ध करवाने के साथ-साथ समुद्री डकैतों और आतंकवादियों के लिए भी अवसर उपलब्ध करवा सकता है। अतः भारत के लिए हिंद महासागर को शांतिपूर्ण एवं सुरक्षित बनाए रखना एक गंभीर चुनौती है। इस दिशा में भारतीय सरकारों ने वर्षों से कई प्रयास किए जिनमें पड़ोसी देशों के साथ शांतिपूर्ण एवं सहयोग पूर्ण संबंध स्थापित करना मुख्य रहा। भारत सरकार द्वारा चीन की बेल्ट एंड रोड नीति के चलते चीन के बढ़ते प्रभाव के विरुद्ध भारत ने ईरान के साथ घनिष्ठ सामरिक, आर्थिक संबंधों की स्थापना की। ईरान के चाबहार बंदरगाह के विकास में भारत का पूर्ण योगदान रहा।

मलेशिया के साथ भी भारत ने एक अच्छे व्यापार सहयोगी की भूमिका निभाई। किंतु हाल ही में अनुच्छेद 370 के हटाए जाने और नागरिकता संशोधन कानून लाने पर मलेशिया द्वारा भारत में मुसलमानों के लिए इन कानूनों का दमनकारी होना जैसी नकारात्मक टिप्पणियों से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय  संबंधों में खटास आ गई। जिसका निवारण मलेशिया के नए प्रधानमंत्री द्वारा आपसी व्यापार के तहत शांतिपूर्ण हाथ बढ़ाकर किया गया। भारत द्वारा भी मलेशिया के साथ संबंधों की घनिष्ठता की कतार में कोविड से निपटने हेतु मदद एवं मलेरिया की रोकथाम से संबंधित दवाई हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन भेजी गई। वर्तमान में चीन के हिंद महासागरीय क्षेत्रों में चल रहे समस्त विकास कार्यक्रम ऋण ग्रस्त हो गए हैं, जिनके विरुद्ध भारत की एक सहायक एवं विश्वसनीय मित्र देश के रूप में छवि उभर कर आ रही है। ईरान भी इस समय भारत के साथ इस महामारी से निपटने के लिए सहायता एवं यूएस-ईरान संबंधों में भारत की सकारात्मक भूमिका की अपेक्षा करता है। शांतिपूर्ण सह अस्तित्व एवं अहिंसा जैसे मूल्यों का अंतरराष्ट्रीय संबंधों के पक्ष में वर्षों से पालन करने वाला राष्ट्र भारत निश्चय ही हिंद महासागर एवं पड़ोसी देशों के संदर्भ में सकारात्मक एवं विकासमुखी भूमिका का निर्वहन करेगा और विश्व में विजिगिशु की संकल्पना को साकार करने में समर्थ होगा। क्योंकि भारत की नीतियां सदैव ही मानव कल्याण के लिए उसकी तत्परता की साक्षी रही हैं जो किसी भी देश के लिए ऐसे देश की मित्रता पर विश्वास करने से नहीं रुकतीं, साथ ही भारत किसी भी आपदा या संकट से निपटने में एक उत्तरदायित्व पूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है, जिसका साक्षी वर्तमान में संपूर्ण विश्व रहा है। जबकि विश्व में महाशक्तियां पारस्परिक आरोप-प्रत्यारोप में संलग्न हैं, विश्व स्वास्थ्य संगठन की भूमिका संदेहास्पद हुई है, विकसित राष्ट्र अल्प विकसित एवं विकासशील राष्ट्रों की अर्थव्यवस्था एवं मानव जाति की रक्षा की परवाह किए बिना स्वयं को पृथक कृत कर अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने की मुहिम में व्यस्त हैं। ऐसे समय में अपरिहार्यता है कि भारत परिस्थितियों पर दृष्टि रखते हुए वैश्विक संकट की इस घड़ी में विश्व गुरू की भूमिका निभाते हुए सकारात्मक प्रयास करता रहे।

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