हिन्दू जीवन दर्शन में सोलह संस्कार

सनातन धर्म में सोलह संस्कार

वैद्य चन्द्रकान्त गौतम

हिन्दू जीवन

हिंदू जीवन दर्शन में संस्कारों का आशय गुणों का समावेश करने तथा अवगुणों का त्याग करने से है। संस्कारों से अंत:करण शुद्ध होता है। हमारी संस्कृति में गर्भाधान से लेकर मृत्यु पर्यन्त 16 संस्कारों का विधान है जो इस प्रकार हैं-

गर्भाधान:

शुभ घड़ी, शुभ मुहूर्त में शुभ संकल्प के साथ गर्भाधान हो ऐसा विधान है।

पुंसवन:

इसमें विष्णु भगवान की पूजा की जाती है तथा गर्भ रक्षा के उपाय बताए जाते हैं।

सीमंत:

गर्भधारण के सातवें या आठवें मास पर पूजा का विधान है।

जातकर्म:

यह संस्कार बालक के जन्म के पश्चात किया जाता है।इसमें बालक की दीर्घायु, बुद्धि सम्पन्नता व ज्ञान वृद्धि के लिए ईश्वर से प्रार्थना की जाती है और बालक को आशीर्वाद दिया जाता है।

नामकरण:

यह संस्कार जन्म के दसवें दिन करने का विधान है।इसे दष्ठोन भी कहते हैं।इसमें बच्चे के जन्म के समय के ग्रह-नक्षत्रों को ध्यान में रखते हुए शास्त्रोक्त सुन्दर नाम रखा जाता है।

निष्क्रमण:

यह बालक को घर से पहली बार बाहर ले जाने का संस्कार है।पहले यह जन्म के चार माह पश्चात किया जाता था।इसमें प्रथम बार सूर्य दर्शन कराया जाता है।

अन्न प्राशन:

इसमें बालक को अन्न खिलाना प्रारंभ करते हैं। यह जन्म से छठे मास में किया जाता है।

चूड़ाकर्म:

इसे मुण्डन संस्कार भी कहते हैं।इसे बालक के जन्म से तीसरे वर्ष में करने का विधान है।

कर्ण वेध:

इसमें बालक के कर्ण छेदन का प्रावधान है।इसको जन्म से पांचवें वर्ष में करने का विधान है।

विद्यारंभ:

इसमें बालक को विद्याध्ययन प्रारंभ करने हेतु गुरु के पास (विद्यालय) ले जाने का विधान है।

उपनयन:

इसे यज्ञोपवीत संस्कार भी कहते हैं।इसमें यज्ञोपवीत धारण कर शिक्षा के लिए गुरु के पास जाने का विधान है।

केशांत:

यह केश-कर्तन का संस्कार है।इसके लिए 16 वर्ष का समय उचित माना गया है।इस आयु में बालक के दाढ़ी-मूंछ आने लगती हैं।उसके शरीर और मन में यौवन प्रवेश करने लगता है।ब्रह्मचर्य और संयम के प्रति ध्यान आकर्षित करवाना इस संस्कार का हेतु है।

वेदारंभ:

यह संस्कार उपनयन के साथ या उसके पश्चात सम्पन्न होता था। यह विद्या के प्रारंभ व शास्त्रों के अध्ययन के लिए होता था।

समावर्तन:

इसे दीक्षांत संस्कार भी कहते हैं।यह विद्याध्ययन पूर्ण होने पर सम्पन्न होता था।इसमें शिष्य गुरु दक्षिणा देता है।

विवाह:

शोडष संस्कारों में विवाह संस्कार सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।इसी संस्कार से मनुष्य का गृहस्थ जीवन प्रारंभ होता है।

अन्त्येष्टि:

मानव के देहत्याग पश्चात, उसकी देह को अग्नि के समर्पित करना ही अन्त्येष्टि संस्कार है।संस्कारों में सबसे आखिर में होने से इसे अन्तिम संस्कार भी कहते हैं।

हमारी हिन्दू संस्कृति में उपर्युक्त सभी संस्कार समुचित शास्त्रोक्त रीति-रिवाज से सम्पन्न कराने का विधान है।

(लेखक आयुर्वेद विभाग, राजस्थान में कार्यरत हैं)

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