19 जुलाई का डोडा नरसंहार, जब आतंकियों ने एक ही परिवार के 15 लोगों को मौत के घाट उतार दिया

19 जुलाई का डोडा नरसंहार, जब आतंकियों ने एक ही परिवार के 15 लोगों को मौत के घाट उतार दिया

19 जुलाई का डोडा नरसंहार, जब आतंकियों ने एक ही परिवार के 15 लोगों को मौत के घाट उतार दियासांकेतिक तस्वीर

कश्मीर के डोडा जिले ने अब तक दो दर्जन से भी अधिक नरसंहार देखे हैं। जिनमें इस्लामिक आतंकियों ने हिन्दुओं को अपना निशाना बनाकर भय का माहौल बनाने के प्रयास किए। यहॉं पहला नरसंहार हुआ था 13-14 अगस्त 1993 को, जब डोडा जिले के किश्तवाड़ कस्बे में सरथल-किश्तवाड़ मार्ग पर यात्री बस से उतारकर 17 हिन्दू यात्रियों की हत्या कर दी गई थी। उसके बाद तो जैसे यह सिलसिला चल पड़ा। लेकिन 1993 से लेकर अब तक के कालखंड में जो सबसे वीभत्स हत्याकांड था वह था 19 जुलाई 1999 का। इस दिन इस्लामिक आतंकियों ने डोडा से 50 किमी दूर ठाठरी गाँव में एक ही परिवार के 15 लोगों की निर्मम हत्या कर दी थी।

पांच भाइयों के परिवार के 20 सदस्य 13 घंटों तक आतंकियों से लड़ते रहे। रात के अँधेरे में जब चारों तरफ से गोलियाँ चल रही थीं, तब शकुंतला और संतोषा बच्चों को लेकर भाग निकलीं। अगले सवेरे जब जीवित बची शकुंतला सीआरपीएफ को बुलाकर लाईं तब तक उनकी दुनिया उजड़ चुकी थी। परिवार के 15 सदस्यों की लाशें वहॉं पड़ी थीं, जिनमें चार पुरुष विलेज डिफेन्स कमेटी के सदस्य भी थे। विलेज डिफेन्स कमेटियाँ नब्बे के दशक में आतंकियों से लड़ने के लिए बनाई गई थीं।

24 साल के जोगिंदर उस समय बच्चे थे, जब उनका परिवार आतंकियों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गया था। जोगिंदर का लालन पालन जम्मू के अनाथालय में हुआ था। आज वे उच्च शिक्षा के लिए जाने वाले हैं। उन्हें पुणे के एक एनजीओ से पढ़ने के लिए सहायता मिली है। बीस साल पहले हुए कत्ल-ए-आम के बाद जीवित बचे सदस्यों और बाद में पैदा हुए वंशजों में से कोई भी उस गाँव में नहीं गया। सरकार ने परिवार के जीवित बचे सदस्यों को मुआवजे के रूप में जमीन का एक टुकड़ा, एक-एक लाख रुपए और पाँच नौकरियाँ दी थीं। हमले में बचे सदस्यों को आज भी अपने परिजनों की चीखें और खून से सनी लाशें भयभीत करती हैं। वो ऐसी यादे हैं जो कभी मिट नहीं सकतीं।

डोडा जिले में बड़े पैमाने पर हुए नरसंहार इस्लामिक आतंक के सार्वजनिक गवाह हैं। इस्लाम किस तरह से अपने पांव पसारता है इसके प्रत्यक्ष प्रमाण भी। जिले में हुए कुछ और नरसंहार, जिनमें हिन्दू निशाना बने :

5 जनवरी 1996 : डोडा जिले के किश्तवाड़ कस्बे के बरशाला में 16 हिन्दुओं की हत्या।

12 जनवरी 1996 : डोडा जिले के भद्रवाह कस्बे में 7 हिन्दुओं की हत्या।

6 मई 1996 : डोडा की रामबन तहसील के सुम्बर गांव में 17 हिन्दुओं की हत्या।

7-8 जून 1996 : डोडा जिले के कमलाड़ी गांव में 9 हिन्दुओं की हत्या।

25 जून 1996 : डोडा के सियुधार क्षेत्र में 13 लोगों की हत्या।

15 अक्तूबर 1997 : डोडा के कुंडधार में 6 की हत्या।

6 अप्रैल 1998 : डोडा के देस्सा क्षेत्र में 9 की हत्या

6 मई 1998 : डोडा के देस्सा गांव में 11 सुरक्षा समिति के हिन्दू सदस्यों की हत्या।

19 जून 1998 : डोडा के चम्पनारी में 29 हिन्दू बारातियों की हत्या। मृतकों में 3 दूल्हे भी शामिल।

27 जुलाई 1998 : डोडा में किश्तवाड़ के छिन्ना ठकुराई व श्रवण गांवों में 20 हिन्दुओं की हत्या।

28 जुलाई 1998 : डोडा के सरवान क्षेत्र में 8 लोगों की हत्या।

2 अगस्त 2000 : डोडा के बनिहाल कस्बे में पोगल में 12 हिन्दुओं की हत्या।

2 अगस्त 2000 : डोडा के महिगाम में तीन हिन्दुओं की हत्या।

2 अगस्त 2000 : डोडा के मरवाह क्षेत्र में 8 ग्राम सुरक्षा समिति के सदस्यों की हत्या।

22 नवंबर 2000 : बनिहाल में राजमार्ग पर 5 हिन्दू-सिख ट्रक ड्राइवरों की हत्या।

24 नवंबर 2000 : डोडा के किश्तवाड़ कस्बे में 5 हिन्दुओं की हत्या।

10 मई 2001 : किश्तवाड़ के अठोली-पाडर के सजार कस्बे में 8 हिन्दुओं की गला रेत कर हत्या।

21 जुलाई 2001 : डोडा जिले की किश्तवाड़ तहसील के छात्रू क्षेत्र में 5 हिन्दुओं की हत्या।

21 जुलाई 2001 : डोडा जिले की किश्तवाड़ तहसील में वाडवान क्षेत्र में चिरजी मोहड़ा गांव में 15 हिन्दुओं की हत्या।

4 अगस्त 2001 : डोडा जिले की किश्तवाड़ तहसील के सरूतधार क्षेत्र में 16 हिन्दुओं की हत्या।

23 अगस्त 2001 : डोडा के बनिहाल क्षेत्र में एक नरसंहार में 4 हिन्दुओं की हत्या।

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