2020 पुनर्जागरण का एक क्रांतिकारी साल
प्रीति शर्मा
भारत विकासशील अर्थव्यवस्था होते हुए भी संतुलित जीवन शैली के दर्शन एवं आध्यात्म के चलते ही संघर्षपूर्ण महामारी वर्ष 2020 को पार कर अगले दशक की तरफ कदम बढ़ा रहा है।
2020 कोरोना के दुष्प्रभाव से संघर्ष करते हुए महामारी द्वारा दिए हुए शून्य को भरकर विश्व को विशेषत: भारत को कई बातों में इक्कीस कर गया। तकनीक में महारथी 21वीं सदी के मानव को विज्ञान इतना रास आ गया था कि सामाजिक दायित्व से वह दूर होता गया। यह विकट परिस्थितियों में मानवता का पाठ पढ़ा गया जो साधारण जीवन जीते हुए सब भूल बैठे थे। यदि 2020 का विश्लेषण करें तो बेरोजगार सूनी आंखें, महामारी से अपनों को खोने के दर्द, तथा कोरोना जनित अज्ञात चुनौतियां। और इनसे संघर्ष करने का असमंजस तो था ही किंतु अंधेरे में रोशनी की सही पहचान के मानस ने जन-जन को विकास एवं आत्मनिर्भरता के नए आयाम सिखाएं।
अर्थव्यवस्था बुरी तरह से चरमराई किंतु घर-घर से नए व्यवसाय अपने स्टार्टअप लेकर आए। किसी ने बेरोजगारी को सकारात्मक दृष्टि से देखा और अपने गांव की जमीन से नया व्यवसाय शुरू किया। महिलाओं ने उल्लेखनीय उत्साह का परिचय देते हुए मास्क बनाने के साथ-साथ छोटे-छोटे नए उद्यम शुरू कर औरों को भी रोजगार प्रदान किया। आर्थिक विकेंद्रीकरण का यह स्वरूप एवं संभावनाएं 2020 में अप्रतिम रूप से देखी गई।
आत्मनिर्भरता का चरम यहां तक कि अंग्रेजी दवाइयों की अपेक्षा इसी वर्ष पहली बार जनमानस को आयुर्वेद के गुणों का स्मरण हुआ और भारत की प्राचीन विश्व मान्य पद्धति पुनः घर-घर में अपनाई गई। रसोईघर से शारीरिक व्याधियों के इलाज ढूंढे गए। हां यह बात और है कि सगे संबंधियों मित्रों से सोशल डिस्टेंसिंग के कारण मिलना नहीं हो पाया। संबंधों के लिए तरसती देहरी पर फिर से उलट प्रवास के चलते चहल पहल हुई। तथा घर-घर में संबंधों की मधुरता का स्वाद लिया गया। साथ बैठकर रामायण देखी ही नहीं समझने की ललक और समझाने का दायित्व भी निभाया गया जिससे पीढ़ियों का समागम हुआ और संस्कारों को सुदृढ़ होने का अवसर प्राप्त हुआ।
सामाजिक विकेंद्रीकरण का ऐसा स्वरूप जहां घर-घर में आर्थिक शारीरिक मानसिक समस्याओं के निवारण का मार्गदर्शन मिला। यह भारत को आध्यात्मिक दार्शनिक सामाजिक मापदंडों पर अधिक सशक्त कर गया। देखा जाए तो 2020 संस्कृतियों के समागम का वर्ष था जिसमें डिजिटलीकरण और परंपराओं का मेल घर-घर में देखा गया। यह भारत है जहां विज्ञान और दर्शन सदियों से एक साथ पनपता रहा है। इसे ‘क्रांतिकारी वर्ष’ कहना अधिक उपयुक्त होगा क्योंकि आर्थिक एवं स्वास्थ्य समस्याओं से जहां पूरा विश्व समान रूप से ग्रसित रहा वहीं भारत के सामाजिक सौहार्द्र को तथाकथित सोशल डिस्टेंसिंग की सीमाएं प्रभावित नहीं कर पाई।
वसुधैव कुटुंबकम की संस्कृति के वर्चस्व को बनाए रखते हुए भारत महामारी के दौर में जहां अन्य देशों की सहायता में आगे रहा वहीं पड़ोसी देशों को भी सीमाओं में रहने के लिए विवश कर दिया। यह भारत ही है जहां संगत पंगत की सौहार्द पूर्ण संस्कृति का परिचय मिलता है और महामारी के विकट समय में संपूर्ण समाज भोजन कपड़े और दवाइयों के वितरण में अपने दायित्व को निभाने के लिए आगे आता है। यह भारत ही तो है जहां रामराज्य की प्राचीन पद्धति के दर्शन होते हैं और गांव गांव में इस समस्या का निवारण प्रत्येक जन अपने तरीके से निकाल पाता है। सामाजिक विकेंद्रीकरण का यह स्वरूप जिसमें परिवार समस्त आर्थिक शारीरिक मानसिक समस्याओं के निवारण का साधन है और एक राष्ट्र के विकास की मूल धुरी है, देश के उभरने में एकमात्र साधन रहा।
भारत विकासशील अर्थव्यवस्था होते हुए भी संतुलित जीवन शैली के दर्शन एवं अध्यात्म के चलते ही संघर्षपूर्ण महामारी वर्ष 2020 को पार कर अगले दशक की तरफ कदम बढ़ा रहा है। उसने विश्व के समक्ष अपने उत्कृष्ट दर्शन के साथ समस्त विश्व के योजन में फलदाई योग की आदर्श पद्धति एवं आयुर्वेद को स्थापित किया है। अतः आने वाले वर्षों में भारत की संतुलित जीवन शैली का महत्व बनाए रखने के लिए प्रत्येक भारतीय को सकारात्मक प्रयास करने होंगे और विज्ञान और सामाजिक दायित्व के दर्शन में संतुलन स्थापित करना होगा जिससे अगली पीढ़ियों को भी प्रत्येक समस्या से सकारात्मक रूप से लड़ने का संबल प्राप्त होगा।
Very effective and interesting.
जी, मैडम हर घटना को देखने के दो नजरिये होते हैं और प्रगतिशील सोच सकारात्मक दृष्टिकोण में ही अभिलक्षित होती है। सिक्के के दूसरे पहलू में 2020 बहुत-सी शिक्षाएं एवं नई आशाओं का संचार कर गया है जिन पर ध्यान देकर सही राह को अपनाने की जरुरत है। यहाँ भारत की वैज्ञानिक परम्पराओं के पुनर्जागरण की विशेष आवश्यकता का आभास भी पूरे विश्व को हुआ है।