फ़िल्म समीक्षा- पंगा (2020)

खेल-सम्बन्धी फिल्मों की सूची में पंगा (2020) वस्तुतः प्राचीन वैदिक संस्कृति से पोषित भारतीय खेल कबड्डी को गौरवान्वित करती है। भारतीय रेलवे में कार्यरत मध्यमवर्गीय गृहिणी जया निगम की आत्मा उसके अपने स्वदेशी खेल कबड्डी में बसती है। परंतु उसके पारिवारिक दायित्व उसकी अंतरात्मा पर पर्दा डाल देते हैं। फिर एक चिंगारी फूटती है, और उसे उद्दीपक प्रदान करता है उसका सात वर्षीय पुत्र, आदित्य। इस द्वितीय खेल यात्रा में उसके पति प्रशांत का सहयोग, समर्पण एवं प्रोत्साहन सबसे बड़ा है। कबड्डी को खेलों में वह स्थान और सम्मान नहीं मिला है, जो सामान्यतया अन्य खेलों का है। जया अपने इस देशी खेल को वह सम्मान दिलाना चाहती है।

कभी राष्ट्रीय कबड्डी टीम की कप्तान रही जया की यह द्वितीय यात्रा कठिन सोपानों से गुजरती है। इन सोपानों पर चढ़ने में उसकी अभिन्न सखा व साथी खिलाड़ी रही मीनू हर कदम पर उसके साथ है। ईस्टर्न रेलवे रीजन की साथी खिलाड़ी निशा दास जया की कमियों और खूबियों से उसका परिचय करवाती है। मीनू को जया की हार स्वीकार नहीं है, क्योंकि वह जया की क्षमताओं के बारे में स्वयं जया से जानती है। वह जया की डबल इंजन बनकर उसे चैंपियन बनाने के लिए तैयार करती है। कोच सिन्हा उसके जुझारूपन से प्रभावित होकर उसका नाम चयनकर्ता समिति को सुझाते हैं

विचलन की परिस्थितियां तो बनती हैं, किंतु जया विचलित नहीं होती। एक सात वर्ष के बच्चे की माँ होकर भी ईस्टर्न रेलवे की ओर से खेलते हुए वह एशिया कबड्डी चैंपियनशिप हेतु अपनी योग्यता से पूरक खिलाड़ियों में अपनी जगह बनाती है, और अंतिम टूर्नामेंट में जीत का सितारा बनकर चमक उठती है। महिला कबड्डी का नाम भारतीय मीडिया में अन्य खेलों के आगे कोई कौतुहल पैदा नहीं करता। यह फ़िल्म भारतीय खेल-क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहन देने का बहुत अच्छा प्रयास है। बचकर नहीं, तोड़कर निकलना होगा, जया का यह संवाद महिलाओं के लिए एक प्रेरणास्रोत है।

‌कंगना राणावत का अभिनय एक परिपक्व नायिका के रूप में छाप छोड़ जाता है। अश्विनी अय्यर तिवारी का कलात्मक निर्देशन विषयवस्तु के अनुरूप है।

‌डॉ. अरुण सिंह
‌सहायक आचार्य
‌राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर।

Print Friendly, PDF & Email
Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *