ढाई हजार साल में 24 विभाजन हुए भारत के
14 अगस्त 1947 : आँसुओं और रक्त की धारा के बीच भारत विभाजन की त्रासदी
रमेश शर्मा
ढाई हजार साल में 24 विभाजन हुए भारत के
संसार में भारत अकेला ऐसा देश है, जिसका इतिहास यदि सर्वोच्च गौरव से भरा है तो सर्वाधिक दर्द से भी। यह गौरव है पूरे संसार को शब्द, गणना और ज्ञान विज्ञान से अवगत कराने का और दर्द है निरंतर आक्रमणों और अपनी धरती के हुए विभाजन का। बीते ढाई हजार साल में 24 और 1873 से 1947 के बीच केवल सत्तर वर्षों में सात विभाजन हुए भारत के। अंतिम विभाजन करोड़ों लोगों के बेघर होने और लाखों निर्दोष नागरिकों की निर्मम हत्या के साथ हुआ।
आज स्वतंत्र भारत का जो स्वरूप और सीमा हम देख रहे हैं, उसका भूगोल अतीत के गौरव का दस प्रतिशत भी नहीं है। वैदिक संस्कृति से आलोकित इस भूभाग का नाम कभी जंबू द्वीप था। जिसका स्मरण आज भी पूजन संकल्प में होता है “जंबू द्वीपे भरत खंडे आर्यावर्ते.. ” पर यह अब केवल इतिहास की पुस्तकों तक ही सिमट गया है। समय के साथ भारत कभी आर्यावर्त है तो कभी भारतवर्ष भी रहा। हिमालय इसके मध्य में था, जिसके शीर्ष का नाम गौरीशंकर था। अंग्रेजों ने उसका नाम एवरेस्ट कर दिया। नेपाल, भूटान, श्रीलंका, मालदीव, म्यांमार, तिब्बत, पाकिस्तान और बंग्लादेश ही नहीं कम्बोडिया, ईराक, ईरान और इंडोनेशिया भी कभी भारत का अंग रहे हैं। तब कम्बोडिया का नाम कम्बोज और इंडोनेशिया का नाम दीपान्तर था।
संसार के लगभग सभी देशों में प्राचीन भारतीय संस्कृति और परंपरा के प्रमाण मिलते हैं। उनकी लोकभाषा में संस्कृत के शब्द भी सरलता से मिल जाते हैं। इसके दो कारण हैं। एक तो वह भूभाग जो भारतवर्ष का अंग रहा और दूसरा देशाटन से संस्कृति पहुँची। भारत की विशालता को समझने के लिये वह एक मंत्र ही पर्याप्त है, जो आज भी पूजन के संकल्प में दोहराया जाता है- “जम्बू द्वीपे भरतखंडे आर्यावर्त देशांतर्गते…. अर्थात जम्बू द्वीप के अन्तर्गत भरतखंड और भरत खंड के अंतर्गत आर्यावर्त..।
यदि हम वैदिक कालीन जम्बू द्वीप को देखें तो यह चारों ओर खारे समुद्र जल से घिरा हुआ है। इसे हम आज का एशिया महाद्वीप कह सकते हैं। इसके अंतर्गत भारतवर्ष। वैदिक काल में भारतवर्ष कुल चार साम्राज्य में विभाजित था। पहला आनर्त, साम्राज्य नर्मदा से नीचे समुद्र पर्यंत। श्रीलंका आदि इसी के अंतर्गत थे। दूसरा ब्रह्मवर्त, यह नर्मदा से गंगा के बीच का भाग, तीसरा आर्यावर्त, यह गंगा से हिमालय पर्यंत और चौथा पर्सवर्त। पर्सवर्त साम्राज्य ही आगे चलकर पारस साम्राज्य के नाम से जाना गया। सिकन्दर के भारत पर आक्रमण के समय इसका नाम पारस साम्राज्य ही था और वहाँ आर्य वैदिक संस्कृति जीवन्त थी। आजकल यह क्षेत्र ईराक आदि के नाम से जाना जाता है। निसंदेह आर्यावर्त ज्ञान विज्ञान और अनुसंधान का केन्द्र था पर समूचा भारत आर्यावर्त नहीं था। विभिन्न जीवन शैलियाँ अपने अपने ढंग से विकास कर रही थीं। लेकिन आर्य कोई नस्ल नहीं थी, एक जीवन शैली थी। इसलिए कहा गया है कि ऋग्वेद में विश्व को आर्य बनाने का संकल्प है।
ऋग्वेद (10/75) में आर्य निवास में प्रवाहित होने वाली जिन नदियों का वर्णन मिलता है, उनमें कुंभा (काबुल नदी), क्रुगु (कुर्रम), गोमती, सिंधु, परुष्णी (रावी), शुतुद्री (सतलज), वितस्ता (झेलम), सरस्वती, यमुना तथा गंगा के नाम हैं। यह क्षेत्र गंगा से हिमालय पर्यन्त ही ठहरता है ।
इंडोनेशिया में तेरहवीं शताब्दी तक वैदिक आर्य और बौद्ध धर्म था। इंडोनेशिया में पुराने राजवंशों के जो नाम मिलते हैं, उनमें श्रीविजय, शैलेन्द्र, माताराम जैसे नाम प्रमुख हैं। सुमात्रा में नौवीं शताब्दी तक वैदिक आर्य परंपरा रही है। यही स्थिति वियतनाम और कंबोडिया की है। इन देशों में पुराने राजवंशों के नाम सनातनी परंपरा के रहे हैं। लेकिन ये सब पिछले ढाई हजार वर्षों में भारत से दूर हुए।
यदि हम बहुत पुरानी बात न करें, केवल 1876 के बाद की बात करें तो 1876 से 1947 के बीच के 71 वर्षों में भारत के कुल 7 विभाजन हुए और भारत का दो तिहाई हिस्सा पराया हो गया। अफगानिस्तान, श्रीलंका, म्यांमार आदि सब इसी अवधि में भारत से अलग हुए। इसकी भूमिका 1857 की क्रान्ति से बन गई थी। अंग्रेजों के शासन का सिद्धांत “बाँटों और राज करो” था। इसलिए उन्होंने विशाल भारतीय साम्राज्य को बांटना आरंभ किया और चारों ओर बफर स्टेट बनाना आरंभ किया।
1876 में अफगानिस्तान को भारत से अलग किया, 1906 में भूटान को, 1935 में श्रीलंका को, 1937 में बर्मा यानि म्यांमार और 1947 में पाकिस्तान के रूप में भारत की धरती पर एक नये देश का उदय हुआ। 1971 में पाकिस्तान का विखंडन हुआ और बांग्लादेश बना। 1857 की क्रांति भले असफल हो गई थी पर इसके बाद अंग्रेजों ने अपनी सत्ता को सशक्त और स्थाई बनाने के अनेक उपाय किये। पुलिस आदि की व्यवस्था करके न केवल जाति, धर्म और भाषा के नाम पर विभाजन आरंभ किया, अपितु देशात्मक सत्ता के रूप में भी विभाजन आरंभ किया ताकि यदि किसी एक क्षेत्र में कमजोर होते हों तो दूसरे क्षेत्र की सेना से नियंत्रित कर सकें। इसीलिये उन्होंने भारत के विभाजन की शुरुआत की। 1876 में भारत का कुल क्षेत्रफल 83 लाख वर्ग किलोमीटर था, जो धीरे-धीरे घटकर अब केवल 33 लाख वर्ग किलोमीटर रह गया है। यानि यदि पुराने इतिहास की बात न करें, केवल 1874 से 1947 के बीच की बात करें तो इसी अवधि में भारत की पचास लाख वर्ग किलोमीटर धरती पराई हो गयी।
भारत का अंतिम विभाजन 14 अगस्त 1947 को हुआ था। इसलिये भारत में 14 अगस्त अखंड भारत दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत में बड़ी संख्या में करोडों लोग हैं जो यह मानते हैं कि पूजा पद्धति बदलने से न तो पूर्वज बदलते हैं और न राजनैतिक परिस्थितियां बदलने से राष्ट्र भाव बदलना चाहिए। इसलिये यह समूह आज भी पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका, तिब्बत आदि के प्रति अपनत्व का भाव रखता है। भारत में ऐसे अनेक सामाजिक संगठन और लोग हैं, जो यह आशा करते हैं कि भारत कभी न कभी अखंड अवश्य होगा। इसीलिए समय समय पर प्रसार माध्यमों में अखंड भारत की ध्वनि सुनाई देती है। 14 अगस्त को अखंड भारत दिवस मनाने के पीछे का भाव भी यही है कि समाज को भारत राष्ट्र के वैभव का स्मरण रहे और उसकी संकल्पना ही शक्ति बनकर भारत राष्ट्र को अखंडता की ओर अग्रसर कर सके।
जानकारी अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
ए मां करता हूं प्रतिज्ञा कि तेरे रूप खंडित को अखंडित करके दम लूंगा।