धरती आबा बिरसा मुंडा

धरती आबा बिरसा मुंडा

धरती आबा बिरसा मुंडाधरती आबा बिरसा मुंडा

आज पूरा देश क्रांतिकारी योद्धा व भारत के गौरव बिरसा मुंडा की जयंती जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मना रहा है। इतिहास और राष्ट्रीय संदर्भ में बिरसा मुंडा ऐसा व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने तत्कालीन जनजातीय समाज की परिसीमितता की परिधि को तोड़कर राष्ट्र और धर्म के परिप्रेक्ष्य में ऐसा अमूल्य योगदान दिया, जो किसी भी प्रकार से स्वतंत्रता आंदोलन के हमारे अन्य नायकों, विचारकों और चिंतकों के योगदान से कम नहीं है। मात्र 25 वर्ष की आयु में उन्होंने उन जनपदों में सांस्कृतिक पुनर्जागरण की लहर पैदा की, जो संसाधनविहीनता और निर्धनता की विकट परिस्थितियों में घिरे थे।अंग्रेज उनसे कांपते थे। अपने कार्यों से वे छोटी सी आयु में भगवान की तरह पूजे जाने लगे थे।

बिरसा हमेशा से अपने अनुयायियों के मध्य तीन बातें रखते थे। वे उनसे कहते थे कि ‘पूर्व में ब्रह्मा तुम्हें आवाज दे रहे हैं। पश्चिम में विष्णु तुम्हें आवाज दे रहे हैं। उत्तर में काली तुम्हें आवाज दे रही हैं। दक्षिण में दुर्गा तुम्हें आवाज दे रही हैं। हर दिशाओं से तुम्हारे बोंगा तुमको आवाज दे रहे हैं।’ 

दो शब्द बिरसा मुंडा को अत्यधिक प्रिय थे- एक शब्द है ‘महादेव बोंगा’ और दूसरा शब्द है ‘चंडी बोंगा’। बिरसा स्त्रियों से कहते थे, ‘वह जननी जो महादेव बोंगा की पत्नी हैं, तुम उस चंडी के समान बनो।’ और पुरुषों से कहते थे ‘वो सीता के पति तुम्हें आह्वान कर रहे हैं, तुम्हें आवाज दे रहे हैं, तुम उनकी सुनो।’ बिरसा ने वनवासियों से ईसाइयत त्‍याग देने का आह्वान किया। उन्‍होंने कहा कि मिशनरियों की बढ़ती शक्ति को रोकने के लिए ईसाइयत का बहिष्कार किया जाना चाहिए। जब बिरसा ने स्वधर्म की बात कही तो अनेक वनवासी ईसाइयत छोड़कर पुनः अपने धर्म में लौट आए। बिरसा ने आर्थिक, धार्मिक और सामाजिक सुधारों का सूत्रपात किया। इस प्रतिकार ने अंग्रेजों व चर्च के पादरियों को हिलाकर रख दिया।

बिरसा मुंडा के आन्‍दोलन ने विकराल रूप धारण कर लिया था। ब्रिटिश अधिकारियों ने सरकार को बिरसा के विरुद्ध रिपोर्ट भेजी। रिपोर्ट में लिखा गया कि: 

• वनवासियों को खेती करने से मना करता है। 

• वनवासियों को ईसाइयत छोडकर हिन्‍दू बनने के लिए प्रेरित कर रहा है।

• मांसाहार को प्रतिबंधित कर दिया है।

• वह लोगों को उकसाते हुए कहता है कि अंग्रेजों के अधीन जंगलों को वह अपने अधिकार में ले लेगा। जो लोग कड़ाई से अपने धर्म का पालन करेंगे, केवल उन्हें ही उन जंगलों में रहने की अनुमति मिलेगी। 

अंग्रेजों और वनवासियों में भिड़ंत

ब्रिटिश सरकार ने बिरसा को बंदी बनाने के लिये आदेश जारी कर दिया। डिप्टी कमिश्नर ने उन्हें बंदी बनाने के लिए सैनिकों की एक टुकड़ी भेजी। इस टुकड़ी का सामना मुंडा सरदारों और उनकी सेना से हुआ। अंग्रेज अधिकारियों व सेना को मुँह की खानी पड़ी। वहां स्थित ब्रिटिश दफ्तरों में आग भी लगा दी गई। इसके बाद डिप्टी सुपरिटेंडेट जी. आर. के. मेयर्स की अध्यक्षता में जिलाधिकारियों की बैठक बुलाई गई। बिरसा के विरुद्ध सरकारी संपत्ति को हानि पहुँचाने, सरकारी कार्य में बाधा डालने, पुलिस पर हमला करने तथा सार्वजनिक स्थल पर अशांति फैलाने से संबद्ध आपराधिक मामले दर्ज किए गये। धारा-353 तथा धारा-505 के अंतर्गत बिरसा और उनके नौ अनुयायियों को गिरफ्तार करने के लिये वारंट जारी हुआ। 

ब्रिटिश सेना बिरसा को अकेला खोजने लगी, क्‍योंकि वनवासियों से लोहा लेने का परिणाम वे देख चुके थे। एक दिन बिरसा के अधिकतर साथी हथियार इकट्ठा करने व दूर-दराज के लोगों को आंदोलन से जोड़ने के उद्देश्य से चलकद से बाहर गये हुए थे। बूंटी थानेदार ने यह सूचना बँदगाँव के मेयर्स तक प‍हुँचा दी। रात में बिरसा निश्चिंत सोये हुए थे, इसी समय ब्रिटिशर्स ने उन्‍हें घेर लिया, बिरसा ने प्रतिरोध किया, लेकिन बंदूकों से लैस सिपाहियों के सामने उनकी एक न चली। बिरसा गिरफ्तार कर लिये गये। 30 नवंबर, 1897 को बिरसा दो वर्ष की करावास सजा काट कर रिहा हुए। एक बार फिर आन्‍दोलन की तैयारियाँ आरंभ होने लगीं। बिरसा ने सर्वप्रथम चुटिया क्षेत्र की यात्रा की। यात्रा का आरंभ 28 जनवरी, 1898 को हुआ। ब्रिटिश सरकार को भ्रमित करने के लिये बिरसा ने यात्रा-दल को तीन भागों में बाँटा। पहले दल का नेतृत्व बिरसा, दूसरे दल का नेतृत्वकर्ता उनके बड़े भाई कोमता व तीसरे दल का नेतृत्त्व बाना पीड़ी के डोकन मुंडा के हाथ में था। इस यात्रा के दौरान बिरसा ने प्रतिज्ञा की थी कि मुंडा वनवासी तुलसी की पूजा करेंगे। तभी से तुलसी का पौधा मुंडाओं के लिये पवित्र और पूजनीय बन गया।

बिरसा मुंडा के आह्वान मात्र पर वनवासी अपना सर्वस्व न्यौछावर करने को तैयार थे। अंग्रेज अफसर हाफमैन ने क्रांतिकारियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई का समर्थन किया। ब्रिटिश सरकार द्वारा निम्न कदम उठाये गये- 

• बिरसा-आंदोलन से जुड़े लोगों की चल-अचल संपत्ति जब्त कर ली जाए।

• उनकी स्त्रियों के गाँव छोड़कर अन्यत्र जाने पर कठोरता से पाबंदी लगाई जाए। 

• जब तक सशस्त्र क्रांति पूरी तरह से विफल न हो जाए, तब तक बिरसा के लिए जासूसी करने वाले स्थानीय लोगों को बंदी बना लिया जाए।

• आंदोलन से जुड़े सरदारों को लंबे समय के लिये जेलों में बंद कर दिया जाए।

दोबारा गिरफ्तार हुए बिरसा

एक दिन भोजन करने के बाद बिरसा गहरी नींद में सोये हुए थे। यहीं वे बंदी बना लिये गये। कमिश्नर ने उन्हें राँची ले जाने का आदेश दिया। उन पर आरोप लगाया गया कि वह लूटपाट, आगजनी और हत्या आदि में लिप्त हैं। इसके अंतर्गत 15आरोपों की सूची तैयार की गई, जिसमें उन्‍हें मुख्य अभियुक्त के रूप में चिह्नित किया गया।

जेल में रहस्यमयी मृत्यु

30 मई, 1900 को बिरसा को हैजा होने का समाचार आया। दावा किया गया कि 09 जून की सुबह वे खून की उल्टियाँ करने लगे। अत्यधिक कमजोरी के कारण वे बेहोश हो गये। सुबह 09 बजे वे संसार से सदा-सदा के लिये विदा हो गये। उनके साथियों का कहना था कि बिरसा को जहर दिया गया।

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