स्वस्थ जीवनशैली से कम किया जा सकता है कैंसर का खतरा

स्वस्थ जीवनशैली से कम किया जा सकता है कैंसर का खतरा

सुनिधि मिश्रा

स्वस्थ जीवनशैली से कम किया जा सकता है कैंसर का खतरास्वस्थ जीवनशैली से कम किया जा सकता है कैंसर का खतरा

वर्तमान में भारत में कैंसर रोगियों की बढ़ती संख्या एक चिंताजनक विषय है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर 8 मिनट में एक महिला गर्भाशय कैंसर से और हर 9 मिनट में एक महिला स्तन कैंसर से अपनी जान गंवा रही है। ये आंकड़े न केवल चिंताजनक हैं बल्कि इस विषय की गंभीरता को भी दर्शाते हैं।

कैंसर, एक जटिल और व्यापक शब्द है, जिसका उपयोग शरीर में असामान्य कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि और प्रसार से जुड़ी बीमारियों के समूह का वर्णन करने के लिए किया जाता है। ये असामान्य कोशिकाएं, जिन्हें कैंसर कोशिकाएं कहा जाता है, स्वस्थ ऊतकों और अंगों पर आक्रमण करने और उन्हें नष्ट करने की क्षमता रखती हैं। एक स्वस्थ शरीर में कोशिकाएं नियमित रूप से बढ़ती, विभाजित और मरती हैं, जिससे ऊतकों और अंगों का सामान्य कामकाज चलता रहता है। कैंसर पत्रिका में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में भविष्यवाणी की गई है कि 2022 के अनुमान की तुलना में 2050 तक वैश्विक स्तर पर पुरुषों में कैंसर के मामलों में 84.3 प्रतिशत तथा कैंसर से होने वाली मौतों की संख्या में 93.2 प्रतिशत की वृद्धि होगी। यह चिंताजनक प्रवृत्ति एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती को रेखांकित करती है, जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। 

कैंसर के मामलों में तेज़ी से वृद्धि के कई बड़े कारण हैं। लेकिन प्रमुख रूप से जीवनशैली में बदलाव, तम्बाकू के सेवन, खाने की खराब आदतों और अपर्याप्त शारीरिक गतिविधि मुख्य रूप से ज़िम्मेदार है। वर्तमान समय में कैंसर का एक प्रमुख कारण प्रदूषण भी है, आज वायु, जल एवं मृदा प्रदूषण अपने चरम पर है, जिसके कारण कैंसर रोगियों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है।

उत्तर भारत में वायु प्रदूषण के कारण बढ़ते कैंसर के मामलों ने चिकित्सा जगत में चिंता की लहर पैदा कर दी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली लगातार तीसरे वर्ष विश्व की सबसे प्रदूषित राजधानी बनी हुई है, जहाँ पी.एम 2.5 का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक से 20 गुना अधिक है। ये आंकड़े केवल संख्या नहीं हैं, बल्कि लाखों लोगों के जीवन से जुड़ी एक भयावह वास्तविकता हैं। हवा में उपस्थित विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आने के कारण फेफड़े, मूत्राशय, स्तन, प्रोस्टेट और रक्त कैंसर आम होते जा रहे हैं। कैंसर विशेषज्ञों के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में फेफड़ों के कैंसर के मामलों में 45 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जिनमें से 37 प्रतिशत रोगी ऐसे हैं, जो कभी धूम्रपान नहीं करते थे। ये आंकड़े सीधे तौर पर वायु प्रदूषण की भयावहता को दर्शाते हैं। 

एम्स द्वारा 2023 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि दिल्ली में प्रतिवर्ष लगभग 80 हजार लोग वायु प्रदूषण से संबंधित बीमारियों से प्रभावित होते हैं। हाल ही में लांसेट में प्रकाशित एक अध्ययन ने बताया है कि भारत में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में 22 प्रतिशत हिस्सा कैंसर का है। यह आंकड़ा पिछले दशक में दोगुना हो गया है। विशेष चिंता की बात यह है कि इनमें युवा जनसंख्या का प्रतिशत बढ़ रहा है।

पराली दहन उत्तर भारत में वायु प्रदूषण का एक प्रमुख कारण बन गया है, जिसने कैंसर के बढ़ते मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पराली दहन एवं अन्य वायु प्रदूषण के कारकों के कारण दिल्ली, पंजाब, राजस्थान, हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश मुख्य रूप से कैंसर के चपेट में आ रहे हैं। इसका मुख्य कारण हवा में उपस्थित विषैले पदार्थ ही हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, अक्टूबर-नवंबर 2023 में पंजाब में 49,900 से अधिक पराली दहन की घटनाएं दर्ज की गईं, जबकि हरियाणा में यह संख्या 36 हजार के आसपास रही। यह आग केवल फसल अवशेषों को ही नहीं जलाती, बल्कि लाखों लोगों के स्वास्थ्य को भी राख कर देती है। पराली दहन से निकलने वाले धुएं में कई खतरनाक रसायन पाए जाते हैं। एम्स और आई. आई.टी. दिल्ली द्वारा 2023 में किए गए एक संयुक्त अध्ययन ने पाया कि पराली के धुएं में बेंजीन, फॉर्मल्डिहाइड और पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन जैसे कैंसरकारी तत्व होते हैं। इन तत्वों की मात्रा सामान्य दिनों की तुलना में पराली जलाने के मौसम में 6 से 8 गुना तक बढ़ जाती है। 

राजस्थान भी कैंसर के रोगियों में पीछे नहीं है, यहाँ भी कैंसर के रोगियों की संख्या में बढ़ोतरी देखी जा रही है। राजस्थान में खनन क्षेत्रों की स्थिति चिंताजनक है। खनन के चलते यहाँ भी वायु में ज़हरीले रसायन फैल रहे हैं, जो कैंसर होने के लिए ज़िम्मेदार होते हैं। हाल ही में जोधपुर मेडिकल कॉलेज के एक शोध के अनुसार, खनन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में फेफड़ों के कैंसर का जोखिम 300 प्रतिशत अधिक है। 2023 में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि राजस्थान के खनन क्षेत्रों में प्रति एक लाख की जनसंख्या पर 95 नए कैंसर के मामले सामने आ रहे हैं, जो राष्ट्रीय औसत से दोगुना है और यह एक चिन्ताजनक स्थिति है। 

उत्तर प्रदेश में भी कानपुर और लखनऊ जैसे औद्योगिक शहरों की स्थिति विशेष चिंता का विषय है। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, 2023 में केवल कानपुर में ही 3,500 नए कैंसर के मामले सामने आए, जिनमें से 40 प्रतिशत  फेफड़ों से संबंधित थे। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च  की 2023 की एक महत्वपूर्ण अध्ययन ने प्रकाश डाला है कि वायु प्रदूषण से डीएनए में परिवर्तन हो सकता है, जो सीधे कैंसर का कारण बन सकता है। यह शोध विशेष रूप से पी.एम 2.5 कणों पर केंद्रित था, जो हमारे श्वसन तंत्र में गहराई तक प्रवेश कर सकते हैं। 

वर्तमान समय की भयावह स्थिति को देखते हुए कैंसर कारकों के समाधान पर विशेष रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है, निवारण की दिशा में कुछ आशाजनक प्रयास भी हो रहे हैं। इसी संदर्भ में सरकार को पराली से होने वाले वायु प्रदूषण के कारकों के निवारण पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि उससे उत्पन्न कैंसर की वृद्धि पर रोकथाम की जा सके। संतुलित आहार, नियमित व्यायाम, शराब और तंबाकू से परहेज़ और पी.एम -2.5 के संपर्क को सीमित करने वाली स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर कैंसर के मामलों से बचा जा सकता है। बेहतर उपचार परिणामों के लिए कैंसर की शुरुआती पहचान की जाँच पर भी जोर दिया जाना चाहिए। 

(स्वतंत्र लेखिका)

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