दीपक और आदमी का वार्तालाप…. (कविता)

अंधेरे में दीपक को लेकर चलने वाले आदमी को यह भ्रम हो गया कि मैं दीपक को लेकर चल रहा हूं जबकि वास्तविकता यह थी कि दीपक उस आदमी को लेकर चल रहा था। सत्य यह भी था कि दोनों एक दूसरे को लेकर चल रहे थे।

आदमी दीपक से कहता है:-

मैं तुमको लेकर चलता हूं, तुम मुझको लेकर चलाते हो।

निष्प्राण हो तुम दिए बाती, तुम मेरे हाथों जलाते हो।।

  दीपक आदमी को जवाब देता है:-

इस अंधकार से डरकर के, हिम्मत जब हार मानती है।

पाने की आशा छोड़ यहां,  खोने की बारी आती है।।

मैं सारथी बन कर चलता हूं, तुम मेरे पीछे चलते हो।

आदमी दीपक से कहता है:-

उस एक हवा के झोंके से, मैं तुम्हें बचाए रखता हूं।

प्राणांत ना हो बस एक तेरा, मैं नजर टिकाए रखता हूं।।

तब दीपक जवाब देता है:-

क्यों अंधकार बैठा मन में, बाहर की राह दिखाते हो।

मैं जलकर भी कुछ देता हूं, तुम भूल मुझे फिर जाते हो।।

मैं इस दुनिया से चलता हूं, अपनी आंखें मलते हो।।

   –  राम गोपाल पारीक

 

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