जब तक हम स्वधर्म को नहीं समझते स्वराज को नहीं समझ सकते
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने हर आनंद प्रकाशन द्वारा प्रकाशित ‘Making of a Hindu Patriot’ : Background of Gandhiji’s Hind Swaraj पुस्तक का विमोचन किया।
इस अवसर पर उन्होंने कहा कि हम पहले से यह मानते हैं कि देशभक्त, ये संज्ञा कुछ लोगों के लिए है, बाकी के लिए नहीं है, ऐसा नहीं है। एक प्रवृत्ति होती है प्रत्येक व्यक्ति में, कम से कम भारत के व्यक्ति में। वह इस भूमि को पवित्र मानता है, इस भूमि को अपना मानता है। आत्मीयता पूर्वक पावित्र्य भाव इस भूमि के प्रति रखता है। जमीन की पूजा, माटी की पूजा भारतवर्ष के सभी लोगों में किसी न किसी रूप में विद्यमान है।
देशभक्त तो हम सब हैं, परंतु गांधी जी ने जो बात कही है, वो गौर करने लायक है। गांधी जी ने कहा कि ‘मेरी देशभक्ति मेरे धर्म से निकलती है’। तो Hindu Patriot यानि हिन्दू है तो Patriot होना ही पड़ेगा उसको, उसके मूल में, प्रकृति में वो है। हां, ऊपर की धूल झाड़कर खड़ा करना पड़ता है। सोया हुआ Patriot रहता है, और जागृत Patriot रहता है, ये हो सकता है…लेकिन भारत विरोधी ऐसा कोई नहीं रहता है, भारत द्रोही ऐसा कोई नहीं रहता है।
देश में केवल भूमि ही नहीं है। भूमि तो है ही, बिना भूमि के नहीं बनेगा। जब हम देश कहते हैं तो उसका जमीन, जल, जंगल, जानवर सब कुछ उसमें आता है और उसकी परंपरा भी आती है, उसका स्वभाव भी आता है।
भारत का नाम भारत ये केवल एक भौगोलिक प्रदेश को दिया नाम नहीं है। एक प्रवृत्ति को दिया नाम है और जब गांधी जी कहते हैं कि मेरी देशभक्ति मेरे धर्म से उपजी है। वो ये भी कहते हैं कि स्वराज की मांग करने वाले बहुत लोग हैं। किन्तु मेरे मन में प्रश्न है कि स्वराज हम मांग रहे हैं, क्या मांग रहे हैं उनको पता है क्या? स्वराज क्या है, यह जब तक हम स्वधर्म को नहीं समझते, तब तक आप समझ नहीं सकते।
गांधी बनने के लिए गांधी जी ने जो परिश्रम किया, स्वयं किया, वो उनका अपना किया हुआ है। वे “पर उपदेश कुशल बहुतेरे” वालों में नहीं हैं। डॉक्टर हेडगेवार ने गांधी जी के विषय में 1922 में एक सभा में कांग्रेस जनों के सामने कहा था – केवल सभा और स्मरण करके काम नहीं होगा। गांधी जी का जो अपनी ध्येय सिद्धि के लिए उच्च कोटि का त्याग है, निःस्वार्थ भाव, प्रामाणिकता है और ध्येय की प्राप्ति के लिए सर्वस्व समर्पण की जो तैयारी है, उसका हमको अनुकरण करना पड़ेगा। गांधी जी ने जो बोला, लिखा है, स्वयं उसका उदाहरण बने ही हैं।
भारत के सब संप्रदायों के मूल में इसको माना है, एक से अनेक बना है। विविधता में एकता नहीं, एकता की ही विविधताएं हैं और इसलिए रिलीजन के नाते मैंने जो लीक चुनी है, उस पर चलूंगा। उसका गौरव भी मन में रखूंगा, उस पर पक्का रहूंगा और दूसरी लीक पर चलने वाले दूसरे रिलीजन के लोगों को भी उतना ही सार्थक, सत्य मानूंगा। उनके लीक का आदर भी करूंगा, उसको स्वीकार करूंगा। लीक अलग है इसलिए हम अलग नहीं हैं, लीक अलग है इसलिए हमारा झगड़ा नहीं हो सकता। हम मिलजुल कर रह सकते हैं। यह भारत के सब विचारों के मूल में एक प्रस्थान बिन्दु सबका समान है।
हम एक, देश, एक समाज, एक धरती के पुत्र बनकर रह सकते हैं, रहे हैं सदियों से। भारत में सामूहिक पूजा पद्धति भी है। इसको भारत में धर्म कहा गया है। जैसा भारत बनाना है, वैसा जीवन जीना होगा।
गांधी जी कहते थे – हमको मूल्यों की पुनर्स्थापना, मूल्यों के आधार पर आचरण की पुनर्स्थापना करते हुए उस प्रकार का एक सर्वांगीण जीवन देश का खड़ा करना है। इसका मतलब स्वतंत्रता की पूर्णता है।