अंतर्मन के भाव के बिना सेवा संभव नहीं
अंतर्मन के भाव के बिना सेवा संभव नहीं
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य भैय्याजी जोशी ने कहा कि एक कालखंड ऐसा था, जब लोग सम्मान के लिये काम करते थे। लेकिन आज भारत सरकार और संत ईश्वर संस्थान के माध्यम से सम्मान लोगों को ढूंढते हुए उनके पास जा रहे हैं, चाहे वह पद्मश्री, पद्मभूषण, भारत रत्न या संत ईश्वर सेवा सम्मान ही क्यों न हों।
हमारे प्राचीन ग्रथों में सेवा को धर्म स्वरूप कहा गया है ‘सेवा परमो धर्मां:’, भगवतगीता में भी कर्मण्येवाधिकारस्ते…… कहा गया है, क्योंकि भारत के रक्त में ही सेवा है। सेवा के लिये धन, बुद्धि, साधन हो ऐसा आवश्यक नहीं है, अंतर्मन के भाव के बिना सेवा संभव नहीं है। हम देखते आए हैं कि गाय को रोटी और पक्षियों को दाना खिलाया जाता है। अतिथि देवो भव की संस्कृति भारत की है। भारत का व्यक्ति कहता है कि धरती पर केवल मेरा अधिकार नहीं हैं, पशु, पक्षी, देव, मानव सबका है और हम सेवा के रूप में ईश्वर की आराधना ही करते हैं, इसलिये सेवा का दायरा सीमित नहीं है। अंदर से ईश्वर को जागृत करना ही सच्ची सेवा है, जो संत ईश्वर फाउंडेशन कर रहा है।
संत ईश्वर फाउंडेशन, राष्ट्रीय सेवा भारती व अशोक सिंघल फाउंडेशन की ओर से दो अक्तूबर को आयोजित प्रतिष्ठित संत ईश्वर सम्मान समारोह में चंद्रयान-3 और आदित्य एल1 की सफलता पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन “इसरो’ को विशेष सम्मान प्रदान किया गया।
राष्ट्रीय कृषि विज्ञान परिसर, पूसा संस्थान में आयोजित सम्मान समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य भैय्याजी जोशी, परमार्थ निकेतन ऋषिकेश के अध्यक्ष प.पू. स्वामी चिदानंद सरस्वती जी, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला जी, विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह (भारत सरकार) विशेष तौर पर उपस्थित रहे।
सम्मान समारोह में विभिन्न श्रेणियों में सेवा साधकों को सम्मानित किया गया।