अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सनातन के डीएनए में है- निम्बाराम

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सनातन के डीएनए में है- निम्बाराम
उदयपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के संपर्क विभाग द्वारा बुधवार को “सनातन के समक्ष चुनौतियां और हमारी भूमिका” विषय पर प्रबुद्ध नागरिक गोष्ठी का आयोजन प्रताप गौरव केंद्र के सभागार में किया गया। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र प्रचारक निम्बाराम ने भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर पर प्रकाश डाला। निम्बाराम ने अपने संबोधन में कहा कि भारत ने अपने ज्ञान और संस्कृति को दूसरों पर कभी नहीं थोपा और न ही किसी पर आक्रमण किया। जब दुनिया के अधिकांश हिस्सों में असभ्यता फैली हुई थी, तब भारत में ज्ञान और सभ्यता का प्रकाश था। उन्होंने कहा, भारतीय संस्कृति का आधार सनातन है। आज विश्वभर में सनातन धर्म और भारत की धार्मिक परंपराओं की व्यापक चर्चा हो रही है।
निम्बाराम ने भारतीय समाज की समृद्ध परंपराओं का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत में बाहरी आक्रमणों के बावजूद समाज ने अपनी संस्कृति को आत्मसात किया। सनातन का सिद्धांत “वसुधैव कुटुंबकम” (संपूर्ण विश्व एक परिवार है) और “अहिंसा परमो धर्म” (अहिंसा सर्वोत्तम धर्म है) आज भी हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। उन्होंने कहा, भारत एक प्राचीन राष्ट्र है। 1947 में इस का विभाजन हुआ, तब भी जनमानस की भावना अखण्ड भारत की थी। अपने सम्बोधन में उन्होंने भारत के संविधान को भी सराहा, जिसमें पंथनिरपेक्षता, अधिकार और कर्तव्यों की परिभाषा को सनातन के सिद्धांतों से जोड़ा गया है। उन्होंने कहा, भारतीय संविधान में हम भारत के लोग, बंधुत्व, पंथनिरपेक्षता, अधिकार कर्तव्य, 22 चित्र जैसे तत्व भारतीय संस्कृति के प्रतिबिंब हैं। भारत की मत पंथ परंपरा का मूल सनातन संस्कृति है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सनातन के डीएनए में है। निरंतर विमर्श व शास्त्रार्थ परंपरा इसका प्रमाण है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिन्दू एक जीवन पद्धति है। आज हिन्दू शब्द अधिक मान्य है। कभी आर्य के रूप में यहां के समाज की पहचान थी।
उन्होंने कहा कि परिवर्तन समाज के बल पर आता है। भक्ति आंदोलन में संतों के दम पर समाज परिवर्तन आया था। राजस्थान के लोक देवताओं का समय एक स्वर्णिम पृष्ठ के रूप में दर्ज है।
उन्होंने कहा, मैकाले की शिक्षा पद्धति ने भारतीय समाज की मानसिकता को प्रभावित किया। आज समय की आवश्यकता है कि हम अपनी संस्कृति और इतिहास को नई पीढ़ी के सामने सही रूप में प्रस्तुत करें। उन्हें सेनानियों के बलिदान का स्मरण कराएं। हमें औपनिवेशिक मानसिकता व हीन भावना से हटकर स्व के गौरव की पीढ़ी का निर्माण करना है।
निम्बाराम ने कहा कि समाज का आग्रह है कि पराधीनता के प्रतीक बदले जाने चाहिए। अब इंडिया गेट से नेताजी सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा राष्ट्रीयता की प्रेरणा दे रही है।
कार्यक्रम में एक प्रदर्शनी भी आयोजित की गई, जिसमें भारतीय संविधान के 22 चित्रों और देवी अहिल्याबाई के जीवन पर आधारित चित्र प्रदर्शित किए गए। कार्यक्रम का संचालन विष्णु मेनारिया ने किया, जबकि अतिथियों में RSS के प्रांत प्रचारक मुरलीधर, विभाग प्रचारक धनराज, विभाग संघचालक हेमेंद्र श्रीमाली और महानगर संघचालक गोविंद अग्रवाल सहित अनेक गणमान्य लोग उपस्थित थे।