अमर बलिदानी हेमू कालाणी
प्रहलाद सबनानी
- 23 मार्च 2022 से अमर बलिदानी हेमू कालाणी का जन्म शताब्दी वर्ष प्रारम्भ हो रहा है
इतिहास गवाह है कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में वीर सेनानियों ने, मां भारती को अंग्रेजों के शासन से मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से, देश के कोने कोने से भाग लिया था। इन वीर सेनानियों में से भारत के कई वीर सपूतों ने तो मां भारती के श्री चरणों में अपने प्राण भी न्योछावर कर दिए थे। भारत के इन्हीं वीर सपूतों में अमर बलिदानी हेमू कालाणी का नाम भी बड़े आदर के साथ लिया जाता है क्योंकि उन्हें मात्र 19 वर्ष की अल्पायु में दिनांक 21 जनवरी 1943 को क्रूर अंग्रेजी शासन द्वारा फांसी दे दी गई थी।
दिनांक 23 मार्च 1923 को हेमू कालाणी का जन्म सिन्ध प्रांत के सक्खर जिले में सवचार स्थान पर पेसूमल कालाणी एवं माता जेठी बाई कालाणी के घर पर हुआ था। हेमू कालाणी बचपन में ही सर्वगुण संपन्न व होनहार बालक थे, जो अपनी पढ़ाई लिखाई में तेज तर्रार होने के साथ साथ एक अच्छे तैराक, तीव्र साइकिल चालक तथा अच्छे धावक भी थे। वह तैराकी में भी कई पुरस्कार प्राप्त कर चुके थे। बचपन में ही हेमू कालाणी “स्वराज्य सेना” नामक छात्र संगठन में सम्मिलित होकर इस संगठन के नेता बन गए थे। इन सभी विशेषताओं के ऊपर, हेमू कालाणी अपने बचपन से ही राष्ट्र प्रेम की भावना से ओतप्रोत थे एवं प्रारम्भ में केवल 7 वर्ष की आयु में ही तिरंगा झंडा लेकर उसे लहराते हुए अंग्रेजों की बस्ती में अपने साथियों के साथ क्रांतिकारी गतिविधियों का नेतृत्व करते थे। इसके बाद तो हेमू कालाणी ने अंग्रेजों की क्रूर हुकूमत को जड़ से उखाड़ फेंकने का संकल्प ही ले लिया था और राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रियाकलापों में भी भाग लेना शुरू कर दिया था। अत्याचारी अंग्रेजों द्वारा संचालित सरकार के विरुद्ध छापामार गतिविधियों में भाग लेकर उनके वाहनों को जलाने में हेमू कालाणी अपने साथियों का नेतृत्व भी करने लगे थे। यह भी एक अजीब संयोग ही कहा जाएगा कि हेमू कालानी की जन्मतिथि एवं अमर शहीद भगतसिंह की पुण्यतिथि एक ही है, अर्थात 23 मार्च।
वर्ष 1942 में मात्र 19 वर्ष की अल्पायु में हेमू कालाणी ने “अंग्रेजो भारत छोड़ो” के नारे को पूरे सिंध में गुंजायमान कर दिया था। हेमू कालाणी के अदम्य साहस एवं उत्साह ने तो पूरे सिंधवासियों में ही स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए जोश भर दिया था। हेमू कालाणी द्वारा अपनी किशोरावस्था में ही विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने का आग्रह सिंधवासियों से किया जाता था एवं उस समय पर भी सिंध प्रांत के नागरिकों में स्वावलम्बन का भाव जगाने का प्रयास हेमू कालाणी द्वारा किया जा रहा था। मां भारती के प्रति तो उनके मन में एक विशेष भाव था एवं अंग्रेजों की हुकूमत उन्हें बिलकुल भी रास नहीं आती थी। इसलिए अल्पायु में ही वे सिंधवासियों का आह्वान करते नजर आते थे कि वे केवल देश में निर्मित वस्तुओं का ही उपयोग करें जिससे भारतीय नागरिकों को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाया जा सके।
अंग्रेजी शासन द्वारा भारतीयों पर किए जा रहे अत्याचारों के विरुद्ध मात्र 19 साल की आयु में हेमू कालाणी ने जो किया, इस पर पूरे देश को आज भी गर्व है। वर्ष 1942 में “करो या मरो”, “अंग्रेजो भारत छोड़ो”, के नारों में एक आवाज हेमू कालाणी की भी थी। सिंध प्रांत के सक्खर शहर में देश की स्वतंत्रता के लिए कार्य कर रही संस्था “स्वराज्य सेना” के एक युवक ने हेमू कालाणी को यह जानकारी दी कि स्वतंत्रता के लिए प्रयासरत आंदोलनकारियों को कुचलने और उनका दमन करने के लिए रोहड़ी (सिंध) से अंग्रेज सैनिकों एवं हथियारों से भरी एक विशेष रेलगाड़ी सक्खर से होकर बलूचिस्तान की ओर जाने वाली है। यह सुनकर हेमू कालाणी और उनके जांबाज साथी रेल ट्रैक पर गए और रेल की पटरी के नट बोल्ट खोलने लगे, परंतु हेमू कालाणी पर अंग्रेज सिपाहियों की नजर पड़ गई और उन्हें पकड़कर लिया गया और फिर जेल भेज दिया गया।
स्वतंत्रता के दीवाने मात्र 19 साल के इस जवान का हौसला ही था कि पकड़े जाने व घोर यातनाओं को सहन करने के बाद भी उसने अंग्रेजों को यह राज नहीं बताया कि पटरियों के नट बोल्ट खोलने में उसके और कौन कौन साथी थे। हेमू कालाणी के हौंसले एवं उनकी देश भक्ति के आगे हार कर अंग्रेजों ने 21 जनवरी 1943 को प्रातः सक्खर (सिंध) के केंद्रीय कारागार में उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया। इससे पूरा देश शोक में डूब गया। देश के युवाओं में बदले का भाव जगा और वे भी अंग्रेजों के विरुद्ध खड़े हो गए, इस प्रकार अंग्रेजों के विरुद्ध स्वतंत्रता आंदोलन और अधिक तेज हो गया।
कालांतर में स्वतंत्रता के मतवाले अमर बलिदानी हेमू कालाणी को श्रद्धांजलि प्रदान करने के उद्देश्य से हेमू कालाणी की माताजी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिन्द फौज के सेनानियों द्वारा स्वर्ण पदक प्रदान कर सम्मानित किया गया था। 14 अक्टूबर 1983 को भारतीय डाक व तार विभाग द्वारा हेमू कालाणी की स्मृति में एक डाक टिकट जारी किया गया था एवं भारत के संसद भवन में 21 अगस्त 2003 को हेमू कालाणी की प्रतिमा स्थापित की गई थी। इस प्रतिमा का लोकार्पण तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी द्वारा किया गया था। साथ ही, देश के कई भागों में अमर बलिदानी हेमू कालाणी के नाम पर कई मार्गों का नामकरण किया गया है एवं कई प्रसिद्ध चौराहों पर हेमू कालाणी की प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं। जैसे, इंदौर में उज्जैन मार्ग पर शहीद हेमू कालाणी नगर के नाम से एक कॉलोनी विकसित की गई है, इंदौर में ही एक चौक का नामकरण हेमू कालाणी के नाम पर करके उनकी प्रतिमा स्थापित की गई है, ग्वालियर के एक व्यस्ततम मार्ग, बाड़ा चौक पर हेमू कालाणी की प्रतिमा स्थापित की गई है, मुंबई के चेम्बूर उपनगर में एक मार्ग का नाम हेमू कालाणी मार्ग रखा गया है, उल्हासनगर जो सिंधुनगर भी कहलाता है में भी हेमू कालाणी की एक प्रतिमा एक चौक पर स्थापित की गई है, जोधपुर (राजस्थान) में एक चौक का नामकरण हेमू कालाणी के नाम पर करके उनकी प्रतिमा स्थापित की गई है, संसद भवन प्रांगण में डिप्टी स्पीकर के कार्यालय के सामने हेमू कालाणी की एक प्रतिमा स्थापित की गई है, अजमेर (राजस्थान) में दिग्गी बाजार चौक में बलिदानी हेमू कालाणी की प्रतिमा स्थापित की गई है एवं फैजाबाद शहर के अयोध्या मार्ग पर स्थित एक राजकीय पार्क का नामकरण हेमू कालाणी पार्क किया गया है एवं इस पार्क के बीच में हेमू कालाणी की एक 15 फुट की प्रतिमा भी स्थापित की गई है।