अरुणाचल पर ड्रेगन की कुदृष्टि (भाग 2)
कौशल अरोड़ा
अरुणाचल पर ड्रेगन की कुदृष्टि (भाग 2)
अरुणाचल पर ड्रेगन की कुदृष्टि के कई और कारण भी हैं। सीमा पर तवांग जैसी झड़पें पूर्व के दशकों में भी होती रही हैं। तब चीन और उसकी कूटनीति के आगे भारत इसे सीमा विवाद कहकर आगे बढ़ाता रहा, जिसकी जानकारी आम नागरिकों को तो क्या जन प्रतिनिधियों तक को नहीं हो पाती थी। प्रश्न यह है कि क्या वर्ष 2014 से पूर्व वाले सम्बन्ध और कूटनीति में परिवर्तन वाली मुद्रा ही इसके लिए उत्तरदायी है? जबकि भारत ने चीन पर अपनी व्यूह रचना मित्र राष्ट्रों के साथ कूटनीतिक मानकों पर एक साथ परिवर्तित की है। ब्रिक्स शिखर सम्मेलन वर्ष 2014 में ब्राजील में हुआ। इस सम्मेलन में दोनों देशों की प्रत्यक्ष भेंट व औपचारिक वार्ता हुई। उस आपसी बातचीत में भारतीय प्रधानमंत्री ने चीन के राष्ट्रपति को भारत आने का निमंत्रण दिया। तब से वर्ष 2022 तक दोनों के मध्य लगभग 17 बार सीधा सम्पर्क, वार्ता और व्यापारिक प्रतिनिधि मिलन हो चुका है। फिर भी सीमा का यह तनाव दोनों देशों की सेनाओं में सीमा को लेकर जीवित है। इसके कई कारणों में से प्रमुख निम्न हैं –
1) चीन की आन्तरिक राजनीति
शी जिनपिंग का देश में जब राजनीतिक विरोध उत्पन्न होता है तब चीन स्वयं स्थानीय जनता का ध्यान भटकाने के लिए भारत के साथ संघर्ष और सीमा पर झड़पें करता है। अभी शी जिनपिंग को जीरो कोविड पॉलिसी और घटते निर्यात के चलते देश में जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ रहा है। थियेनमैन की घटना के बाद चीन की जनता सड़कों पर है। शी जिनपिंग कुर्सी छोड़ो के नारे लगाए जा रहे हैं। लॉक डाउन के बाद से चीन की जनता परेशान है। मजदूरकश जनता के पास रोजगार और बचत दोनों नहीं हैं। जीरो कोविड पॉलिसी के कारण चीन की अर्थव्यवस्था भी डगमगा रही है। वर्ष 2020 में जब जनता कोरोना से पीड़ित थी, WHO की टीम वुहान में भेजने की मांग हो रही थी, ठीक उसी समय चीन ने सभी का ध्यान भटकाने के लिए गलवान घाटी में घुसपैठ के प्रयास किए थे।
क्रमशः