भगवान महादेव और भारतभूमि की महिमा
प्रागैस्लामी अरब में हिंदू-संस्कृति- (भाग-14)
गुंजन अग्रवाल
‘शायर-उल्-ओकुल’ की एक अन्य महत्त्वपूर्ण एवं रहस्योद्घाटनकारी कविता अरब के महाकवि और भगवान् महादेव के परम भक्त ‘अमर-इब्न हिशाम’ की है, जिन्हें उनके समकालीन व्यक्ति सम्मानपूर्वक ‘अबूल हक़म’ (Abū l-Hakam ज्ञान का पिता) कहकर पुकारते थे। हिशाम मक्का के एक प्रसिद्ध नेता थे, जो कुरैशी वंश के ‘बानु मखजुम’ (Banu Makhzum) शाखा से संबंध रखते थे। इस दृष्टि से हिशाम, मुहम्मद साहब के चाचा लगते थे, यद्यपि वह उनके सगे चाचा नहीं थे। हिशाम ने मक्का के इस्लामीकरण के समय इस्लाम स्वीकार करने से इनकार कर दिया था, अतः मुसलमान द्वेषवश उन्हें ‘अबू ज़हाल’ (Abū Jahl अज्ञान का पिता) कहते थे। हिशाम के पुत्र इकरिमाह इब्न अबि-जहाल (Ikrimah ibn Abi-Jahl) ने सन् 630 ई. में इस्लाम स्वीकार कर लिया और वह प्रारम्भिक इस्लामी राज्य का महत्त्वपूर्ण नेता हुआ। हिशाम हिंदू-धर्म को बचाने के लिए लड़े गए बद्र के युद्ध (Battle of Badr : March 17, 624 AD) में उन मुसलमानों के हाथों शहीद हुए जो सभी ग़ैर-इस्लामी चिह्नों को मिटा देना चाहते थे। इस महाकवि ने मक्का के कुलदेवता मक्केश्वर महादेव और पवित्र भारतभूमि के लिए कविता लिखी थी, जो मक्का के वार्षिक ओकाज़ मेले में प्रथम पुरस्कृत होकर काबा देवालय के भीतर स्वर्णाक्षरों में उत्कीर्ण होकर टंगी थी—
कफ़विनक़ ज़िक़रा मिन उलुमिन तब असेरू। क़लुवन अमातातुल हवा तज़क्क़रू॥1॥
न तज़ख़ेरोहा उड़न एललवदए लिलवरा। वलुकएने ज़ातल्लाहे औम तब असेरू॥2॥
व अहालोलहा अज़हू अरामीमन महादेव ओ। मनोज़ेल इलमुद्दीने मीनहुम व सयत्तरू॥3॥
व सहबी के याम फ़ीम क़ामिल हिंदे यौग़न। व यकुलून न लातहज़न फ़इन्नक़ तवज़्ज़रू॥4॥
मअस्सयरे अख़्लाक़न हसनन कुल्लहूम। नजुमुन अज़ा अत सुम्मा ग़बुल हिंदू॥5॥ (A)
अर्थात् ‘वह मनुष्य, जिसने अपना जीवन पाप और अधर्म में बिताया हो; काम-क्रोध में अपना यौवन नष्ट कर लिया हो ॥1॥ यदि अन्त में उसे पश्चाताप हो और वह भलाई के मार्ग पर लौटना चाहे तो क्या उसका कल्याण हो सकता है? ॥2॥ हाँ, यदि वह एक बार भी सच्चे हृदय से महादेव की आराधना करे, तो वह धर्म-मार्ग पर परम पद को प्राप्त कर सकता है॥3॥ हे प्रभु! मेरा समस्त जीवन लेकर केवल एक दिन हिंद (भारत) में निवास के लिए दे दो; क्योंकि उस पवित्र भूमि पर पहुँचकर मनुष्य आध्यात्मिकतः मुक्त हो जाता है॥4॥ वहाँ की यात्रा से सत्कर्म के गुणों की प्राप्ति होती है और आदर्श हिंदू-गुरुजनों का सत्संग मिलता है॥5॥’
प्रागैस्लामी अरबी-कवि अमर इब्न हिशाम की उपर्युक्त कविता से अनेक महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष निकलते हैं। सर्वप्रथम, हमारी यह मान्यता और भी पुष्ट हुई है कि भगवान् महादेव समस्त अर्वस्थान में परमपूज्य देवता के रूप में प्रतिष्ठित थे। दूसरा, उपर्युक्त कविता में ‘हिंद’ (भारत) और ‘हिंदू’ शब्द अरबवासियों के लिए वरदानस्वरूप बताया गया है। प्रागैस्लामी युग में अरबवासी भारतभूमि को ‘हिंद’ कहते थे और उसकी यात्रा के लिए अत्यन्त उत्सुक रहा करते थे। हिंद के प्रति अरबों में इतना श्रद्धाभाव था कि अरबवासी प्रायः अपनी बेटियों के नाम ‘हिंद’ रखते थे। प्रागैस्लामी अर्वस्थान में ‘हिंद-बिन-उतबाह’ (Hind bint ‘Utbah : late 6th and early 7th centuries CE) नामक एक प्रभावशाली महिला हुई, जिसने मुहम्मद साहब के विचारों का विरोध किया था। इस कारण इस्लामी इतिहास में वह कुख्यात है। स्वयं मुहम्मद साहब की एक पत्नी का नाम भी हिंद (पूरा नाम ‘उम्म सलमा हिंद बिन्त अबी उम्मैया’, Umm Salama Hind bint Abi Umayya : 580 ?-680) (B) था। इनके अतिरिक्त अर्वस्थान में हिंद नामवाली कई महिलाएँ हुईं। अरबवासी भारतीय ऋषि-मुनियों, चिन्तकों, वेदांतियों, विद्वानों तथा द्रष्टाओं को अपना मार्गदर्शक मानते थे। उन्हीं के चरणों में बैठकर अरबों ने सभ्यता का प्रथम पाठ सीखा।
(लेखक महामना मालवीय मिशन, नई दिल्ली में शोध-सहायक हैं तथा हिंदी त्रेमासिक ‘सभ्यता संवाद’ के कार्यकारी सम्पादक हैं)
संदर्भ सामग्री
- Sayar-ul-Okul, p. 235
- मुहम्मद साहब की 13 पत्नियाँ थीं— 1. खदीजा-बिन-खुवैलिद (Khadijah bint Khuwaylid : 555-619), 2. सौदा-बिन-ज़मा (Sawda bint Zama ibn Qayyis ibn Abd Shams : ?-637), 3. आइशा (Aisha bint Abu Bakr : d. 678), 4. हफ़सा-बिन-उमर (Hafsah bint ‘Umar : 609-666), 5. ज़यनाब-बिन-खुज़ैमा (Zaynab bint Khuzayma : 595-?), 6. उम्म सलमा हिंद-बिन-अबी उम्मैया (Umm Salama Hind bint Abi Umayya : 580-680), 7. ज़यनाब-बिन-जहश (Zaynab bint Jahsh : 593-?), 8.जुवैरिया-बिन-अल्-हरिथ (Juwayriya bint al-Harith : 608-?) 9. रामलाह-बिन-अबी सूफयाँ (Ramlah bint Abi Sufyan : 589-666), 10. रायहना-बिन-ज़ायद (Rayhana bint Zayd ibn Amr : d. 631/632), 11. साफ़िया-बिन-हुयाय (Safiyya bint Huyayy : 610-670), 12. मायमुना-बिन-अल्-हारिथ (Maymuna bint al-Harith : 594-674) एवं13. मारिया अल्-क़िबतिया (Maria al-Qibtiyya)