अवलोकन, पुनरवलोकन, विलोकन, सिंहावलोकन और विहंगावलोकन का प्रयोग कब और कैसे

कमलेश कमल
अवलोकन, पुनरवलोकन, विलोकन, सिंहावलोकन और विहंगावलोकन का प्रयोग कब और कैसे
अवलोकन का अर्थ है– देखना; जिसमें ‘अव’ उपसर्ग का अर्थ नीचे, हीन आदि है। निकट अथवा नीचे रखी वस्तु, जैसे पुस्तक आदि का अवलोकन किया जाता है। किसी चीज़ को दुबारा देखने के लिए ‘पुनरवलोकन’ शब्द का प्रयोग किया जाता है, जिसे अज्ञानवश ‘पुनरावलोकन’ लिख दिया जाता है। अवलोकन में ‘पुनर्’(अर्थ : दुबारा) उपसर्ग लगकर ‘पुनरवलोकन’ शब्द बनेगा, न कि पुनरावलोकन।
विलोकन का अर्थ है– विशेष रूप से या अच्छी तरह देखना, जिसमें ‘वि’ उपसर्ग विशेष का द्योतक है। अगर दुबारा अच्छी तरह देखना हो, तो उसके लिए शब्द है– पुनर्विलोकन (पुनरविलोकन अशुद्ध है)। हम जानते हैं कि न्यायिक प्रक्रिया में पुनर्विलोकन याचिका के अंतर्गत दुबारा अच्छी तरह मामले को देखने का अनुरोध किया जाता है।
विहंगावलोकन का अर्थ है– विहंग या पक्षी की भाँति पैनी निगाह से देखना। आसमान की ऊँचाई में उड़ रहा एक पक्षी ज़मीन पर गिरे अनाज के एक दाने को भी देख लेता है। इसी से शब्द बना ‘विहंगम-दृष्टि’। स्पष्ट है कि विहंगावलोकन में सूक्ष्म और पैनी-दृष्टि अपेक्षित होती है।
सिंहावलोकन शब्द बना है– ‘सिंह + अवलोकन’ से। सिंह जब चलता है तो थोड़ी-थोड़ी देर बाद गर्दन घुमा कर पीछे देखता है कि सब ठीक तो है। गर्वित वनराज का पलट कर देखना आत्मविश्वास से पूर्ण होता है; लेकिन इसमें सूक्ष्म नहीं, अपितु व्यापक दृष्टि होती है। पता होता है कि सब ठीक ही है; तथापि पीछे मुड़कर एक बार सुनिश्चित किया जाता है।
विशेष : दृष्टि शब्द की व्युत्पत्ति ‘दृश’ धातु से है। ‘दृश्’ धातु का अर्थ है– देखना, अवलोकन करना, नज़र डालना, निरीक्षण करना, निहारना, दृष्टिगोचर करना, खोज करना, दर्शन करना इत्यादि। आँख को ‘दृशा’ और ‘दृशी’ भी कहा जाता है; क्योंकि यह देखने के काम आती है। जो देखने में मदद करे, ऐसे गुरु को ‘दृशान’ कहा जाता है। जो ‘दृश्’; अर्थात् देखने के योग्य हो, वह ‘दृश्य’ कहलाता है। जो देख लिया गया, वह ‘दृष्ट’। दृष्टि से देखने की शक्ति, समीक्षण आदिक का अर्थ मिलता है। यही दृष्टि प्राकृत (दिट्ठी) से पालि (दिट्ठ) के रास्ते हिंदी में आकर ‘दीठ’ बन गया।