अखिल भारतीय साहित्य परिषद् का प्रांतीय अधिवेशन व साहित्यकार सम्मेलन सम्पन्न

अखिल भारतीय साहित्य परिषद् का प्रांतीय अधिवेशन व साहित्यकार सम्मेलन सम्पन्न

अखिल भारतीय साहित्य परिषद् का प्रांतीय अधिवेशन व साहित्यकार सम्मेलन सम्पन्नअखिल भारतीय साहित्य परिषद् का प्रांतीय अधिवेशन व साहित्यकार सम्मेलन सम्पन्न

चूरू। अखिल भारतीय साहित्य परिषद, राजस्थान के जयपुर प्रांत द्वारा 19 जून को चूरू जिले के सुजानगढ़ में प्रांतीय अधिवेशन और साहित्यकार-सम्मेलन आयोजित किया गया। राजस्थान लोक सेवा आयोग, अजमेर के पूर्व सदस्य व मोदी विश्वविद्यालय के प्रसिडेंट प्रो. पीके दशोरा ने मुख्य अतिथि के रूप में अपने विचार रखते हुए कहा कि स्वतंत्रता और स्वाधीनता में अंतर समझना होगा। देश की स्वतंत्रता के लिए 1857 से लेकर 1947 तक क्रांतिकारियों व आन्दोलनकारियों के साथ ही लेखकों, कवियों और पत्रकारों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी गौरव-गाथा हमें प्रेरणा देती है कि हम स्वतंत्रता के मूल्य को बनाये रखने के लिए कृत संकल्पित रहें।

उद्घाटन सत्र में साहित्य परिक्रमा के संपादक डॉ. इदुशेखर तत्पुरूष ने कहा कि स्वाधीनता का आंदोलन केवल राजनैतिक चेतना का ही नहीं अपितु सामाजिक, साहित्यिक, धार्मिक और सांस्कृतिक चेतना का आंदोलन था। स्वाधीनता पहले सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्तर पर आनी चाहिए। उन्होंने स्वामी विवेकानन्द, दयानन्द सरस्वती और बाल गंगाधर तिलक के योगदान को रेखांकित करते हुए कहा कि हमें सांस्कृतिक और सामाजिक स्तर की स्वाधीनता पर भी विचार करने की आवश्यकता है।

सत्र की मुख्य वक्ता डॉ. साधना जोशी प्रधान ने स्वतंत्रता संग्राम व भारतीय भाषा साहित्य पर महत्वपूर्ण बातें बताईं और भारतीय भाषाओं के योगदान के उदाहरण दिए।

अध्यक्षीय उद्बोधन में परिषद् के क्षेत्रीय अध्यक्ष डॉ. अन्नाराम शर्मा ने राजस्थान के कवियों के स्वाधीनता संग्राम में योगदान को महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने स्वाधीनता संग्राम को तीन कालखण्डों में बांटते हुए उसकी व्याख्या की। उन्होंने कहा कि जागरूक क्रांति-दृष्टाओं ने सन् 1857 से पूर्व के आत्महीनता काल को आत्मगौरव की जागृति में बदलने का कार्य किया। डॉ. शर्मा ने अनेक लोकनायकों के उल्लेख के साथ 1947 के बाद के आन्दोलन की व्याख्या की। आयोजन के विशिष्ट अतिथि पूर्व पीएमओ डॉ. एनके प्रधान थे।

उद्घाटन सत्र का शुभारम्भ सुजानगढ़ की छात्राओं द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना और जयपुर प्रांत के महामंत्री राजेन्द्र शर्मा मुसाफ़िर द्वारा प्रस्तुत परिषद गीत से हुआ। उद्घाटन सत्र का संचालन साहित्यकार डॉ.घनश्याम नाथ कछावा ने किया।

संगठनात्मक सत्र में बोलते हुए क्षेत्रीय संगठन मंत्री डॉ. विपिन बिहारी पाठक ने सामाजिक विकृतियों की ओर संकेत करते हुए हुए कहा कि साहित्यकार को अपने दायित्वों के प्रति सचेत रहना चाहिए। स्वाधीनता संग्राम में साहित्यकारों के योगदानों के साथ ही आज की बदलती स्थितियों पर उन्होंने कहा कि हमारे संस्कार नहीं बचेंगे तो संस्कृति भी नहीं बचेगी। उन्होंने दायित्ववान कार्यकर्ता और साहित्यकारों का आह्वान करते हुए कहा कि परिषद् से जुड़ा हर व्यक्ति राष्ट्र के सांस्कृतिक गौरव की रक्षा के लिए सन्नद्ध रहना चाहिए। प्रांत महामंत्री ने राजेन्द्र ‘मुसाफ़िर ने प्रांत की गतिविधियों का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। प्रांत अध्यक्ष ओमप्रकाश भार्गव ‘सरस’ ने आगामी योजनाओं के बारे में बताया। उन्होंने संगठन मंत्री से परामर्श कर प्रांत कार्यकारिणी के विस्तार की घोषणा की और इकाईयों को गतिशील करने पर बल दिया। पाटन के जगदीश माली को प्रांत संगठन मंत्री, विकास बागड़ा को जयपुर-सांगानेर का विभाग संयोजक, हीरापुरा नगर, जयपुर इकाई के संजय यादव को प्रांत सहमंत्री, तारानगर के बनवारी लाल शर्मा को प्रान्त मीडिया प्रभारी, रतनगद के अरविंद कुमार मिश्रा को प्रान्त साहित्य मंत्री और पाटन के गिरधारी सिंह ‘गिरधर’ को प्रान्त कार्यकारिणी सदस्य के दायित्व दिये गये।

अधिवेशन के प्रथम तकनीकी सत्र की अध्यक्षता करते हुए क्षेत्रीय महामंत्री डॉ. केशव शर्मा ने राजस्थान में स्वाधीनता संग्राम और साहित्य की वास्तविकता और कमियों के पीछे के कारणों को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि षडयन्त्र पूर्वक बहुत सा साहित्य सामने ही नहीं आ सका, जो आना चाहिए था। इसी सत्र में डॉ. अखिलानन्द पाठक, श्रीमती संतोष भार्गव और कमलनयन शर्मा ने विचार प्रस्तुत किये।

द्वितीय तकनीकी सत्र जिसका विषय स्वाधीनता संग्राम और हिन्दी पत्रकारिता रहा- में डॉ. सुरेन्द्र डी सोनी ने अध्यक्षीय उद्बोधन में तत्कालीन पत्रकारिता और आज की पत्रकारिता के स्वरूप का तुलनात्मक विष्लेषण किया। मुख्य वक्ता रामस्वरूप रावतसरे के अलावा इंद्र कुमार भंसाली, जयश्री सेठिया, करण सिंह, संजय यादव और रमाकान्त शर्मा ने भी वक्तव्य दिये। कार्यक्रम का समापन कल्याण मंत्र के साथ हुआ।

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