आजादी अभी अधूरी है
तृप्ति शर्मा
आजादी अभी अधूरी है
कभी कभी जीवन में
कोई क्षण ऐसा भी आता है,
सुखद कहें या दुखद कहें
मन समझ नहीं पाता है।
जिस दिन देश सर्वाधिक पीड़ित
घायल और विवश था,
राजनीति के बाजीगर ने
बतलाया स्वतंत्रता दिवस था।
खंडित भारत माता को जब
ताज आजादी का पहनाया,
विश्वासघात कर सप्त सिंधु से
राष्ट्र की यही नियति बतलाया।
निःस्तब्ध निशा सिसक रही थी
मानवता की हत्या पर,
अगणित ललनाओं की दुर्दशा
थी प्रश्न राष्ट्र नियंता पर।
वीभत्स दृश्य देखूं कैसे
रवि मंद गति था, उदासीन सा, खोया सा
नरसंहार देखकर सूरज
बादल में छुप कर रोया था।
भारत माता थी क्षुब्ध देखकर
मेरा स्वरूप ना ऐसा था,
जिस पर बलिदान हुए बेटे
साकार स्वप्न ना वैसा था।
भग्न मूर्ति की क्या पूजा
स्वतंत्रता अभी अधूरी है,
इसको अखंड करने का
लेना संकल्प जरूरी है।
अस्तित्व दिख रहा खतरे में
आक्रोशित हिन्दू आबादी है
तुष्टिकरण का दंश झेलती
यह कैसी आजादी है।
किसको पाकार झूम रहे हो
होश में रहने की यह घड़ी है,
जहां देश बंटा, रक्तपात मचा था
समस्या आज भी वही खड़ी है।
अभी कार्य बहुत शेष है
स्वराष्ट्र का यज्ञ अधूरा है,
जागो पुत्रो मां आह्वान कर रही
तुमको यह करना पूरा है।