इज़रायल में उदार, वाम और दक्षिणपंथी दलों की गठबंधन सरकार
डा॰ अनूप कुमार गुप्ता
अरब राजनीतिक दल के समर्थन से इज़रायल में सरकार बनाने की कवायद को बड़े आश्चर्य से देखा जा रहा है। लगभग दो वर्षों से लगातार राजनीतिक अस्थिरता का सामना कर रहे इज़रायल में मार्च 2021 के चतुर्थ संसदीय चुनाव के बाद अब मिलीजुली नई सरकार बनने का रास्ता साफ हो गया है। नवीन सरकार बनाने के लिए इज़रायल के आठ राजनीतिक दलों ने संयुक्त रूप से वहाँ के राष्ट्रपति रुविन रिवलीन को एक मिली जुली सरकार बनाने का दावा पेश किया है। इन आठ राजनीतिक दलों के बीच सम्पन्न पारस्परिक समझौते के अनुसार इस नवीन सरकार के पहले दो वर्ष के लिए यमीना पार्टी के मुखिया नफटाली बेनेट और परवर्ती दो वर्ष के लिए यश अतीद पार्टी के मुखिया यायिर लपीद प्रधानमंत्री होंगे।
इज़रायल के वर्तमान प्रधानमंत्री एवं लिकुद पार्टी के मुखिया बेंजामिन नेतान्याहू वर्ष 2009 से लगातार सत्ता में हैं। उन्होंने इज़रायल के राजनीतिक इतिहास में सर्वाधिक लंबे समय तक प्रधानमंत्री बने रहने का रिकार्ड बनाते हुए प्रथम प्रधानमंत्री डेविड बेन गुरिओन का भी रिकार्ड तोड़ दिया था। लेकिन अप्रैल 2019 से मार्च 2021 तक 120 सदस्यीय इज़रायल संसद क्नीसेट के चार चुनाव सम्पन्न हुये, जिनमें कोई भी राजनीतिक दल बहुमत की सरकार नहीं बना सका और बेंजामिन नेतान्याहू कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने रहे। किन्तु मार्च 2021 के चुनाव के पश्चात राष्ट्रपति द्वारा प्रस्ताव देने के बाद जब पुनः नेतान्याहू सरकार नहीं बना सके तो राष्ट्रपति रिवलीन ने पाँच मई 2021 को यश अतीद के मुखिया यायिर लपीड को सरकार बनाने का प्रस्ताव दिया। यायिर लपीड ने नेतान्याहू विरोधी दलों को एकजुट करने के प्रयास किए। लेकिन मई माह में यरूशलम में सांप्रदायिक तनाव और इज़रायल-गाज़ा संघर्ष के बाद इज़रायल के कई अरब-यहूदी आबादी वाले मिश्रित शहरों में हिंसक दंगों के बीच सरकार बनाने की प्रक्रिया ठंडे बस्ते में चली गयी।
लग तो ऐसा रहा था कि इज़रायल की जनता को एक बार फिर से संसदीय चुनाव का सामना करना पड़ेगा। लेकिन यायिर लपीड ने कई दिनों की राजनीतिक गहमागहमी के पश्चात किसी प्रकार भिन्न-भिन्न विचारधाराओं वाले आठ राजनीतिक दलों को जोड़ कर पिछले दिनों सरकार बनाने का दावा पेश करने में सफलता प्राप्त की। लेकिन अभी इस मिलीजुली प्रस्तावित सरकार को इज़रायल की संसद में 14 जून को विश्वासमत पाना होगा जो बहुत आसान प्रतीत नहीं होता। 120 सदस्यीय संसद में विश्वासमत के लिए 61 मतों को पाना जरूरी है।
इन आठ राजनीतिक दलों में आपस में कई मुद्दों पर बहुत ही मतभेद हैं और कहा जा रहा है कि इन मतभेदों से पार पाना आसान नहीं होगा। ये आठ राजनीतिक दल विभिन्न विचारों का समुच्चय हैं। इनमें से यश अतीद और ब्लू एंड व्हाइट जैसे दो दल उदारवादी मत के हैं। जबकि लेबर और मेरेट्ज़ जैसे दो दल वाम विचारधारा के हैं। साथ ही यमीना, न्यू होप और यीसरायल बेतनेयु जैसे तीन दल दक्षिणपंथी विचारधारा के हैं। लेकिन आठवाँ दल मंसूर अब्बास के नेतृत्व वाला रा’आम है जो कि इजरायल का अरब राजनीतिक दल है। अरब राजनीतिक दल के समर्थन से इज़रायल में सरकार बनाने की कवायद को बड़े ही आश्चर्य से देखा जा रहा है। इन आठ राजनीतिक दलों के गठबंठन के पास विश्वासमत हेतु जरूरी कुल 61 संसद सदस्य ही हैं। यमीना पार्टी के एक सदस्य नीर ओरबाख ने संकेत दिया है कि वह इस गठबंधन का संसद में विरोध करेंगे। यमीना पार्टी के मुखिया नफटाली बेनेट के लिए यह एक बड़ी चुनौती होगी। विश्लेषकों का कहना है कि नेतान्याहु का विरोध ही इन आठों दलों को एक साथ लाया है। यह मिलीजुली सरकार कितनी स्थायी होगी यह समय ही बता सकता है।
लेकिन यह भी सत्य है कि 14 मई 1948 को अस्तित्व में आने के बाद से इज़रायल के राजनीतिक इतिहास में अब तक किसी भी राजनीतिक दल को 120 सदस्यीय इजरायली संसद क्नीसेट में पूर्ण बहुमत नहीं मिला है और सदैव ही वहाँ मिली-जुली सरकार ही बनती रही है। 1980 के दशक तक इज़रायल की राजनीति में वाम-उन्मुख लेबर पार्टी का दबदबा था और उसके नेतृत्व में ही मिलीजुली सरकार बनी तो उसके बाद से दक्षिणपंथी लिकुद पार्टी के नेतृत्व में मिलीजुली सरकार बनी। लेकिन इज़रायल के संसदीय इतिहास में यह पहला मौका है कि जब किसी रूढ़िवादी अरब राजनीतिक दल के समर्थन से उदार, वाम और दक्षिणपंथी दल एक साथ सरकार बना रहे हैं। इस नवीन सरकार को राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक मोर्चों पर चुनौतियों के साथ-साथ राष्ट्रीय सुरक्षा के संकट का भी सामना करना होगा।
(लेखक हिब्रू विश्वविद्यालय इजरायल एवं जे॰ एन॰ यू॰ नई दिल्ली के पुरातन छात्र हैं)