एक था रामा मांग…

एक था रामा मांग...

एक था रामा मांग...

तावशी, ता. लोहारा (पायगा) में रामा मांग नामक व्यक्ति ने आर्य समाज की दीक्षा ली थी। सन् 1932 में तावशी में एक हिन्दू मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाने के प्रयास किए जा रहे थे। तभी क्रोधित आर्य समाजी लोगों ने मस्जिद के चबूतरे को तोड़ दिया, फिर तावशी के रज़ाकार, आसपास के गांव में जाकर दो ट्रक भरकर सशस्त्र पठान और अरबी लोगों को बुलाकर लाए।

ये सभी – “अब देखते हैं, किसमें हिम्मत है हमें रोकने की?” और “अल्ला हू अकबर” चिल्लाते हुए मंदिर को तोड़ने के लिए निकले। इतने सारे सशस्त्र पठानों और अरबों को देखकर सभी हिन्दू चुपचाप खड़े रहे। लेकिन तभी जोर से आवाज आयी – “मैं तैयार हूं…. तुम लोगों से मुकाबला करने के लिए !! मंदिर की एक ईंट को भी किसी ने हाथ लगाया, तो एक-एक के सिर काट दूंगा!!” यह आवाज़ थी, रामा मांग की !! वह अकेला ही था, लेकिन बहुत बलशाली था। रामा को आगे आते हुए देखकर एक पठान ने उस पर गोली चलाई। गोली उसकी जांघ में घुस गई। उसी अवस्था में रामा मांग अरबों और पठानों की भीड़ पर टूट पड़ा। पहले ही झटके में उसने चार पठान और एक अरब को नरक पहुँचा दिया। एक पठान के हाथ से बंदूक छीन कर उसने चार और पठानों और एक अरब का सिर फोड़ दिया। एक पठान के हाथ का तमंचा उसने छीन लिया। रामा मांग का वह आवेश देखकर, पठानों और अरबों ने वहां से भाग जाने में ही अपनी भलाई समझी। लोग रामा मांग को तुलजापुर ले गए और फिर वहां से उसे उस्मानाबाद ले जाया गया। जांघ में लगी गोली के कारण अत्यधिक रक्त बह गया था और वह बेहोश हो गया था। अंततः उस्मानाबाद के अस्पताल में उसकी मृत्यु हो गई।

​​आर्य समाज की एक शाखा के अध्यक्ष माणिकराव पर गुंडों ने हमला कर उन्हें जख्मी कर दिया। 27 अक्तूबर 1938 को अस्पताल में उनका निधन हो गया। पुलिस ने उनके शव को उनके घरवालों को देने से इंकार कर दिया। तब आर्य समाजी युवकों ने इसके विरोध में जुलूस निकाला। पुलिस ने पं. देवीलाल और अन्य 20 आर्य समाजी कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर किया था।

​​निजाम ने हर तरह से आर्य समाजी कार्यकर्ताओं पर अत्याचार किए। आर्य समाज पर निजाम को अत्यंत क्रोध था। हिन्दुओं को संगठित करने वाले आर्य समाज के आंदोलन को कुचलने के लिए उसने हर संभव मार्ग अपनाया। लेकिन उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप आर्य समाज की शाखाएं दुगुनी होने लगीं। आर्य समाज ने न केवल हिन्दुओं को संगठित किया, बल्कि मुसलमानों को भी वैदिक पद्धति से दीक्षा देकर उनका शुद्धिकरण का कार्य अत्यंत द्रुतगति से जारी रखा। अनेक अस्पृश्यों को आर्य समाज में स्थान देकर उनके मन में हिन्दू धर्म के प्रति प्रेम और स्वाभिमान पैदा किया। आर्य समाज द्वारा हैदराबाद स्टेट में किया गया यह कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण और बहुमूल्य है। आर्य समाज संगठन के कारण ही हैदराबाद स्टेट कांग्रेस मजबूती से खड़ी हो सकी।

(मराठी ग्रंथ – “हैदराबाद स्वातंत्र्य संग्राम” से साभार, लेखक: स्व. वसंत ब. पोतदार)

Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *