ऑनलाइन गेमिंग एप्स : अकर्मण्यता के भाड़ में युवा ऊर्जा

मुरारी गुप्ता
ऑनलाइन गेमिंग एप्स : अकर्मण्यता के भाड़ में युवा ऊर्जा
जयपुर जिले के कुणाल सिंह को कुछ वर्षों पहले आईपीएल देखने का चस्का लगा था। मोबाइल पर आईपीएल देखते देखते वह इसी खेल से जुड़े ऑनलाइन गेम एप में रजिस्टर हो गया। अब क्रिकेट देखने के साथ एप पर खेलने का चस्का लगा। क्रिकेट से अधिक एप में रुचि पैदा हुई। कुछ पैसे खाते में आने लगे। उसका चस्का और बढ़ा। पैसा जीतने और हारने के खेल में उसने अपना घर गिरवी रख दिया। घर गिरवी रखने के बाद अब उसकी मानसिक हालात ऐसी है कि वह पागलों की तरह व्यवहार करने लगा है। आए दिन घर में पत्नी और बच्चों के साथ मार-पीट और जैसे-तैसे उधार लेकर नशा उसकी दिनचर्या बन गई है। सड़क के ऊपर चमचमाते बोर्डों पर खिलाड़ियों और फिल्मी सितारों के बड़े चेहरों के साथ दिखाए जा रहे रातों रात अमीर होने के सपनों के बीच देश के युवा किसी गहरी, अनजानी और अकर्मण्यता की सुनसान गली में धंसते जा रहे हैं। यह ऐसी संकरी गली है, जिसकी दीवारों पर चमचमाते सपने उगे हुए हैं, लेकिन उनकी जड़ें उंगली भर भी नहीं हैं। यह लत की संकरी गली है, जिसमें वापसी का कोई रास्ता नहीं है। कई बार यह संकरी गली जीवन के बर्बाद होने और आत्महत्या के महासागर में भी मिल जाती है।
तकनीक के विकास के साथ ऑनलाइन गेमिंग एप्स युवाओं के जीवन का रोचक अंग बन चुके हैं। हालांकि, ये एप्स मनोरंजन और कौशल विकास के कुछ अवसर प्रदान कर सकते हैं, लेकिन इनके बढ़ते प्रभाव ने समाज में अनेक प्रकार की चिंताएं भी पैदा कर दी हैं। ऑनलाइन सट्टेबाजी, फैंटेसी गेम्स और अन्य प्लेटफॉर्म्स ने नई पीढ़ी को आर्थिक और मानसिक रूप से बुरी तरह झकझोर दिया है। दुर्भाग्य की बात यह है कि जिनसे युवा पीढ़ी प्रभावित होती है, जिनके जैसा बनने का प्रयास करती है, वे सितारे ही इन गेम्स को प्रमोट करते दिखते हैं। इनमें से कुछ तो पद्मश्री प्राप्त भी हैं। बड़ी सेलिब्रिटीज और क्रिकेट खिलाड़ियों द्वारा इनका प्रचार किए जाने से इन गेम्स को सामाजिक स्वीकृति मिल रही है। यह एक गंभीर मुद्दा है।
ऑनलाइन गेमिंग एप्स का सबसे बड़ा नकारात्मक प्रभाव युवाओं की उत्पादकता पर पड़ रहा है। जिस युवा से देश कुछ रचनात्मक कर राष्ट्र निर्माण की अपेक्षा रखता है, वह युवा शक्ति अपना अधिकांश समय रातों-रात अमीर होने के लिए इन प्लेटफॉर्म्स पर बिता रही है। इससे उनकी पढ़ाई, करियर और व्यक्तिगत विकास पर बुरा असर पड़ रहा है। मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि गेमिंग की लत नई पीढ़ी में एकाग्रता की कमी के साथ उनमें मानसिक तनाव और आक्रामकता को बढ़ावा दे रही है। हार और जीत के चक्र में फंसकर उनका मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है।
एक समय था, जब देश में लॉटरी में हारने से आत्महत्याओं के समाचारों से समाचार पत्र भरे रहते थे और सामाजिक ताना बाना तहस नहस हो रहा था। भारत में लॉटरी गैर कानूनी है। देश में लॉटरी रेगुलेशन एक्ट-1998 लागू है। यह एक्ट स्पष्ट रूप से लॉटरी खेलने पर प्रतिबंध लगाता है। हालांकि इसमें एक छूट है कि यदि राज्य सरकारें अपनी आधिकारिक लॉटरी चलाना चाहें, तो ऐसा कर सकती हैं। कुछ राज्यों में अब भी लॉटरी चल रही है। लेकिन फैंटेसी गेम्स के नाम पर अब कई ऑनलाइन गेम्स चल रहे हैं, जिन्हें वैधानिक छूट भी प्राप्त है। हालांकि कुछ राज्य सरकारों ने इन फैंटेसी गेम एप्स पर भी प्रतिबंध लगा रखा है। इन गेम्स को कौशल आधारित खेल बताया जाता है, जिसमें गेम खेलने वाला कथित तौर पर अपने कौशल का उपयोग कर टीम बनाता है और गेम खेलता है। ये प्लेटफॉर्म रातों-रात अमीर बनने का सपना दिखाते हैं, जिसमें कई बार युवा फंस जाते हैं।
ऑनलाइन गेमिंग के साथ अंतर केवल इतना है कि यह अब डिजिटल हो गया है और बड़ी-बड़ी हस्तियां इसे प्रमोट कर रही हैं। विज्ञापनों में दिखाया जाता है कि ये गेम्स मनोरंजन और कौशल के लिए हैं, लेकिन असल में ये जुए को ही बढ़ावा देते हैं। युवाओं पर इनका गहरा प्रभाव पड़ता है, क्योंकि वे अपने आदर्शों को फॉलो करते हैं। बड़ा प्रश्न यह है कि क्या यह नैतिक रूप से उचित है? बड़ी हस्तियों का समाज पर प्रभाव होता है। यदि वे नैतिक दायित्व निभाएं, तो समाज में सकारात्मक बदलाव लाए जा सकते हैं।
राज्य को ऑनलाइन गेमिंग एप्स को नियंत्रित करने के लिए सख्त कानून बनाने चाहिए। गेमिंग रेगुलेशन बनाकर एक स्पष्ट कानून बनाना चाहिए ताकि इन एप्स की गतिविधियों को नियंत्रित किया जा सके। सेलिब्रिटीज को ऐसे गेम्स के प्रचार से रोका जाए। इन प्लेटफॉर्म्स पर 21 वर्ष से कम आयु के लोगों की भागीदारी पर रोक लगनी चाहिए। इसके अतिरिक्त युवाओं को सिखाया जाए कि कैसे सही तरीके से निवेश किया जाए और आर्थिक हानि से बचा जाए। समाज के स्तर पर भी जागरूकता की आवश्यकता है। माता-पिता को बच्चों पर दृष्टि रखने की आवश्यकता है। स्कूलों और कॉलेजों में ऑनलाइन गेमिंग की लत से बचने के उपायों पर चर्चा होनी चाहिए।
ऑनलाइन गेमिंग एप्स, विशेष रूप से सट्टा आधारित खेल, समाज के लिए एक गंभीर चुनौती बन चुके हैं। यदि सरकार और समाज ने समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया, तो यह समस्या और विकराल रूप धारण कर सकती है। एक पूरी पीढ़ी अकर्मण्यता की शिकार हो सकती है, जिसके दुष्प्रभाव अंततः देश और समाज को भुगतने होंगे।
(लेखक उपन्यासकार और डीडी न्यूज में संपादक हैं)