खालिस्तान : कांग्रेस और उसकी राजनीति (अंतिम भाग)
खालिस्तान : कांग्रेस और उसकी राजनीति (अंतिम भाग)
दल खालसा और ज्ञानी जैल सिंह के संबंध
लोकसभा में 1 दिसंबर 1981 को ‘Conspiracy against integrity of Indiaʼ चर्चा के दौरान, भाजपा के सदस्य सूरज भान ने तत्कालीन गृहमंत्री, ज्ञानी जैल सिंह पर आरोप लगाया कि दल खालसा के मुखिया हरसिमरन सिंह के साथ उनके घनिष्ठ संबंध हैं। उन्होंने आगे बताया, “1978 में चंडीगढ़ के अरोमा होटल में एक प्रेस कांफ्रेंस पहले दल खालसा की तरफ से हुई, उसके थोड़ी देर बाद ज्ञानी जैल सिंह ने उसी होटल में प्रेस कांफ्रेंस कर ली और उन दोनों प्रेस कांफ्रेंस का बिल ज्ञानीजी ने पे किया……. ज्ञानी जी, होम मिनिस्टर बनने के बाद पहली बार चंडीगढ़ गए तो उसी हरसिमरन सिंह ने, जो दल खालसा का पंच था, ज्ञानी जी का बहुत शानदार रिसेप्शन पंजाब यूनिवर्सिटी के गेस्ट हाउस में किया था।”
मार्क टुली और सतीश जैकब भी अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि “ज्ञानी जैल सिंह का दल खालसा से लगातार संपर्क बना हुआ था। 1982 में राष्ट्रपति बनने के बाद भी उन्होंने चंडीगढ़ के एक पत्रकार को फ़ोन करके कहा कि वह अपने समाचार–पत्र में दल खालसा के समाचारों को पहले पन्ने पर प्रकाशित किया करे।”
प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की निष्क्रियता
अप्रैल 1982 में पंजाब के मुख्यमंत्री दरबारा सिंह ने गृहमंत्री ज्ञानी जैल सिंह को पत्र लिखकर एक महत्वपूर्ण सूचना दी, “दो सौ आदमियों के साथ भिंडरावाले बिना लाइसेंस के हथियार लेकर दिल्ली आ रहा है।” पूर्व सूचना मिलने के बाद भी केंद्र सरकार ने उसे रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाये। वह अपने समर्थकों के साथ तीन सप्ताह तक दिल्ली में रहा और कनॉट प्लेस व बाबा खड़ग सिंह मार्ग पर अपने हथियारों के साथ खुलेआम घूमता रहा। प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की निष्क्रियता पर चौधरी चरण सिंह ने उन्हें एक पत्र लिखा, “इतने राजनीतिक महत्व की बात आपकी जानकारी में न हो, यह हो नहीं सकता। समाचार पत्रों में बाकायदा समाचार छपते हैं, लेकिन कोई गिरफ्तारी नहीं होती।” चरण सिंह ने प्रधानमंत्री गाँधी को यहाँ तक लिख दिया कि “आपने ही भिंडरावाले को हीरो बनाया है। गुरुनानक निवास के क्या मायने हैं? ठीक है वह मंदिर है। लेकिन क्या दुनिया के किसी मंदिर, मस्जिद अथवा गिरिजाघर में क्रिमिनल चला जाए तो उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता?” (लोक सभा – 27 अप्रैल 1983)
नक्सलियों का समर्थन
खालिस्तान और नक्सलियों के बीच गठजोड़ के प्रयास ब्रिटेन के पूर्व डाक कर्मचारी और खालिस्तान समर्थक बख्शीश सिंह ने किए थे। इंडियन एक्सप्रेस के 27 दिसंबर 1981 को प्रकाशित एक समाचार में भी खालिस्तानयों को नक्सलियों का समर्थन प्राप्त होने का दावा किया गया था। हालांकि, इससे पहले ही लोकसभा में 2 दिसंबर 1981 को इंदिरा गाँधी सरकार ने इस मामले से यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि लॉ एंड ऑर्डर राज्यों का काम है।
खालिस्तानी चरमपंथियों को पाकिस्तान द्वारा हथियारों का प्रशिक्षण
द टाइम्स ऑफ इंडिया ने 20 दिसंबर 1984 को दावा किया कि खालिस्तानी चरमपंथियों को 1980 से ही पाकिस्तान के एबटाबाद, हस्सन अब्दल, सियालकोट, और साहिवाल में प्रशिक्षण दिया जाता रहा है। 4 सितम्बर 1982 को ब्लिट्ज ने खुलासा किया कि खालिस्तान के चरमपंथियों को पाकिस्तान में अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की सहायता से प्रशिक्षण दिया जा रहा है। जब इस मामले की और परतें खुलनी शुरू हुईं तो पता चला कि सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं बल्कि भारत में भी उनके प्रशिक्षण के कई शिविर खुले हुए थे, जिन्हें नेशनल कांफ्रेंस का समर्थन प्राप्त था। कांग्रेस (आई) से लोकसभा सदस्य केपी तिवारी ने संसद को बताया, “जम्मू और कश्मीर में रियासी के निकट डेरा बंदा बहादुर और पुंछ में खालिस्तानी चरमपंथियों के प्रशिक्षण शिविर चल रहे हैं। ये भिंडरावाले के भतीजे अमरीक सिंह की निगरानी में चलते हैं। जम्मू और कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री (फारूख अब्दुल्ला) भी इन प्रशिक्षण शिविरों में गए थे और खालिस्तान के समर्थन में नारे लगाये थे।” अमरीक सिंह, प्रतिबंधित संगठन All India Sikh Students Federation का मुखिया था। विशेष बात यह है कि केंद्रीय गृह मंत्री पीसी सेठी ने तिवारी के इन आरोपों को स्वीकार किया था। (लोकसभा – 16 नवंबर 1983) अल्मोड़ा से कांग्रेस (आई) के अन्य संसद सदस्य हरीश रावत ने भी इन शिविरों की सत्यता को सदन के पटल पर रखते हुए कहा, कि “ये 1981-82 से वहां चल रहे हैं।” (लोकसभा – 2 दिसंबर 1983) टाइम्स ऑफ इंडिया ने 18 जून 1984 को लिखा कि जमात–ए–इस्लामी ने पाकिस्तान और खालिस्तान के पक्ष में नारे लगाये हैं। मुफ्ती मोहम्मद सईद उस दौरान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे, उन्होंने भी इसकी पुष्टि करते हुए कहा, “राज्य के जंगलों में ‘गुरमतʼ शिविर चल रहे हैं जहाँ हथियारों से अकाली चरमपंथियों को प्रशिक्षण दिया जाता है।” इन चरमपंथियों को भारतीय सेना से कोर्ट मार्शल किये गए पूर्व मेजर जनरल सुबेघ सिंह द्वारा प्रशिक्षित किया जाता था। (द टाइम्स ऑफ इंडिया – 22 जून 1984)
ऑपरेशन ब्लू स्टार
अप्रैल 1983 में पंजाब सरकार ने प्रधानमंत्री गांधी को जानकारी भेजी कि प्रतिबंधित नेशनल काउंसिल ऑफ़ खालिस्तान का कथित महासिचव बलबीर सिंह संधू, अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर के किसी एक कमरे में रहता है। इसी दौरान, 19 जुलाई 1982 को भिंडरावाले ने मंदिर के गुरुनानक निवास पर कब्जा कर लिया था। उसके पास हथियारों सहित एक छोटी फौज भी वहां तैनात थी। वहीं से अब खालिस्तान संबंधी हर गतिविधि को अंजाम देने का काम होने लगा था। केंद्रीय गृहमंत्री पीसी सेठी ने 19 अप्रैल 1983 को लोकसभा में बताया कि “स्वर्ण मंदिर के उस कमरे में प्रतिबंधित आतंकी संगठन दल खालसा के आतंकी (चरमपंथी) भी शरण लेकर रह रहे हैं।” पंजाब सरकार ने एसजीपीसी के माध्यम से उनके समर्पण के लिए संपर्क किया, लेकिन उसका कोई परिणाम नहीं निकला।
वी. रमन अपनी पुस्तक में लिखते हैं, “जब इंदिरा गाँधी के पास कोई विकल्प नहीं बचा तो उन्होंने RAW के तीन अधिकारियों को विदेशों में खालिस्तानी नेताओं से बातचीत करने के लिए भेजा। प्रधानमंत्री चाहती थीं कि ये अधिकारी उन नेताओं को इस बात के लिए राजी कर लें कि भिंडरावाले और उसके साथी स्वर्ण मंदिर खाली कर दें। यह मुलाकात ज्यूरिख में हुई। वह खालिस्तानी नेता RAW के प्रस्ताव से सहमत हो गया, लेकिन उसने एक शर्त जोड़ दी। दरअसल वह स्वयं स्वर्ण मंदिर जाकर भिंडरावाले से बातचीत करना चाहता था। भारत लौटने पर उन अधिकारियों ने प्रधानमंत्री को विस्तार से यह सब बता दिया। हालाँकि, प्रधानमंत्री ने उस खालिस्तानी नेता की शर्त को मानने से इंकार कर दिया क्योंकि उन्हें डर था कि ऐसा करने पर वह मंदिर के अन्दर भिंडरावाले के साथ जुड़कर भारत सरकार की समस्या को और न बढ़ा दे।
प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी किसी भी तरह से अगले लोकसभा चुनावों से पहले इस समस्या का हल निकालना चाहती थीं। हर प्रकार के प्रयास करने के बाद जब उन्हें कोई सफलता नहीं मिली तो उन्होंने भारतीय सेना को भिंडरावाले के चंगुल से स्वर्ण मंदिर खाली करवाने की जिम्मेदारी सौंपी।
सेना और खालिस्तानी चरमपंथियों के बीच 3 से 6 जून 1984 तक चली कार्यवाही में भिंडरावाले मारा गया और स्वर्ण मंदिर चरमपंथियों के कब्जे से स्वतंत्र हो गया।
समाप्त