कम्युनिस्ट और इस्लामिस्ट कट्टरपंथियों का उदारवाद चंद्रकांता संतति के ऐयारों जैसा
उमेश उपाध्याय
कम्युनिस्ट और इस्लामिस्ट कट्टरपंथियों का उदारवाद देवकीनंदन खत्री के उपन्यास चंद्रकांता संतति के ऐयारों जैसा है। वे इन दिनों अपने उदारवादी होने का खूब स्वांग रच रहे हैं। उपन्यास में वर्णित ऐयारों की खासियत थी कि वे अपने दुश्मनों को भरमाने के लिए जब चाहे जैसा रूप रख लेते थे। रूप बदलने में माहिर ये ऐयार धोखेबाजी की अनुपम मिसाल हैं। ये बहरूपिए ऐयारों की तरह आजकल दुनिया भर में इस्लामिस्ट्स और कम्युनिस्ट मानव अधिकारों, महिला अधिकारों, अल्पसंख्यक अधिकारों, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सहिष्णुता की वकालत करते नज़र आते हैं।
जबकि सैद्धांतिक और व्यावहारिक तौर पर इनसे अधिक असहिष्णु और विरोधियों के प्रति निर्दयी और कोई नहीं है। इसके लिए किसी और साक्ष्य की आवश्यकता नहीं, बल्कि इन दोनों के मूल ग्रंथों को पढ़ना ही काफी है। ये अराजकतावादी कहने को बहुत थोड़े हैं। पर बुद्धिजीवियों, मीडिया और अकादमिक संस्थानों में इनकी गहरी पैठ है। इसका इस्तेमाल करके वे उदारवादी लोकतांत्रिक समाजों में असंतोष, क्रोध, निराशा, प्रतिहिंसा और सामाजिक वैमनस्य का भाव पैदा कर रहे हैं।
इन दोनों विचारधाराओं की असहिष्णुता के उदाहरणों से इतिहास के पन्ने भरे पड़े हैं। लेकिन हम कुछ ताज़ा घटनाओं को आपके सामने रखना चाहते है।
पिछले हफ्ते ही तुर्की की राजधानी इस्तांबुल में राष्ट्रपति इर्दोगन ने हागिया सोफिया संग्रहालय को मस्जिद में बदल दिया। हागिया सोफिया मूलतः एक चर्च है जिसकी भव्य इमारत सन 537 में रोमन सम्राट जस्टीनियन ने बनवाई थी।
1453 में तुर्की के सुल्तान मोहम्मद-II ने जब इस्तांबुल पर कब्ज़ा किया तो उन्होंने इस इमारत को एक मस्जिद में तब्दील कर दिया। वर्तमान उदारवादी तुर्की के निर्माता कमाल अतातुर्क ने इस भवन को एक संग्रहालय में बदल दिया।
उन्होंने हागिया सोफ़िया को सभी मजहबों और संस्कृतियों के लिए खोल दिया। तुर्की के मौजूदा राष्ट्रपति इर्दोगन कट्टरपंथी सोच रखते हैं। उनके इस फैसले पर किंग्स कॉलेज, लन्दन की प्रोफ़ेसर जूडिथ हेरिन ने लिखा है कि इर्दोगन ने ‘प्रतीकात्मक रूप से सहिष्णुता की विरासत का अंत’ कर दिया है।
इस्तांबुल में शताब्दियों से इसाई, मुसलमान और यहूदी एक साथ रहते आए हैं। हेनिन कहती हैं कि हागिया सोफिया यूनेस्को की एक हेरिटेज इमारत है। वह पूरे विश्व की धरोहर है। उसे सिर्फ मुसलमानों को सौंपना एक तरह से ‘सांस्कृतिक सफाई’ जैसा है।
याद रखिए, चीन में माओ ने भी ‘सांस्कृतिक सफाई’ की थी। और आज भी सिंकियांग प्रान्त में उइगर मुसलमानों की ‘सफाई’ का अभियान चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में बाकायदा जारी है। उइगर मुसलमानों की दशा पर एक नया वीडियो पिछले दिनों ही खबरों में आया।
इसके अलावा, अनगिनत रिपोर्ट्स मौजूद हैं, जिनमें बताया गया है कि किस तरह उइगर मुसलमानों के अल्पसंख्यक अधिकारों का हनन हो रहा है। महिलाओं को गर्भधारण न करने देना, रोज़ों के दौरान उपवास न रखने देना तथा विरोध करने वालों को लाखों की संख्या में सुधारगृह रूपी यातना केंद्रों में रखना वहाँ आम चलन है।
क्रमश: