कलाएं मनुष्य को एन्द्रिक सुखानुभूति से ऊपर उठाकर आनन्दमय कोष की ओर ले जाती हैं- इन्दुशेखर
कलाएं मनुष्य को एन्द्रिक सुखानुभूति से ऊपर उठाकर आनन्दमय कोष की ओर ले जाती हैं
जयपुर, 18 अक्टूबर। कला एवं साहित्य की अखिल भारतीय संस्था संस्कार भारती के तीन दिवसीय (18-20 अक्टूबर) राष्ट्रीय कला मिलन उत्सव का आज शुभारंभ हुआ। उत्सव का आयोजन जयपुर के मानसरोवर स्थित माहेश्वरी समाज जनोपयोगी भवन में किया गया है। आज सम्पन्न हुई विभिन्न गतिविधियों में अपरान्ह 3.30 बजे भारतीय कला दृष्टि और अध्यात्म विषय पर सम्पन्न कला संवाद संगोष्ठी में राजस्थान साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. इंदुशेखर तत्पुरुष ने कहा कि भारतीय कला दृष्टि समग्र जीवन को प्रतिबिंबित करती है। मानव जीवन के लौकिक और लोकोत्तर सभी पक्ष हमारी सारी कलाओं में चित्रित और निर्मित होते हैं। जीवन के अधूरे छूटे हुए स्वप्नों, आकांक्षाओं और लक्ष्यों को हम कला के माध्यम से पूर्ण कर आनन्द अनुभव करते हैं। कलाओं में आध्यात्मिक दृष्टि के कारण कलाकार सम्पूर्ण चराचर को अपने से अलग नहीं समझता और उन्हें अपनी निर्मिति में संयोजित करता है। जो कला मम से ममेतर को, प्रत्यक्ष से परोक्ष को और लौकिक से अलौकिक को जोड़ती है, वह उतनी ही आध्यात्मिक दृष्टि से सम्पन्न होती है। उन्होंने कहा कि चित्र, नृत्य, मूर्ति, संगीत ये सभी कलाएं मनुष्य को एन्द्रिक सुखानुभूति विषयों के स्तर से ऊपर उठाकर आनन्दमय कोष की ओर ले जाती हैं। यही उनके आध्यात्मिक स्तर का प्रमाण है। शास्त्रों में इस आनन्द को ब्रह्मानन्द सहोदर कहा जाता है।
सौन्दर्य शास्त्र की भारतीय अवधारणा विषय पर बोलते हुए राजस्थान विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो.(डॉ.) नंदकिशोर पाण्डेय ने कहा कि भारतीय सौन्दर्यशास्त्र में आध्यात्मिकता की प्रस्तुति है। इसी दृष्टि से वाल्मीकि रामायण से लेकर अभी तक के साहित्य और शिल्प में इसे प्रस्तुत किया जाता रहा है। भारतीय वाद्य, संगीत, नाट्य तथा निर्माण कला अध्यात्म को ही पुष्ट करते हैं। इनके माध्यम से भारतीयों ने जीवन जीने की कला सीखी है और मोक्ष की साधना की है।
कला संवाद का संचालन संस्कार भारती जोधपुर प्रांत के अध्यक्ष जितेन्द्र जालोरी ने किया और जयपुर प्रांत की अध्यक्ष डॉ. मधु भट्ट तैलंग ने सभी का आभार व्यक्त किया।
अहिल्याबाई नाटक का हुआ सशक्त मंचन
संगोष्ठी के बाद मालवा की प्रसिद्ध रानी देवी अहिल्याबाई पर आधारित नाटक पुण्यश्लोका अहिल्याबाई का मंचन हुआ। अहिल्याबाई एक अत्यंत प्रजावत्सल, राजनीति में निपुण, सादगी व न्याय की प्रतिमूर्ति शासिका थीं। उन्होंने निजी संपत्ति का उपयोग करते हुए भारत भर में 300 से अधिक मंदिरों, कुओं, बावड़ियों और अन्न क्षेत्रों की स्थापना की। उनके जीवन में अनेक पारिवारिक एवं राजनीतिक चुनौतियां आईं, किन्तु उन्होंने बड़ी दृढ़ता से सभी का सामना करते हुए अपना धर्म किस प्रकार निभाया, आदि को कलाकारों ने अपने अभिनय से बखूबी अभिव्यक्त किया। नाटक का लेखन व निर्देशन संदीप लेले ने किया। प्रकाश, पल्लवी, हृदया, विदुषी, सक्षम, समर्थ, गौरव, देव, सुयष, इंद्रपाल सिंह, सुरुचि, अंकित, राहुल का अभिनय सराहनीय था। संगीत श्याम रेड्डी ने दिया। वेशभूषा मंजरी, रंग सज्जा रवि बांका तथा नृत्य संयोजन याशिका का रहा।