ये चंद पंक्तियाँ कश्मीरी पंडितों की घर वापसी को समर्पित हैं
वो वादियां जो हमारी थी
जहाँ हमने जिंदगी गुजारी थी
चिनारों के साये में सोते थे
केसरिया सूरज संग गाते थे
जहाँ झरने गुनगुनाते थे
आज उसी वादी ने पुकारा है
चाँद के दामन का सहारा है
आओ लौटकर घर चले आएं
मंदिरों और काबा में गुनगुनाएं।