कश्मीर में पाकिस्तान परस्त आतंकी संगठन मासूमों को धकेल रहे आतंक की राह पर
प्रमोद भार्गव
जम्मू-कश्मीर में जब धारा-370 और 35-ए के खात्मे के बाद हालात सामान्य होने के साथ, जन-जीवन मुख्य धारा से जुड़ रहा है, तब कुछ पाकिस्तान परस्त आतंकी संगठन मासूमों को आतंक की राह पर धकेलने का क्रूर खेल, खेल रहे हैं। पुलिस की राज्य जांच एजेंसी (एसआईए) ने बच्चों से लेकर किशोरों तक को गुमराह करने वाले जैश-ए-मोहम्मद के जमीनी कार्यकर्ताओं के बड़े नेटवर्क को हाल ही में ध्वस्त किया है। इसके लिए दक्षिण और मध्य कश्मीर के विभिन्न हिस्सों में छापे मारकर दस ओवरग्राउंड वर्करों को हिरासत में लिया है। इन साजिशकर्ताओं के साथ कुछ स्कूली छात्र भी शामिल हैं। ये आतंकी पाकिस्तान में आतंकवादी संगठन चलाने वाले सरगानाओं के संपर्क में थे। इस संबंध में कुछ दस्तावेजी साक्ष्य भी मिले हैं। इनका नेटवर्क घाटी के अनंतनाग, पुलवामा, शोपियां, कुलगाम, बड़गाम और श्रीनगर में फैला हुआ था। ये लोग किशोर उम्र के मासूमों को आतंकी संगठन में भर्ती के लिए जुटे थे। जिससे आतंकियों के हथियार और संदेश दक्षिण व मध्य-कश्मीर के आतंकवादी ठिकानों पर आसानी से पहुंचाए जाते रहें। इनके पास से बड़ी मात्रा में नगदी, मोबाइल फोन, सिमकार्ड, नकली पिस्तौल और आतंकियों के लिए धन के लेन-देन संबंधी बैंक रिकॉर्ड के कागजात भी मिले हैं। कश्मीर में छात्रों और युवाओं को आतंकी बनाने का खेल लंबे समय से चल रहा है। हालांकि अनुच्छेद-370 खत्म होने के बाद से लेकर अब तक लगभग 200 आतंकी मारे गए हैं, जिनमें 20 पाकिस्तानी थे। अतएव अब घाटी में बमुश्किल 200 के लगभग ही प्रशिक्षित आतंकी बचे हैं, इसलिए आतंकी संगठन नादान किशोरों को भर्ती कर घाटी में आतंकी गतिविधियों का क्रम जारी रखना चाहते हैं।
कुछ समय पहले भी दक्षिण-कश्मीर के शोपियां जिले में एक मजहबी मदरसे के तेरह छात्रों के आतंकवादी समूहों में शामिल होने की खबर मिली थी। इस सिलसिले में जामिया-सिराज-उल-उलूम नाम के मदरसे के तीन अध्यापकों को जन-सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के अंतर्गत गिरफ्तार भी किया गया था। इसे कश्मीर के नामी मदरसों में गिना जाता है। इसके पहले भी यह मदरसा हिंसक घटनाओं, राष्ट्र विरोधी गतिविधियों और यहां के छात्रों के आतंकी वारदातों में शामिल होने के कारण जांच एजेंसियों के रडार पर रहा है। आश्चर्य है कि पिछले कुछ सालों में जो छात्र दक्षिण-कश्मीर में मारे गए हैं, उनमें से 13 ने इसी मदरसे से आतंकी इबारत का पाठ पढ़ा था। पुलवामा हमले में शामिल रहे सज्जाद बट ने भी यहीं से पढ़ाई की थी। अल-बदर का आतंकी जुबैर नेंगरू, हिजबुल का आतंकी नाजमीन डार और एजाज अहमद पाल भी जिहाद की इसी पाठशाला से निकले थे। यह मदरसा जमात-ए-इस्लामी से जुड़ा है। इस मदरसे में जम्मू-कश्मीर के अलावा उत्तर-प्रदेश, केरल और तेलंगाना के छात्र भी पढ़ने आते हैं।
इस खुलासे से स्पष्ट है कि सेना, सुरक्षाबलों और स्थानीय पुलिस का शिकंजा घाटी में कस रहा है। इसलिए आतंकी संगठन मदरसों के छात्रों को आतंकी बनाने का निश्ठुर व क्रूर खेल, खेलने में लग गए हैं। दरअसल बच्चों का मन निर्दोष और मस्तिष्क कोरा होता है, इसलिए उन्हें धार्मिक कट्टरता के बहाने आतंक का पाठ पढ़ाना आसान होता है। चूंकि धारा-370 और 35-ए के खात्मे के बाद घाटी की आम जनता खुले रूप में न केवल मुख्यधारा में शामिल हो रही है, बल्कि शासन-प्रशासन की योजनाओं में बढ़-चढ़कर भागीदारी भी कर रही है। पुलिस और सुरक्षाबलों के लिए मुखबिरी का काम भी आम लोग करने लग गए हैं। इसलिए आतंकी संगठन जनता में घुसपैठ बनाने में नाकाम साबित हो रहे हैं। परिणामस्वरूप ये मासूमों को आतंक का पाठ पढ़ाने के षड्यंत्र में लगे हैं।
घाटी के आतंकी दौर में यह वास्तविकता रही है कि पाकिस्तान स्थित प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद और हिजबुल मुजाहिदीन ने जम्मू-कश्मीर में सेना और सुरक्षा बलों पर जो भी आत्मघाती हमले कराए हैं, उनमें बड़ी संख्या में मासूम बच्चों और किशोरों का इस्तेमाल किया गया था। इस सत्य का खुलासा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की ‘बच्चे एवं सशस्त्र संघर्ष‘ नाम से आई रिपोर्ट में भी किया गया था। रिपोर्ट के अनुसार ऐसे आतंकी संगठनों में शामिल किए जाने वाले बच्चों और किशोरों को आतंक का पाठ मदरसों में पढ़ाया गया है। साल 2017 में कश्मीर में हुए तीन आतंकी हमलों में बच्चों के शामिल होने के तथ्य की पुष्टि हुई थी। पुलवामा जिले में मुठभेड़ के दौरान 15 साल का एक नाबालिग मारा गया था और सज्जाद बट शामिल था, जिसे अगस्त-2020 में सुरक्षाबलों ने मारा है। यह रिपोर्ट जनवरी-2017 से दिसंबर तक की है। मुबंई के ताज होटल पर हुए आतंकी हमले में भी पाक द्वारा प्रशिक्षित नाबालिग अजमल कसाब शामिल था।
रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान में मौजूद आतंकी संगठनों ने ऐसे वीडियो जारी किए हैं, जिनमें किशोरों को आत्मघाती हमलों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। पाकिस्तान में सशस्त्र समूहों द्वारा बच्चों व किशोरों को भर्ती किए जाने और उनका इस्तेमाल आत्मघाती हमलों में किए जाने की लगातार खबरें मिल रही हैं। जनवरी-17 में तहरीक-ए-तालिबान ने एक वीडियो जारी किया था, जिसमें लड़कियों सहित बच्चों को सिखाया जा रहा है कि आत्मघाती हमले किस तरह किए जाते हैं। इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दुनियाभर में बाल अधिकारों के हनन के 21,000 मामले सामने आए हैं। पिछले साल दुनियाभर में हुए संघर्षों में 10,000 से भी ज्यादा बच्चे मारे गए या विकलांगता का शिकार हुए। आठ हजार से ज्यादा बच्चों को आतंकियों, नक्सलियों और विद्रोहियों ने अपने संगठनों में शामिल किया है। ये बच्चे युद्ध से प्रभावित सीरिया, अफगानिस्तान, यमन, फिलीपींस, नाईजीरिया, भारत और पाकिस्तान समेत 20 देशों के हैं। भारत के जम्मू-कश्मीर में युवाओं को आतंकवादी बनाने की मुहिम कश्मीर के अलगाववादी चलाते रहे हैं।
दरअसल कश्मीरी युवक जिस तरह से आतंकी बनाए जा रहे हैं, यह पाकिस्तानी सेना और वहां पनाह लिए आतंकी संगठनों का नापाक मंसूबा है। पाक की जनता में यह मंसूबा पल रहा है कि ‘हंस के लिया है पाकिस्तान, लड़ के लेंगे हिंदुस्तान।’ इस उद्देश्यपूर्ति के लिए मुस्लिम कौम के उन गरीब और लाचार बच्चों, किशोरों और युवाओं को इस्लाम के बहाने आतंकवादी बनाने का काम में किया जा रहा है, जो अपने परिवार की आर्थिक बदहाली दूर करने के लिए आर्थिक सुरक्षा चाहते हैं। पाक सेना के भेष में यही आतंकी अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण रेखा को पार कर भारत-पाक सीमा पर छद्म युद्ध लड़ रहे हैं। कारगिल युद्ध में भी इन छद्म बहुरूपियों की मुख्य भूमिका थी। इस सच्चाई से पर्दा संयुक्त राष्ट्र ने तो अब उठाया है, किंतु स्वयं पाक के पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल एवं पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई के सेवानिवृत्त अधिकारी रहे, शाहिद अजीज ने ‘द नेशनल डेली अखबार‘ में पहले ही उठा दिया था। अजीज ने कहा था कि ‘कारगिल की तरह हमने कोई सबक नहीं लिया है। सच्चाई यह है कि हमारे गलत और जिद्दी कामों की कीमत हमारे बच्चे अपने खून से चुका रहे हैं।‘ कमोबेश आतंकवादी और अलगाववादियों की शह के चलते यही हश्र कश्मीर के युवा आज भी भोग रहे हैं।
इन्हीं अलगाववादियों की शह से घाटी में संचार सुविधाओं के माध्यम से चरमपंथी माहौल विकसित हुआ था। अलगाववाद से जुड़ी जो सोशल साइटें हैं, वे युवाओं में भटकाव पैदा कर रही थीं। इसीलिए जब भी रमजान के महीने में केंद्र सरकार ने उदारता बरती, तब इसके सकारात्मक परिणाम निकलने की बजाय सेना को पत्थरबाजों का दंश झेलना पड़ा था। यही नहीं इस संघर्ष विराम का लाभ उठाते हुए आतंकियों ने राइफल मैन औरंगजैब और संपादक शुजात बुखारी की निर्मम हत्याएं कर दी थीं। इन घटनाओं से प्रेरित होकर अलगाववादियों ने स्वतंत्रता की मांग के साथ इस्लामिक स्टेट को जम्मू-कश्मीर में लाने का नारा बुलंद कर दिया था। यही कारण रहा था कि पहले कश्मीर के भटके युवा अपने लोगों को नहीं मारते थे और न ही पर्यटकों व पत्रकारों को हाथ लगाते थे। लेकिन इसके बाद जो भी उन्हें, उनके रास्ते में बाधा बनता दिखा, उसे निपटाने लग गए थे। इसी क्रम में औरंगजैब और शुजात बुखारी से पहले ये आतंकी उपनिरीक्षक गौहर अहमद, लेफ्टिनेंट उमर फैयाज और डीएसपी अयूब पंडित की भी हत्या कर चुके थे। सैन्य विषेशज्ञों का यह भी मानना है कि पहले ज्यादातर आतंकी कम पढ़े लिखे थे, लेकिन बाद में जो आतंकी सामने आए, वे काफी पढ़े-लिखे थे। यही कारण है कि ये ज्यादा निरंकुश और दुर्दांत रूप में पेश आए थे।
(लेखक वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार हैं)