कारगिल युद्ध पाकिस्तान के फैनेटिक फोर की फैंटेसी की उपज था
26 जुलाई कारगिल विजय दिवस
पाकिस्तान को मुगालतों में रहना सूट करता है। बार बार मुंह की खाने के बाद भी उसका ढर्रा नहीं बदलता। 1965 और 1971 में भारत ने उसे गहरी शिकस्त दी, फिर भी उसकी मानसिकता में कोई परिवर्तन नहीं आया।
उसने 1999 में फिर से भारत के विरुद्ध षड्यंत्र रचा, जो कारगिल युद्ध के रूप में हमारे सामने आया। कारगिल को लेकर परवेज़ मुशर्रफ़ की बेचैनी पुरानी थी। 1965 के युद्ध से पहले कारगिल की चोटियों पर पाकिस्तानी सेना थी। लेकिन 1965 और 1971 के युद्ध में भारत ने ये महत्वपूर्ण चोटियाँ अपने कब्ज़े में ले ली थीं। मुशर्रफ इन चोटियों को वापस लेना चाहते थे। दूसरी ओर पाकिस्तान कश्मीर को ऐसा अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बनाना चाहता था जिसे लेकर दुनिया को लगे कि परमाणु युद्ध की आशंका प्रबल है, जिसमें तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप की तत्काल आवश्यकता है।
कारगिल युद्ध के जिम्मेवार चार लोग थे
दो बार कारगिल का प्लान रोका जा चुका था। एक बार ज़िया उल हक के समय और दूसरी बार बेनज़ीर भुट्टो के समय। भुट्टो के सामने जब यह प्लान रखा गया, तब पाकिस्तानी सेना के डीजीएमओ परवेज़ मुशर्रफ थे। 1999 में तीसरी बार जब कारगिल हमले की योजना बनाई गई, तब प्रधानमंत्री थे नवाज शरीफ और सेना प्रमुख थे परवेज मुशर्रफ। हमले की योजना बनाने वालों में मुशर्रफ़ के साथ ही शामिल थे – लेफ्टिनेंट जनरल मोहम्मद अज़ीज़ खान, लेफ्टिनेंट जनरल महमूद खान और मेजर जनरल जावेद हसन।
इन चारों के अलावा लेफ्टिनेंट कर्नल जावेद अब्बास भी कारगिल युद्ध के लिए जिम्मेदार थे, जिनकी स्टडी, इंडिया – अ स्टडी इन प्रोफाइल से परवेज़ मुशर्रफ़ बहुत प्रभावित थे। स्टडी का निष्कर्ष था कि भारत की अपनी समस्याएं हैं और उन समस्याओं का लाभ उठा कर भारत की विशाल और शक्तिशाली सेना को कंट्रोल में किया जा सकता है। यह स्टडी 1990 में प्रकाशित हुई थी। इससे मुशर्रफ को लगता था कि यदि अभी पाकिस्तान भारत पर हमला करेगा तो भारत बिखर जाएगा।
दूसरी ओर पाकिस्तानी सेना इस वहम में भी थी कि वो भी अब भारत की तरह परमाणु शक्ति है और इस दबाव में भारत जवाबी हमला नहीं करेगा। लेकिन 1965 और 1971 की तरह पाकिस्तानी आंकलन 1999 में भी पूरी तरह से गलत साबित हुआ।
भारत की जवाबी कार्यवाही
पाकिस्तान को भारत की जवाबी कार्यवाही का अंदाजा बिलकुल भी नहीं था। परवेज़ मुशर्रफ़ ने अपनी हार स्वीकार करते हुए यह कहा था कि “भारत ने न केवल सैन्य बल्कि अंतर्राष्ट्रीय डिप्लोमेसी से भी पाकिस्तान को करारा जवाब दिया।”
“Pakistan was clueless about India’s capability to retaliate. At one point Musharaf conceded and said that India retorted not only through military action but also through the international diplomacy.”
कारगिल हमले के बाद थोड़े समय के लिए भारतीय राजनीतिक नेतृत्व और सेना दोनों थोड़े असमंजस में रहे, लेकिन फिर डट कर पाकिस्तानी हमले का जवाब दिया। एक-एक कर कारगिल की चोटियों को खाली कराया जाने लगा।
13 जून, 1999 को तोलोलिंग चोटी को भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान के कब्जे से छुड़ा लिया, जिससे आगे के युद्ध में उन्हें अत्यंत सहायता मिली। जल्दी ही 20 जून, 1999 को प्वांइट 5140 भी उनके कब्जे में आने से तोलोलिंग पर उनका विजय अभियान पूरा हो गया। 4 जुलाई को एक और शानदार विजय दर्ज की गई, जब टाइगर हिल को घुसपैठियों से मुक्त करा लिया गया। पाकिस्तान घुसपैठियों को खदेड़ना जारी रखते हुए भारतीय सैनिक लगातार आगे बढ़ते रहे। बटालिक की प्रमुख चोटियों से पाकिस्तानी सेना को भगा कर उन्हें दोबारा भारत के कब्जे में ले लिया गया।
भारत की 14 रेजिमेंट्स ने शक्तिशाली बोफोर्स से कारगिल में घुसपैठ कर बैठी पाकिस्तानी सेना को निशाना बनाना शुरू कर दिया था। भारत ने एलओसी के भीतर वायुसेना के विमानों से भी हमले शुरू कर दिए। पाकिस्तान अपनी वायुसेना का प्रयोग नहीं कर पाया क्योंकि पाकिस्तान ने दुनिया के सामने झूठ बोला था कि कारगिल में कश्मीरी मुजाहिदीन अपनी आज़ादी के लिए लड़ रहे हैं। यदि पाकिस्तान अपनी वायुसेना का उपयोग करता तो पूरी दुनिया के सामने उसका झूठ पकड़ा जाता।
पाकिस्तान ने बहुत बड़ी संख्या में अपने सैनिक खोये। पाकिस्तान की नॉर्दर्न लाइट इन्फेंट्री पूरी तरह से खत्म हो गयी थी। कारगिल युद्ध के समय पाकिस्तान के विदेश सचिव रहे शमशाद अहमद खान ने कारगिल युद्ध के बारे में कहा कि दुनिया के किसी भी विदेश विभाग के लिए ऐसा समय सबसे ख़राब होता है। हमने पूरी क्षमता से अपना काम किया, किन्तु पूरी दुनिया ने हमें इस युद्ध का दोषी घोषित कर दिया था। पूरी दुनिया का दबाव हम पर था। उन्होंने हमें युद्ध के मैदान से पीछे हटने के लिए कहा और हमारे राजनैतिक नेतृत्व ने पीछे हटने का सही फैसला लिया।“
पाकिस्तानी सेना में लेफ्टिनेंट जनरल ( सेवानिवृत) अली कुली खान ने कारगिल युद्ध में हुई हार को पाकिस्तानी इतिहास की सबसे बुरी हार घोषित कर दिया था जिसमें अनगिनत मासूम लोग मारे गए थे।“
कारगिल युद्ध के समय पाकिस्तानी सेना के भी कई सच उजागर हुए, जिसमें एक बड़ा खुलासा यह हुआ कि बहुत बड़ी संख्या में पाकिस्तानी सेना के अधिकारी नशे की लत में डूबे हुए हैं।
कारगिल युद्ध हर मोर्चे पर पाकिस्तान की किरकिरी साबित हुआ
कारगिल युद्ध ने पाकिस्तान को एक राष्ट्र के रूप में पूरी तरह से बेनकाब कर दिया था। तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री और सेना प्रमुख दोनों एक दूसरे पर आरोप लगाते रहे। नवाज़ शरीफ का स्टैंड था कि उन्हें कारगिल हमले के बारे में कुछ नहीं पता था, दूसरी ओर मुशर्रफ़ का कहना था कि नवाज़ शरीफ को सब पता था। अब नवाज़ शरीफ को पता था या नहीं दोनों ही सूरत में पाकिस्तान की किरकिरी होती है। यदि पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री नवाज़ शरीफ को इस हमले का नहीं पता था तो यह बात और पुख्ता हो जाती है कि “पाकिस्तान के पास सेना नहीं है बल्कि सेना के पास एक पाकिस्तान है।”
तत्कालीन पाकिस्तानी विदेश मंत्री का भी कहना था कि देश का विदेश मंत्री होने के बाद भी उन्हें 17 मई की सुबह कारगिल हमले के विषय में जानकारी प्राप्त हुई और उनसे कभी भी इस स्थिति के डिप्लोमेटिक स्तर पर क्या परिणाम होंगे इसके बारे में कभी भी नहीं पूछा गया। पाकिस्तानी सेना में इस कदर अफरा तफरी थी कि पाकिस्तान के तत्कालीन एडमिरल फैसुद्दीन बुखारी ने मुशर्रफ़ से सीधे – सीधे पूछ लिया था कि मुझे इस ऑपरेशन की कोई जानकारी नहीं है परन्तु मैं पूछता हूँ कि इतने बड़े मोबिलाइजेशन का क्या उद्देश्य है? हम एक उजाड़ सी जगह के लिए युद्ध करना चाहते हैं, जिसे हमें वैसे भी सर्दियों के समय खाली करना पड़ेगा। मुशर्रफ़ के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था।
पूरी दुनिया के साथ – साथ पाकिस्तान के साथी चीन ने भी पाकिस्तान को कारगिल की चोटियों से अपनी सेना वापस बुलाने के लिए कहा था। शुरुआत में पाकिस्तान लगातार कह रहा था कि कारगिल के पहाड़ों में मुजाहिदीन लड़ रहे हैं, लेकिन वैश्विक दबाव में जब पाकिस्तान को अपने सैनिक वापस बुलाने पड़े तो वह पूरे विश्व के सामने बेनकाब हुआ कि पाकिस्तान मुजाहिदीनो को कंट्रोल कर सकता है। इससे पूरे विश्व में एक बात स्पष्ट होने लगी कि पाकिस्तान कश्मीर में मुजाहिदीनों के नाम पर आतंक फैला रहा है।
परवेज़ मुशर्रफ़ कारगिल को अपनी सैनिक विजय मानते हैं किन्तु सत्य यह है कि पाकिस्तान ने अपने सैनिकों को कारगिल की ऊँचाइयों पर मरने के लिए छोड़ दिया था। कई जवानों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट्स से पता चला, उनके पेट में घास थी यानी कि जवानों के पास खाने को भी कुछ नहीं था।
परवेज़ मुशर्रफ़ ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि मिलिट्री ने जो अर्जित किया, डिप्लोमेसी में हमने वो गँवा दिया। लेकिन दूसरी तरफ नवाज ने एक इंटरव्यू में बोला कि जब तक मैं अमेरिका के पास सहायता मांगने गया और अमेरिका सहायता करने को तैयार हुआ, तब तक भारतीय फौजें कारगिल से लगभग सब जगह से पाकिस्तानियों को निकाल चुकी थी और तेजी से आगे बढ़ रही थी ऐसे में मैंने पाकिस्तानी सेना के सम्मान को बचाया।
मुशर्रफ़ का कहना था कि उन्होंने नवाज़ से नहीं कहा था कि वे अमेरिका से बातचीत करें। लेकिन दूसरी ओर नवाज़ ने कहा कि जब वह अमेरिका जा रहे थे तो मुशर्रफ़ उनको एअरपोर्ट छोड़ने आए और उन्होंने अमेरिका से बात करने को कहा ताकि पाकिस्तानी सेना के जवान कारगिल की चोटियों से सुरक्षित निकल सकें, जहाँ अब भारतीय फौजें आगे बढ़ रही थीं।
पाकिस्तान जब से आस्तित्व में आया तब से किसी भी तरह की जवाबदेही वहाँ तय नहीं की जाती है। जिस आर्मी चीफ ने इतना बड़ी ग़लती की, वह पाकिस्तान का राष्ट्रपति बना एक और सेना अधिकारी जिसके नेतृत्व में यह लड़ाई लड़ी गयी उसे प्रमोशन मिला।
कुल मिलकर कहा जा सकता है कि पाकिस्तान फैनेटिक फोर (सेना के चार अधिकारी जिन्होंने कारगिल प्लान बनाया था) की फैंटसी का शिकार रहा और इस तरह एक असफल देश का शातिर प्रयास भी अफसल रहा।