खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी…

18 जून – रानी लक्ष्मीबाई बलिदान दिवस

नीलाक्षी महर्षि

वीरता, त्याग, स्वाभिमान, कुशल नेतृत्व, दृढ़ता व आत्मविश्वास जैसे गुणों से सुशोभित शक्तिस्वरूपा रानी लक्ष्मीबाई न केवल भारतीय वसुंधरा अपितु सम्पूर्ण विश्व के लिये प्रेरणास्पद हैं। उनके जीवन के प्रत्येक रूप पुत्री, पत्नी, माता, रानी और देशवासी कर्तव्यपरायणता व देशभक्ति की शिक्षा देते हैं।

18वीं 19वीं सदी में जब विदेशों में महिलाओं को दूसरे दर्जे का नागरिक समझा जाता था, उस समय भी भारत में स्त्रियां हर क्षेत्र में निपुण होती थीं। शस्त्र- शास्त्रों में पारंगत रानी लक्ष्मीबाई सशक्त महिला होने के वास्तविक मायने हमें सिखाती हैं। आज जब उत्पीड़न से निकलकर महिलायें सशक्तिकरण की ओर बढ़ रही है तो सशक्त होने के वास्तविक अर्थ और अंधाधुंध होड़ के नाम पर फैलाये जा रहे भ्रम के बीच के अंतर को समझने की महती आवश्यकता है।

सामान्यतः युद्ध को पुरुष प्रधान कार्य समझा जाता रहा है किन्तु रानी लक्ष्मीबाई के साथ इस युद्ध में महिलाओं ने भी युद्ध कला सीखकर मातृभूमि की रक्षा में अपने प्राणों का बलिदान दिया। रानी लक्ष्मीबाई के बारे में प्रसिद्ध कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने लिखा भी है कि “बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी”। यह रानी लक्ष्मीबाई का युद्ध कौशल था कि उनके नेतृत्व में महिलाओं व पुरुषों ने उन्हें देवी तुल्य मानकर अपनी मातृभूमि के लिये युद्ध किया। झलकारी बाई, काशीबाई और मन्धारी बाई जैसी वीरांगनाओं ने अंग्रेजों से बढ़ चढ़ के लोहा लिया। रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी वीरता, बुद्धिमानी व साहस से यह दिखा दिया कि महिलाएं बिना संरक्षण व किसी विशेष अधिकार के भी अपने बल पर आगे बढ़ सकती हैं।

अदम्य साहस के साथ दृढ संकल्प शक्ति रानी लक्ष्मीबाई का एक और अविस्मरणीय गुण था। पहले अपने पुत्र व बाद में अपने पति के निधन की पीड़ा निश्चित रुप से असहनीय रही होगी किन्तु फिर भी उन्होंने अपना विवेक नहीं खोया । सूझ बूझ से रणनीति निर्माण हेतु रानी लक्ष्मी बाई ने  तीर्थ यात्रा के बहाने अंग्रेजों से प्रताड़ित अन्य राजाओं से वार्ता कर के उन्हें संगठित करने का भी प्रयास किया। अंग्रेज सरकार के एलिन नामक अधिकारी ने जब दरबार में सरकार का आदेश सुनाया तो रानी ने सिंहनी की भाँति दहाड़कर कहा कि “मैं अपनी झांसी किसी को नही दूंगी”। अपनी संकल्पशक्ति और धर्मनिष्ठता के बल पर ही दांतों से घोड़े की रस्सी दबाये, पीठ पर प्राणप्रिय पुत्र को बांधे, दोनों हाथों से तलवार चलाते हुये मातृभूमि की रक्षार्थ वीरगति को प्राप्त किया। इससे बड़ा कोई सम्मान नहीं, कोई त्याग नहीं और संकल्पशक्ति की मिसाल नहीं।

रानी लक्ष्मीबाई का संकल्प था कि अंग्रेज उन्हें स्पर्श न कर सकें इसलिये उन्होंने रामचन्द्र राव देशमुख से कहा कि ” सरदार अब मेरा बचना असम्भव है। म्लेच्छ मेरे शरीर को स्पर्श न कर सकें इसका प्रबन्ध तुम्हें करना है। मेरे गिरते ही मेरे निर्जीव शरीर को तुम एकांत में ले जाकर जला देना”। अंत में मन्दिर में उनका शरीर प्रार्थना के लिये ले जाया गया और अंग्रेज जब तक पहुंचे तब तक एक आदर्श वीरांगना पंचतत्वों में विलीन हो चुकी थी।

आज जब भारत चीन के बीच हो रहे विवाद को व हमारे और चीन के रक्षा बजट के अंतर पर हो रहे विचार विमर्श सुनाई देते हैं तो याद आता है कि वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई के पास अंग्रेजों की तुलना में धन, हथियार, सैनिक इत्यादि संसाधन कितने कम थे, किन्तु कुछ अदम्य था तो साहस, कुछ बड़ा था तो वो थी उनकी संकल्पशक्ति। आज आवश्यकता है हमें उनसे देशप्रेम व कर्त्तव्य परायणता सीखने की।

सामाजिक और राष्ट्रीय कल्याण के उदेश्य को लेकर जीवनपर्यन्त सेवाभाव से कार्य करती हुई मणि के समान सुशोभित रानी लक्ष्मीबाई प्रेरणा की अखण्ड ज्योत हैं। उन्होंने राष्ट्रीय हितों को सदैव अपने व्यक्तिगत हितों के ऊपर रखा। एक श्रेष्ठ प्रयोजन के लिये अपना जीवन न्यौछावर कर दिया। किन्तु दुखद है कि इतिहास लिखने वालों ने स्वतंत्रता का श्रेय कुछ लोगों व एक परिवार तक ही समेट कर रख दिया। कुछ लोगों के स्मारकों में सारा संघर्ष व बलिदान दिखाने का प्रयास किया गया।

सही ही लिखा गया है- तेरा स्मारक तू ही होगी।
लेकिन आज रानी लक्ष्मी बाई के बलिदान दिवस पर हमारी सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी -इतिहास को पढ़ना, समझना और अपने प्रेरणापुंज स्वयं निर्धारित करना ।

अपने हौंसले की एक कहानी बनाना,
हो सके तो खुद को झांसी की रानी बनाना।

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17 thoughts on “खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी…

  1. इस लेख में, लेखिका ने वर्तमान समय के जज्बातों को पूर्वकालीन समय के साथ बेहतरीन तरीके से मिश्रित किया है ।

    लेखिका के शब्दों को साधुवाद, उन्होंने वर्तमान युवा पीढ़ी को गम्भीर मुद्दों और झांसी की वीर रानी लक्ष्मी बाई के जीवन पहलू से परिचित करवाया ।

  2. प्रेरणास्प्रद व्याख्या । शत शत नमन

  3. शानदार लेखनी
    मर्दानी लक्ष्मी बाई के संघर्ष की गाथा

  4. आज पूरे समाज की नारियो को रानी लक्ष्मीबाई की तरह निडर बनने की आवश्यकता है। यही रानी लक्ष्मीबाई को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। जय भवानी ।जय भवानी

  5. अति सुंदर लेख

    सटीक विश्लेषण

  6. बहुत सुन्दर लेख नीलाक्षी जी !
    लक्ष्मीबाई महिला वर्ग ही नहीं सम्पूर्ण समाज के लिए एक प्रेरणा का केंद्र है . आज के समय में सीमाओं एवं अन्य स्थानों पर महिला द्वारा रक्षार्थ कार्य कर सिद्ध करता है के भारत की सभी महिलाओ में आज भी लक्ष्मीबाई है

  7. Fantabulous story
    but I can’t understand many words who write in high level hindi language

  8. बहुत प्रेरणादायक लेख है , आज की नारी का आदर्श है लक्ष्मीबाई , नमन वीरांगना को

  9. अदम्य साहस, शौर्य और देशभक्ति की प्रतिमूर्ति, नारी अस्मिता की प्रतीक, आदर्श वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि पर उन्हें शत् शत् नमन।
    रानी लक्ष्मी बाई का सम्पूर्ण जीवन का दूसरा नाम ही संघर्ष था उन्होंने कभी भी हार स्वीकार नहीं की और हम सभी उनके जीवनचरित्र को आदर्शपथ मानकर आगे बढ़ रही है

  10. झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई नारी शक्ति की आधारशिला है उनकी वीरता, शौर्य, बलिदान की गाथा जन्म – जन्म स्मरणीय रहेगी।

  11. मात्रभूमि के लिए प्राणहुति देने की ठानी अंतिम साँस तक लड़ी थी वो मर्दानी वो झाँसी वाली रानी थी

  12. हमारा गौरव रानी लक्ष्मीबाई को समर्पित आलेख पढ़ने व अपने विचार साझा करने के लिये आप सभी का धन्यवाद्।

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