गाय को राष्ट्रीय पशु क्यों घोषित किया जाना चाहिए?
डॉ. ओमप्रकाश पारीक
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किए जाने और गोरक्षा को हिंदुओं के मौलिक अधिकार में शामिल किए जाने की जरूरत पर क्यों जोर दिया है?
इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा गाय के विषय में कुछ दिनों पहले सुनाया गया निर्णय भारतीय सनातन परंपराओं की ही पुष्टि करता है। न्यायालय ने गोवध के आरोपी की जमानत याचिका को निरस्त करते हुए कहा कि ”हिंदू धर्म के अनुसार, गाय में 33 कोटि देवी देवताओं का वास है। ऋग्वेद में गाय को अघन्या, यजुर्वेद में गौर अनुपमेय और अथर्वेद में संपत्तियों का घर कहा गया है। अदालत ने इससे आगे भी कहा कि-”भारतीय संविधान के निर्माण के समय संविधान सभा के कई सदस्यों ने गोरक्षा को मौलिक अधिकारों के रूप में शामिल करने की बात कही थी। हिंदू सदियों से गाय की पूजा करते आ रहे हैं। ”
अदालत ने कहा, ”कहने का अर्थ है कि देश का बहुसंख्यक मुस्लिम नेतृत्व हमेशा से गोहत्या पर देशव्यापी प्रतिबंध लगाने का पक्षधर रहा है। ख्वाजा हसन निजामी ने एक आंदोलन चलाया था और उन्होंने एक किताब- ‘तार्क ए गाओ कुशी’ लिखी जिसमें उन्होंने गोहत्या नहीं करने की बात लिखी थी।” अदालत ने कहा कि इन समस्त परिस्थितियों को देखते हुए गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किए जाने और गोरक्षा को हिंदुओं के मौलिक अधिकार में शामिल किए जाने की जरूरत है।’ सनातन ग्रंथों में गाय के महत्व को लेकर अनेक स्थानों पर लिखा गया है।
भारत में अनंत काल से गाय को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति की पूर्ति का आधार माना गया है। गीता में भगवान कृष्ण ने यज्ञ से बादल, वर्षा और तदनंतर प्रजाओं को बढ़ाने वाले अन्न की उत्पत्ति मानी है। उस यज्ञ के लिए गाय के घृत से दी जाने वाली आहुतियां सर्वोत्तम मानी जाती हैं। उसके लिए पंचगव्य का निर्माण भी गव्यपदार्थों से ही होता है। गोमूत्र और गोबर की खाद से उपजे हुए जौ, तिल आदि तथा गाय के घी के से प्राप्त होने वाली शुभ हवि के प्रयोग से, यज्ञ में निकलने वाली धुआं आकाश मंडल में जाकर बादलों का निर्माण करने में समर्थ होती है। यह तथ्य विज्ञान प्रमाणित है।
अथर्ववेद में कहा है कि गो पृथ्वी को धारण करती है तथा यह समृद्धियों का आगार है। वह यज्ञपदी व अमृत स्वरूपा है। वृषभ के घृत रूपी वीर्य को यज्ञ कहा गया है क्योंकि वृषभ हजारों लोगों का पोषक होता है और कृषक के साथ कृषि में श्रम करता हुआ अन्न उपजाता है। आयुर्वेद में चरक ने आरोग्य हेतु व्यक्ति के लिए सद्व्रतों के पालन की बात कही है जिसमें गोमाता की सेवा अर्चना को भी सम्मिलित किया है। ऋग्वेद में गो के लिए अध्न्या शब्द आया है अर्थात इसे कभी मारना या चोट नहीं पहुंचाना चाहिए।
गाय से पैदा होने वाले बैल का विकल्प कृषि कार्य करने हेतु यंत्र नहीं हो सकते क्योंकि बैल न केवल कृषि जोतता है अपितु उपजाऊ भूमि के लिए उत्तम खाद भी देता है। इससे उत्पन्न फल सब्जियां रासायनिक खाद से उत्पन्न फल सब्जियों की अपेक्षा मनुष्य के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए अति उत्तम होते हैं। गाय का दूध, दही, मक्खन, छाछ, घी, गोमूत्र आयुर्वेद की दृष्टि से अत्यंत स्वास्थ्यवर्धक और वात,पित्त, कफ के दोषों को दूर कर रोगों के नाश करने वाले होते हैं।
गोमूत्र के औषधीय प्रयोग में साधारण रोगों को दूर करने की शक्ति तो है ही साथ ही वह कैंसर जैसे असाध्य गंभीर रोगों को दूर करने में भी कारगर सिद्ध हुआ है। गाय के रीढ़ में जो नाड़ी होती है वह सूर्य के संपर्क में आने से स्वर्ण का उत्पादन करती है जिससे उसका दूध स्वर्ण धातुमय और ऊर्जावान हो जाता है। आज के ऊर्जा संकट के दौर में गाय-बैल के गोबर से गोबर गैस प्लांट लगाकर ऊर्जा उत्पन्न कर सकते हैं इस प्लांट से बचे हुए पदार्थों का प्रयोग खेती में किया जा सकता है।
वास्तव में केवल विकास के नाम पर सुख सुविधाओं को असीमित रूप से बढ़ाकर आज पर्यावरण को प्रदूषित कर विनाश किया जा रहा है। गाय की अर्थव्यवस्था पर आधारित गांव के छोटे कुटीर उद्योग आज बंद हो गए हैं। हमारे देश की अधिकांश जनसंख्या गांव में रहती है। ग्रामीण जनजीवन में अधिकांश वस्तुएं कृषि से ही प्राप्त होती हैं जिनका आधार गाय और बैल है। किसान जब गायों को पालता हैं और गो पदार्थों से व्यवसाय करता है तो अतिवृष्टि और अनावृष्टि के कारण कृषि उपजे प्राप्त न होने पर भी उसे एक आर्थिक सहारा मिल जाता है।
आज रासायनिक खादों के प्रयोगों से भूमि विषाक्त हो गई है। गो आधारित कृषि के द्वारा उसके विषैलेपन को दूर किया जा सकता है और देश के लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा की जा सकती है। यांत्रिक कृषि से जहां उत्पादन बढ़ा है, वहीं किसान अपने स्वावलंबन को छोड़कर कर्ज के बोझ के नीचे दबता जा रहा है। उसकी प्रतिष्ठा एक मजदूर के रूप में होने लगी है न कि स्वामी के रूप में। भू वैज्ञानिकों का मानना है कि आधुनिक यांत्रिक और रासायनिक कृषि से उत्पादन भले ही अधिक हो रहा हो, किंतु उसके दुष्प्रभाव की जब तुलना करते हैं तो वह उत्पादन व्यर्थ दृष्टिगत होता है। मानव क्षमता का उसमें पूरा उपयोग न होने से बेरोजगारी बढ़ गई है। इसके स्थान पर गो आधारित कृषि से किसान का पूरा परिवार कृषि कार्य में लगता है तथा इससे उनका शहरों की ओर पलायन भी रुकता है।
अंधाधुंध औद्योगिकीकरण और विकास के प्रदूषित पर्यावरण में गोपालन को बढ़ावा देकर उस पर आधारित कृषि तथा अर्थव्यवस्था हमारे देश के लिए अत्यधिक उपयोगी है। अतः गाय को राष्ट्रीय पशु जैसा दर्जा देने से न केवल भारतीय संस्कृति की रक्षा होगी अपितु यह निर्णय देश के जनजीवन के लिए सुख-समृद्धि देने वाला भी सिद्ध होगा।