अरबी-शिलालेख में गुरु नानक देव की महिमा
प्रागैस्लामी अरब में हिंदू-संस्कृति- (अंतिम भाग)
गुंजन अग्रवाल
सन् 1916 में बग़दाद की सीमा पर एक शिला लेख खोज निकाला गया है, जिसपर सिख-सम्प्रदाय के प्रवर्तक गुरु नानक देव (1469-1539) की सन् 1511-21 के दौरान मध्य-पूर्व (इस्लामी देशों) की ऐतिहासिक यात्रा से संबंधित एक लेख पुरानी तुर्की-मिश्रित अरबी में उत्कीर्ण है। इस लेख पर 917 हिज़री की तारीख़ उत्कीर्ण है, जिससे यह सन् 1511 ई. का सिद्ध होता है।
गुरु नानक देव को अरबी, फ़ारसी एवं क़ुरआन का अच्छा ज्ञान था। अरब में उन्हें ‘बाबा नानक फ़क़ीर’ कहा जाता था। मध्य-पूर्व की 11 वर्षों की यात्रा के दौरान नानकदेव ने कोन्या (Konya, Turkey) में हज़रत मौलाना ज़लालुद्दीन रूमी के मक़बरे और इस्तांबुल की भी यात्रा की। उनकी मक्का-यात्रा से संबंधित उक्त शिलालेख बताता है—
कोराद मुराद एल्दी हज़रत रब्बे मज़ीद
बाबा नानक फ़क़ीर औलिया के इमारत ज़दीद
यल याला मिला दयादै बा का़लादि तारीख़ाने ययादि
सवाबे इज़राइल अज़ मुरीदे सयीद
917 हिज़री
अर्थात् ‘इराक के राजकुमार मुराद ने 917 हिज़री में महान् विभूति बाबा नानक फ़क़ीर औलिया की स्मृति में निर्मित उस पुरानी इमारत को देखा, जहाँ उन्होंने राजकुमार बहलोल को उपदेश दिया था। उन्होंने इस स्मारक का पुनर्निर्माण किया ताकि ऐतिहासिक साक्ष्य को सुरक्षित किया जा सके और (नानक के) इस शिष्य (जिसने पुनर्निर्माण किया) को ईश्वरीय कृपा प्राप्त हो सके।’
जब भारतवर्ष की महान् विभूतियाँ भारतेतर देशों में भगवान् की तरह पूजित हैं, तब स्वयं भारत के विषय में क्या कहना जो राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, शंकराचार्य, नागार्जुन, अशोक, हर्ष, नानक, कबीर, तुलसीदास, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानन्द, रमण महर्षि, श्रीअरविन्द, आनन्द कुमार स्वामी प्रभृति महान् आध्यात्मिक महापुरुषों की खान है।
इस महान् परम्परा का स्वस्थकारी प्रकाश मानवता की रक्षा करे और मानवता को प्रकाशोन्मुख और सन्मार्गोन्मुख करे।
(समाप्त)
(लेखक महामना मालवीय मिशन, नई दिल्ली में शोध-सहायक हैं तथा हिंदी त्रेमासिक ‘सभ्यता संवाद’ के कार्यकारी सम्पादक हैं)