गोपाष्टमी पर गौ माता की सेवा-पूजा का विशेष महत्व

पाथेय डेस्क

 

आज गोपाष्टमी है और देशभर में गौ माता की सेवा पूजा की जा रही है। शहरी क्षेत्रों की बात करें तो गोशालाओं में गाय का पूजन व सेवा की जा रही है तो ग्रामीण अंचल में किसान गोधन की साज-सज्जा करके विशेष आराधना करते है। मान्यता है कि हिन्दू संस्कृति में गाय का विशेष महत्व होता है और उन्हीं को समर्पित हैं ये गोपाष्टमी पर्व। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार दिवाली के ठीक बाद आने वाली कार्तिक शुक्ल अष्टमी को गोपाष्टमी पर्व के रूप में मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गौ चारण लीला शुरू की थी। कार्तिक शुक्ल अष्टमी के दिन मां यशोदा ने भगवान कृष्ण को गौ चराने के लिए जंगल भेजा था। इस दिन गो, ग्वाल और भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करने का महत्व है। हिन्दू धर्म में गाय को माता का स्थान दिया गया है। अतः गाय को गौ माता भी कहा जाता है। आइए जानें कैसे मनाएं गोपाष्टमी पर्व?

 

 

  • गोपाष्टमी यानी कार्तिक शुक्ल अष्टमी के दिन प्रातरूकाल में उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नानादि करके स्वच्छ धुले हुए वस्त्र धारण करें।
  • तत्पश्चात प्रातरूकाल में ही गायों को भी स्नान आदि कराकर गौ माता के अंग में मेहंदी, हल्दी, रंग के छापे आदि लगाकर सजाएं।
  • इस दिन गायों को खूब सजाया-संवारा जाता है तथा बछड़े सहित गाय की पूजा करने का विधान है।
  • प्रातः काल में ही धूप-दीप, अक्षत, रोली, गुड़ आदि वस्त्र तथा जल से गाय का पूजन किया जाता है और धूप-दीप से आरती उतारी जाती है।
  • इस दिन ग्वालों को उपहार आदि देकर उनका भी पूजन करने का महत्व है।
  • इस दिन सभी परिवार के लोग गौ यानी गाय की विधि विधान से पूजा करते हैं।
  • इसके बाद गाय को चारा आदि डालकर उनकी परिक्रमा करते हैं। परिक्रमा करने के बाद कुछ दूर तक गायों के साथ चलते हैं।
  • संध्याकाल में गायों के जंगल से वापस लौटने पर उनके चरणों को धोकर तिलक लगाने का महत्व है।
  • इस संबंध में ऐसी आस्था भी है कि गोपाष्टमी के दिन गाय के नीचे से निकलने वालों को बड़ा पुण्य मिलता है।
  • गोपाष्टमी के शुभ अवसर पर गौशाला में गो संवर्धन हेतु गौ पूजन का कार्यक्रम भी आयोजित किया जाता है।

 

गाय का पौराणिक और धार्मिक पक्ष-

  • हिन्दू धर्म के अनुसार गाय में 33 कोटि देवी-देवता निवास करते हैं। कोटि का अर्थ करोड़ नहीं, प्रकार होता है। इसका मतलब गाय में 33 प्रकार के देवता निवास करते हैं। ये देवता हैं- 12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र और 2 अश्विन कुमार। ये मिलकर कुल 33 होते हैं।
  • शास्त्रों और विद्वानों के अनुसार कुछ पशु-पक्षी ऐसे हैं, जो आत्मा की विकास यात्रा के अंतिम पड़ाव पर होते हैं। उनमें से गाय भी एक है। इसके बाद उस आत्मा को मनुष्य योनि में आना ही होता है।
  • ऋग्वेद ने गाय को अघन्या कहा है। यजुर्वेद कहता है कि गौ अनुपमेय है। अथर्ववेद में गाय को संपतियों का घर कहा गया है।
  • पौराणिक मान्यताओं व श्रुतियों के अनुसार, गौएं साक्षात विष्णु रूप है, गौएं सर्व वेदमयी और वेद गौमय है। भगवान श्रीकृष्ण को सार ज्ञानकोष गोचरण से ही प्राप्त हुआ।
  • भगवान राम के पूर्वज महाराजा दिलीप नन्दिनी गाय की पूजा करते थे।
  • गणेश भगवान का सिर कटने पर शिवजी पर एक गाय दान करने का दंड रखा गया था और वहीं पार्वती को भी गाय देनी पड़ी थी।
  • भगवान भोलेनाथ का वाहन नंदी दक्षिण भारत की आंगोल नस्ल का सांड था। जैन आदि तीर्थकर भगवान ऋषभदेव का चिह्न बैल था।
  • गरुड़ पुराण के अनुसार वैतरणी पार करने के लिए गौ दान का महत्व बताया गया है।
  • श्राद्ध कर्म में भी गाय के दूध की खीर का प्रयोग किया जाता है क्योंकि इसी खीर से पितरों की ज्यादा से ज्यादा तृप्ति होती है।
  • स्कंद पुराण के अनुसार ‘गौ सर्वदेवमयी और वेद सर्वगौमय हैं।श् भगवान कृष्ण ने श्रीमद् भगवद्भीता में कहा है- ‘धेनुनामस्मि कामधेनु’ अर्थात मैं गायों में कामधेनु हूं। श्रीराम ने वन गमन से पूर्व किसी त्रिजट नामक ब्राह्मण को गाय दान की थी।
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