जनजाति से ईसाई हो गए लोगों को जनजाति समाज को मिलने वाले लाभ क्यों?

मतांतरण के बाद जनजाति लोग जनजाति संस्कृति को नहीं मानते तो उन्हें जनजाति समाज को मिलने वाले अधिकार क्यों?

मतांतरण के बाद जनजाति लोग जनजाति संस्कृति को नहीं मानते तो उन्हें जनजाति समाज को मिलने वाले अधिकार क्यों?

  • जनजाति से ईसाई हो गए लोगों को जनजाति समाज को मिलने वाले लाभ क्यों
  • जनजाति युवाओं ने भरी हुंकार, दिया ज्ञापन

उदयपुर, 31 अगस्त। जो जनजाति समाज बरसों से अपने हर सामाजिक कार्य में राम-राम का अभिवादन करता आया है, वहां जय जोहार का शब्द कहां से आ गया। जनजाति के जो लोग मतांतरण कर ईसाई बन गए, वे अल्पसंख्यक में भी गिने जा रहे हैं और जनजाति समाज को मिलने वाले लाभ भी उठा रहे हैं। जब वे जनजाति से ईसाई ही हो गए और जनजाति संस्कृति को मानते ही नहीं तो उन्हें जनजाति समाज को मिलने वाले लाभ क्यों?

इन सभी सवालों को लेकर उदयपुर जिले के जनजाति बहुल कोटड़ा तहसील मुख्यालय पर हित रक्षा सेना के बैनर तले जय जोहार वालों, ईसाई मिशनरियों व जनजाति क्षेत्र में नक्सल विचारधारा को पनपाने वालों के विरुद्ध ज्ञापन दिया गया।

इस अवसर पर एडवोकेट हिम्मत तावड़ ने कहा कि हमारे क्षेत्र में लाखों-हजारों वर्षों से हम राम-राम बोलने वाले जनजाति हिन्दू समुदाय पर जय जोहार अभिवादन राम-राम की जगह बोलने के लिए मानसिक रूप से युवाओं पर दबाव बनाया जा रहा है। युवाओं को भ्रमित करके नक्सलवाद की तरफ धकेला जा रहा है। ये ईसाई मिशनरी व नक्सलवादियों के एजेंट हिन्दू समाज की जातियों को व देवी देवताओं को गालियां देते हैं, आपस में लड़वाने के लिए उकसाते रहते हैं। तावड़ ने कहा कि ऐसे लोगों का जनजाति समाज विरोध करता है जो जनजाति संस्कृति को ही उनके निजी लाभ के लिए प्रभावित करने का प्रयास कर रहे हैं। ये वे लोग हैं जो जनजाति समाज में पूर्वजों की पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही संस्कृति, परम्परा, रीति रिवाजों को नहीं मानते हैं।

तावड़ ने कहा कि भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा राजस्थान के राज्यपाल को ज्ञापन देकर संविधान के अनुच्छेद 342 में संशोधन करके जनजाति समाज की सच्ची सनातनी जनजातियों को ही आरक्षण व नौकरियों का लाभ देने की मांग की गई है। ज्ञापन में कहा गया है कि जो जनजाति संस्कृति, रीति-रिवाज-परम्पराओं को नहीं मानते हैं उनको जनजाति समाज को प्रदत्त संवैधानिक लाभों से भी हटाया जाए।

ज्ञापन देने वालों में सवजीराम खेर, परवीन गरासिया, सरपंच अरुण कुमार, सरपंच मीठालाल गरासिया व कार्यकर्ता शामिल थे। जनजाति संस्कृति के विरोधियों के प्रति जमकर नारेबाजी भी की गई।

 

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