ढाई मोर्चा, जिसे देश के लिए खतरा बताते थे जनरल बिपिन रावत

ढाई मोर्चा, जिसे देश के लिए खतरा मानते थे जनरल बिपिन रावत

संचालिका व्यास

ढाई मोर्चा, जिसे देश के लिए खतरा मानते थे जनरल बिपिन रावत

जनरल बिपिन रावत एक बात हमेशा कहते थे कि “हमारा देश किसी एक या दो मोर्चों पर नहीं बल्कि ढाई मोर्चे पर जूझ रहा है” एक मोर्चा है पाकिस्तान, दूसरा है चीन और आधा हमारे देश के अंदर है। वो आधा मोर्चा कौन सा है, इस विषय में भी सीडीएस साहब ने संकेत संकेत में ही काफी बातें कही हैं। वो आधा मोर्चा पाकिस्तान और चीन की फंडिंग पर काम करता है। खालिस्तान एक मूवमेंट है, जिसने 2020 में रेफरेंडम करने का पूरा प्रयास किया। इस खालिस्तान मूवमेंट में पूरा पूरा साथ व हाथ पाकिस्तान का है। पाकिस्तानी मूल की महिला ऑस्ट्रेलियन सांसद जो आपने चीखती हुई देखी थी वो भी इसी प्रोपेगंडा पर काम कर रही है। खालिस्तान मूवमेंट को सबसे ज़्यादा फंडिंग पाकिस्तान से होती है। यहां तक कि देश के अंदर आज की तारीख में जितने भी कानूनी रिफॉर्म हो रहे हैं उनके विरोध में जितने भी आंदोलन हुए हैं, उन सब में आपको कुछ बातें कॉमन लगेंगी –

  • आपको वहां खालिस्तान मूवमेंट से जुड़ी कुछ संस्थाएं देखने को मिलेंगी
  • इन आंदोलन में हमेशा वामपंथियों और कम्युनिस्टों के झंडे देखने को मिलेंगे, और ये वही वामपंथी हैं जो खाते तो भारत की हैं और गाते चीन की हैं।

एक छोटे से उदाहरण से समझिये कि जब भारत व चीन के मध्य युद्ध चल रहा था तब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के लोग ये आह्वान कर रहे थे कि कोई भारतीय सैनिकों को रक्त दान न करे, जो घायल सैनिक हैं उनका इलाज कराने में सहायता न करें। इस बात से आप ये समझ सकते हैं कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टियां चीनी कम्युनिस्ट सरकार व चीनी सेना से भी अधिक खतरनाक हैं। भारत के अंदर जो खालिस्तान मूवमेंट को चला रहे हैं वो पाकिस्तान की ISI, उसकी सेना, आंतकवादी संगठन और उसकी सरकार से भी ज़्यादा खतरनाक हैं, और इन दोनों का मेल मिलाप हमने देखा – शाहीन बाग़ और तथाकथित किसान आंदोलन में। इन दो आंदोलनों ने पिछले 2 वर्षों के अंदर देश को जितना अस्थिर किया है और जिस तरह ये दो आंदोलन राष्ट्रीय कलंक बनकर उभरे हैं उससे एक बात साफ हो जाती है कि जनरल साहब किसी और के विषय में नहीं बल्कि अपने सबसे बड़े दो दुश्मनों पाकिस्तान व चीन द्वारा पोषित देश के अंदर बैठे दो धुरे यानि खालिस्तान और कम्युनिस्ट की ही बात करते थे। जब भारतवर्ष में पिछली बार अमेरिकन राष्ट्रपति आए थे, उस समय शाहीन बाग में बैठे लोगों ने राजधानी को कलंकित करने का कार्य किया और दूसरी बार 26 जनवरी पर राष्ट्र के सर्वोच्च चिन्ह का अपमान कर राष्ट्र को कलंकित करने का कार्य खालिस्तानियों ने किया। चीन के द्वारा भारत में बैठाए गए इन लोगों की बात जनरल साहब कई बार स्पष्ट अस्पष्ट शब्दों में कर चुके थे। जिस व्यक्ति को हमने खोया है उसके टारगेट पर केवल चीन या पाकिस्तान ही नही बल्कि ये आधा मोर्चा भी था और इस ढाई मोर्चे को विफल करना ही जनरल साहब को हम सब की तरफ से एक पूर्ण श्रद्धांजलि हो सकती है ।

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