जमात की बारात

भाई जान मैं तो जमात की बारात की बात कर रहा था, बारात दुल्हन लेकर आती है और जमात कोरोना, असलम ने हंसते हुए कहा।

शुभम वैष्णव

अरे जुम्मन मियां तीन-चार दिन से दिखाई नहीं दिए कहीं बारात में चले गए थे क्या, असलम ने घर की बालकनी में खड़े जुम्मन मियां से पूछा।

अरे जनाब कैसी बारात! अभी तो शादी क्या आजादी भी घरों तक ही सीमित है क्योंकि कोरोना ने अपने पैर जो पसार लिए हैं, जान है तो जहान है भाई जान।

भाई जान मैं तो जमात की बारात की बात कर रहा था, बारात दुल्हन लेकर आती है और जमात कोरोना, असलम ने हंसते हुए कहा।

आपकी बात में वजन तो है भाई जान पर कुछ लोगों को कैसे समझाएं कि एक व्यक्ति की गलती के कारण कोरोना का संक्रमण सैकड़ों लोगों तक पहुंच गया है, जुम्मन मियां ने कहा।

फिर भी कुछ लोगों को अपने काले कारनामे सफेद नजर आ रहे हैं। लगता है उनको मोतियाबिंद हो गया है, जिस कारण वे मानने को तैयार ही नहीं की सब कुछ उनका किया धरा है। यही कारण है कि कुछ लोगों के किए धरे का ठीकरा पूरी कौम पर फूट जाता है और ऐसे लोग ठहरे चिकने घड़े जिनके कान पर जूं तक नहीं रेंगती। उनके सीने पर तो मजहब का सांप फन फैलाए बैठा रहता है।

असलम भाई जान आज तो आपने सो टका सच बात कह दी।

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